क्या है डगयाली और क्या है इसका महत्व
हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है लेकिन यहां पर ऐसी कई मान्यताएं भी हैं, जिन पर यकीन करना शायद आम इंसान के बस में नहीं है। यहाँ अगर बात करें राक्षसी शक्तियों से जुडी अविश्वसनीय प्रथा की तो हिमाचल में डगयाली की कहानी भी आपको हैरान कर देगी। हम आपको बता दें कि हमारा मकसद किसी को डराना या अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है, किन्तु आप तक सभी तथ्यों को पहुंचाने के मकसद से आपको आज हम डगयाली के बारें में जानकारी देंगे। हिमाचल के कुछ एक जिला में 2 दिन तक डगयाली ( जिसका अर्थ कुछ एक क्षेत्रों में चुड़ैल है ) की रात मानी जाती है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इन 2 रातों को बुरी शक्तियों का प्रभाव ज्यादा रहता है, जिनमें तांत्रिक साल में एक बार काली शक्तियों को जागृत करने के लिए साधना करते हैं, जिनसे बचने के लिए यहां के लोग अपने घरों के बाहर टिंबर के पत्ते लटकाते हैं। जबकि कुछ लोग कांटे वाले किसी भी पौधे के तने को दरवाजे के आसपास रखते है। कहा यह भी जाता है की इस माह सभी देवी-देवता सृष्टि की रक्षा छोड़ असुरों के साथ युद्ध करके अपनी शक्तियों का प्रर्दशन करने अज्ञात प्रवास पर चले जाते हैं। इस माह की अमावस्या की रात को ही डगयाली या चुड़ैल की रात कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस अमावस्या की रात को जितने भी काली विद्या वाले तांत्रिक होते हैं वे काली शक्तियों को जागृत कर किसी का अहित करने के लिए तंत्र का सहारा लेते हैं। क्यूंकि ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवता बुरी शक्तियों से लड़ाई करने चले जाते हैं तो इस डर के कारण अपने घरों के बाहर दिये जलाकर रोशनी करते है और बुरी शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने का आह्वान करते हैं। आपको इस बात से और अत्यधिक हैरानी होगी की लोग मानते है कि इस दौरान देवताओं और बुरी शक्तियों के बीच की लड़ाई में यदि देवता जीत जाते हैं तो पूरा साल सुख-शांति से गुजरता है। और अगर ऐसा न हो तो खैर, हम इस बात कि पुष्टि नहीं करते। लेकिन ये सच है कि लोग इस दिन को इसी नजरिये से देखते हैं।