बुशहर राजवंश की कुलदेवी भीमकाली में है भक्तों की अटूट आस्था
हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की है कुलदेवी
भीमाकली मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। देवी भीमाकली को समर्पित ये मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर सराहन में व्यास नदी के तट पर स्थित है। भीमाकाली मन्दिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह देवी तत्कालीन बुशहर राजवंश की कुलदेवी है जिसका पुराणों में उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 800 साल पहले बनाया गया है। यह अपनी अनूठी वास्तुकला, जो हिंदू और बौद्ध स्थापत्य शैली का एक मिश्रण है, के लिए जाना जाता है। मंदिर परिसर के भीतर एक नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। मंदिर में देवी भीमाकली की एक मूर्ति को एक कुंवारी और एक औरत के रूप में चित्रित किया गया है। मंदिर परिसर में रघुनाथ और भैरों के नरसिंह तीर्थ को समर्पित दो मंदिर और हैं। हर साल यहां बड़े स्तर पर काली की पूजा की जाती है जिसमें लाखों लोग भाग लेते है।
पौराणिक कथा
महल में स्थापित भीमाकाली मन्दिर के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुडी हैं जिनके अनुसार आदिकाल मन्दिर के स्वरूप का वर्णन करना कठिन है। भीमाकाली शिवजी की अनेक मानस पुत्रियों में से एक है। मत्स्य पुराण में भीमा नाम की एक मूर्ति का उल्लेख आता है। एक अन्य प्रसंग है कि मां पार्वती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव ने उन्हें अपने कंधे पर उठा लिया था। हिमालय में जाते हुए कई स्थानों पर देवी के अलग-अलग अंग गिरे। एक अंग कान शोणितपुर में गिरा और भीमाकाली प्रकट हुई। मन्दिर के ब्राह्मणों के अनुसार पुराणों में वर्णन है कि कालांतर में देवी ने भीम रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और भीमाकाली कहलाई।
- भीमाकली मंदिर भारत में सबसे महत्वपूर्ण पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है।
- यह मंदिर बेहद सुंदर है जहां कई भगवानों की मूर्ति को प्रर्दशित किया गया है।
- यह पवित्र मन्दिर लगभग सभी ओर से सेबों के बागों से घिरा हुआ है
- भीमाकाली मन्दिर हिंदु और बौद्ध शैली में बना है जिसे लड़की और पत्थर की सहायता से तैयार किया गया है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू देवता शिव की पत्नी सती, वैवाहिक जीवन के परम सुख और दीर्घायु की देवी, का बायाँ कान इस जगह गिर गया था।
- यहाँ हर साल लोकप्रिय हिंदू त्योहार दशहरा के समारोह को धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति, रामनवमी, जन्माष्टमी, शिवरात्रि आदि त्यौहार भी बडे हर्षोल्लास व श्रद्धा से मनाये जाते हैं।
- मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय बस सेवा और टैक्सियां उपलब्ध है
- मन्दिर परिसर में बने साफ-सुथरे कमरों में ठहरने की व्यवस्था है।
- इस भीमाकाली मंदिर के कपाट केवल सुबह और शाम ही दर्शनों के लिए खुलते हैं।
- मंदिर कई मंजिला है और सबसे उपर माता का विग्रह स्थापित है ।
- मंदिर में प्रवेश से पहले सिर पर टोपी अवश्य पहननी होती है। मंदिर में अपने साथ कुछ भी सामान नहीं ले जा सकते हैं ।