2012 अपवाद, अन्यथा सत्ता के साथ ही जाता है जिला चंबा
इतिहास तस्दीक करता है कि प्रदेश में जिसकी सरकार बनती है वो ही पार्टी चंबा में भी बाजी मारती है। आंकड़ों पर निगाह डाले तो भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद 1982 से 2017 तक हिमाचल प्रदेश में 9 विधानसभा चुनाव हुए है। इनमें से आठ बार प्रदेश में उसी दल या गठबंधन की सरकार बनी है जिसने जिला चंबा में बढ़त हासिल की है। सिर्फ 2012 का विधानसभा चुनाव अपवाद है, जब भाजपा ने चंबा में तीन सीटें जीती लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। पिछले चुनाव की बात करे तो भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चार सीटें जीती थी, जबकि केवल एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली। इस बार चम्बा जिला में चार सीटिंग विधायकों में से भाजपा ने दो नए चेहरों को मौका दिया है। तो कांग्रेस ने चार पुराने प्रत्याशी उतारे है और एक नए चेहरे को मौका दिया है। अब देखना ये होगा कि क्या पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा चम्बा में अपने शानदार प्रदर्शन को बरकरार रख पाएगी या फिर कांग्रेस यहाँ सत्ता का सुख पायेगी। हंसराज, पवन नय्यर, जिया लाल और विक्रम जरियाल, 2017 में जिला चम्बा से भाजपा टिकट पर जीत कर ये चार विधायक शिमला विधानसभा तक पहुंचे थे। पर इस बार इनमें से दो का रास्ता भाजपा ने टिकट आवंटन के साथ ही रोक दिया है। चुराह से हंसराज और भटियात से विक्रम जरियाल को तो भाजपा ने टिकट दिया, लेकिन चम्बा सदर से सीटिंग विधायक पवन नैय्यर और भरमौर से सीटिंग विधायक जियालाल का टिकट काट दिया। भरमौर से पार्टी ने डॉ जनकराज को मैदान में उतारा है तो सदर सीट पर नाटकीय घटनाक्रम के बाद निवर्तमान विधायक की पत्नी नीलम नय्यर को टिकट दिया है। वहीँ डलहौजी से भाजपा ने एक बार फिर आशा कुमारी के खिलाफ डीएस ठाकुर को मैदान में उतारा है। उधर, कांग्रेस में डलहौज़ी से सीटिंग विधायक आशा कुमारी सहित 2017 के चार उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें सदर सीट से नीरज नय्यर, भरमौर से ठाकुर सिंह भरमौरी, भटियात से कुलदीप सिंह पठानिया शामिल है। जबकि चुराह सीट से पार्टी ने यशवंत खन्ना को मौका दिया है।
भरमौर : डॉ जनकराज ने बढ़ाई अनुभवी भरमौरी की परेशानी !
मंडी संसदीय उपचुनाव में भरमौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को लीड मिली और भाजपा पिछड़ी, जिसका खामियाज़ा सिटींग विधायक जियालाल को भुगतना पड़ा है। इस बार भाजपा ने यहाँ जियालाल का टिकट काट कर नए चेहरे के तौर पर आईजीएमसी के एमएस रहे डॉ जनकराज को टिकट दिया है, तो उधर कांग्रेस ने अपने अनुभवी चेहरे ठाकुर सिंह भरमौरी को ही मैदान में उतारा है। इस सीट पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। निसंदेह 2017 में इस सीट पर भाजपा को जीत मिली लेकिन इतिहास पर नज़र डाले तो 1985 के बाद यहाँ हर पांच वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज़ बरकरार रहा है। इस बार भी यहाँ कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच कांटे का मुकाबला दिख रहा है।
डलहौज़ी : कांटे के मुकाबले में उलझी आशा कुमारी की सीट
2017 में जब जिला चम्बा की चार विधानसभा सीटों पर भाजपा ने फतेह हासिल की थी ,तब डलहौज़ी विधानसभा सीट एक मात्र ऐसी सीट थी जहाँ कांग्रेस को जीत मिली। परिसीमन बदलने से पहले डलहौज़ी विधानसभा सीट बनीखेत के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर कांग्रेस की दिग्गज आशा कुमारी का दबदबा रहा है। 1985 से अब तक आशा कुमारी यहाँ पांच बार विधायक रही है।1990 और 2007 में भाजपा इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही है। इस बार भी कांग्रेस ने आशा कुमारी को फिर मैदान में उतारा है जबकि भाजपा से डीएस ठाकुर मैदान में है। पिछले चुनाव के नतीजों पर यदि नजर डाले तो आशा कुमारी बेशक जीतने में कामयाब रही हो लेकिन जीत का अंतर बेहद कम रहा था। आशा कुमारी केवल 556 मतों से जीती थी। इस बार भी मुकाबला कांटे की टक्कर का माना जा रहा है। दिलचस्प बात ये है कि आशा कुमारी वो नाम है जो कांग्रेस सरकार बनने की स्थिति में सीएम पद के दावेदारों में से एक है। ऐसे में जाहिर है आशा कुमारी की सीट पर सबकी निगाहें टिकी है। बहरहाल नतीजा आठ दिसम्बर को आएगा और आशा कुमारी अपनी जीत को लेकर आशावान जरूर दिख रही है।
चुराह : हंसराज के लिए मुश्किल हो सकती है विधानसभा की राह !
चुराह विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस ने एक नए चेहरे यशवंत सिंह खन्ना को मैदान में उतारा है। जबकि अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले विधानसभा उपाध्यक्ष और चुराह के सिटींग विधायक हंसराज भाजपा से एक बार फिर मैदान में है। परिसीमन बदलने से पहले चुराह विधानसभा सीट राजनगर के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों को जनता का बराबर प्यार मिला है। 2012 में हंसराज पहली दफा मैदान में उतरे और जीत गए। 2017 में भी हंसराज ने ही रिपीट किया, लेकिन इस बार जीत की हैट्रिक लगती है या नहीं ये तो 8 दिसम्बर को ही पता चलेगा। बहरहाल जानकार मान रहे है कि पिछले दो चुनावों के उलट इस मर्तबा चुराह से विधानसभा की राह हंसराज के लिए मुश्किल हो सकती है।
चम्बा : क्या पंद्रह साल बाद होगी कांग्रेस की वापसी ?
चम्बा सदर सीट में इस बार बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिला है। कभी वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी रहे हर्ष महाजन अब भाजपा में शामिल हो चुके है। हर्ष महाजन 1993 से 2007 तक तीन बार चंबा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे है। तीन दफा जीत की हैट्रिक लगाने के बाद महाजन ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के चुनावों का जिम्मा संभाला। तब से महाजन चुनावी राजनीति से दूर ही दिखे है तबसे अब तक चम्बा सदर सीट पर कांग्रेस को लगातार हार का सामना ही करना पड़ा है। अब चम्बा सदर सीट पर भाजपा का कब्ज़ा बरकरार रखना महाजन के लिए भी प्रतिष्ठता का सवाल है, लेकिन टिकट आवंटन के बाद भाजपा यहाँ बगावत को साधने में असफल साबित हुई है। इस बार भाजपा से नीलम नय्यर मैदान में है तो कांग्रेस से नीरज नय्यर तो उधर भाजपा की बागी इंदिरा कपूर भी मैदान में डटी है। भाजपा में लगे बगावती सुरो के बीच नीरज नय्यर को इसका लाभ मिलता दिख रहा है। हालांकि असल नतीजा आठ दिसम्बर को ही सामने आएगा।
भटियात : जरियाल या कुलदीप, संशय बरकरार
भटियात विधानसभा सीट पर पुराने प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने-सामने है। भाजपा से यहाँ विक्रम जरियाल मैदान में है, तो कांग्रेस से कुलदीप पठानिया। पिछले दो चुनावों के नतीजों पर गौर करे तो यहाँ विक्रम जरियाल कमल खिलाने में सफल रहे है। कुलदीप 2012 में सिर्फ 112 वोट से हारे थे, जबकि 2017 में ये अंतर सात हजार के करीब था। 2017 में चुनाव जीतने के बाद भाजपा विधायक विक्रम जरियाल को मंत्री पद का दावेदार भी माना जा रहा था, लेकिन भाजपा ने जिला से चुराह विधायक हंसराज को डिप्टी स्पीकर बनाया और जरियाल के हाथ खाली रहे। अब फिर जरियाल जीत की हैट्रिक लगाने को मैदान में है। इस बार भी यहाँ नजदीकी मुकाबला देखने को मिल रहा है। विक्रम जरियाल और कुलदीप पठानिया के बीच कांटे का मुकाबला हो सकता है।