मंडी में भी अगर भाजपा रही ठंडी, तो मुश्किल होगा मिशन रिपीट
काँगड़ा के बाद मंडी प्रदेश का वो जिला है जो सबसे अधिक सियासी वजन रखता है। मंडी जिला के 10 विधानसभा क्षेत्र हिमाचल की सत्ता का रास्ता प्रशस्त करते है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 68 में से 44 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। तब जिला मंडी की दस में से नौ सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी, जबकि एक सीट जोगिन्दर नगर में निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश राणा जीते थे। प्रकाश राणा भी अब भाजपाई हो चुके है। तब भाजपा का जिला मंडी में ये शानदार प्रदर्शन ही जयराम ठाकुर की ताजपोशी का एक अहम् कारण माना जाता है। दरअसल तब पार्टी के सीएम फेस प्रो प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे जिसके बाद भाजपा ने जयराम ठाकुर को सीएम बनाया। जिला मंडी ने दिल खोलकर भाजपा का साथ दिया था और बदले में मंडी को सीएम पद मिला।
इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव में भी मंडी वालों का झुकाव भाजपा की तरफ ही रहा। जयराम ठाकुर भी ये दोहराते रहे कि " मंडी हमारी है" और मंडी भाजपा की ही रही। इसके बाद पिछले साल हुए स्थानीय निकाय, पंचायत और जिला परिषद् चुनाव में भी भाजपा हावी रही। दिलचस्प बात ये है कि पिछले वर्ष हुआ मंडी संसदीय उपचुनाव भले ही भाजपा हारी हो लेकिन जिला मंडी में पार्टी ने लीड ली थी। दरअसल संसदीय क्षेत्र के तहत जिला के नौ निर्वाचन क्षेत्र आते है, जिनमें से आठ में भाजपा को लीड मिली थी। यानी जिला मंडी में भाजपा के लिए 2017 से सब कुछ अच्छा ही बीता है। अब विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा जिला मंडी में इसी प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में है।
उधर 2017 में जिला मंडी में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस वापसी की उम्मीद में है। पार्टी इस बात से भलीभांति वाकिफ है कि यदि मंडी में ठीक ठाक प्रदर्शन भी नहीं रहा तो सत्ता वापसी मुश्किल होगी। हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं लगता की मंडी में कांग्रेस की परिस्थिति आज भी 2017 वाली है। मंडी मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र ज़रूर है मगर कांग्रेस ने भी लगातार यहां रिकवर किया है। मंडी कर्मचारियों का भी गढ़ है और ये वोट भी कांग्रेस की तरफ जाता हुआ दिखाई दे रहा है। इस पर ठाकुर कौल सिंह द्वारा लगातार किये जा रहे मंडी से मुख्यमंत्री होने के दावे को पूरा करने के लिए भी ये बेहद ज़रूरी है कि पार्टी बेहतर करें। पर कौल सिंह के दावे को पंख तब ही लगेंगे जब कांग्रेस मंडी में बेहतर करती है।
2017 में ऐसे बदली थी मंडी की सियासी हवा
2017 के विधानसभा चुनाव पर निगान डाले तो चुनाव से चंद दिन पहले पंडित सुखराम का परिवार कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गया था। इससे पूरे जिला में भाजपा के पक्ष में माहौल बना था। साथ जिला मंडी में कर्मचारियों का भी बड़ा प्रभाव रहता है और तब माना जाता है कर्मचारी वोट भी भाजपा को पड़ा था। इसके चलते वीरभद्र सरकार में मंडी से मंत्री रहे ठाकुर कौल सिंह और प्रकाश चौधरी भी अपनी सीटें नहीं बचा पाएं थे। पर अब हाल और हालात दोनों बदले -बदले दिख रहे है।
5 विधायकों में से 3 मंत्री, फिर भी खाता नहीं खुला
ख़ास बात ये है कि 2012 में मंडी जिला में कांग्रेस पांच सीट जीती थी। इन पांच विधायकों में से तीन को वीरभद्र कैबिनेट में स्थान मिला था। यानी कांग्रेस ने भी मंडी को तवज्जो दी थी। बावजूद इसके अगले चुनाव में कांग्रेस का खाता नहीं खुला। इसीलिए कहते है मंडी की सियासत को समझना मुश्किल है। इससे समझा जा सकता है कि मंडी में भाजपा की राह क्यों आसान है नहीं, जितना दिखती है।
ये है मौजूदा स्थिति
बहरहाल मंडी में शानदार प्रदर्शन करती आ रही भाजपा के पास यहाँ खोने के लिए बहुत कुछ है। जयराम ठाकुर को रिवाज बदलना है तो भाजपा को यहाँ 2017 जैसा प्रदर्शन दोहराना होगा। जाहिर है इसका दबाव भी उन पर है। उधर कांग्रेस को आठ दिसम्बर को जिला मंडी से जो भी मिलेगा, उसके लिए लाभ ही होगा। मंडी की दस सीटों में से सिर्फ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सराज सीट ही ऐसी है जहाँ तस्वीर लगभग पूरी तरह साफ है। धर्मपुर और नाचन में भी भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त दिख रही है। किन्तु शेष सात सीटों पर कांटे का मुकाबला दिख रहा है। अर्से से पंडित सुखराम के वर्चस्व वाली मंडी सदर सीट पर भी बगावत ने भाजपा की चिंता बढ़ाई है। बगावत का असर सुंदरनगर पर ही साफ दिख रहा है। जोगिन्दरनगर में भाजपा की अंतर्कलह किसी से छिपी नहीं है। द्रंग और बल्ह में कांग्रेस पूरी तरह आश्वस्त दिख रही है। उधर करसोग और सरकाघाट में भी इस बार भाजपा की राह मुश्किल है। ऐसे में जयराम ठाकुर के गृह जिला मंडी में भी अगर भाजपा कुछ ठंडी रही, तो मिशन रिपीट मुश्किल होगा।