कांगड़ा किसी को नहीं बक्शता, यहां दिग्गज भी धराशाई होते है
जिला कांगड़ा का सियासी मिजाज समझना बेहद मुश्किल हैं। कांगड़ा वालों ने मौका पड़ने पर किसी को नहीं बक्शा, चाहे मंत्री हो या मुख्यमंत्री। जो मन को नहीं भाया, उसे कांगड़ा वालों ने घर बैठा दिया। अतीत पर नज़र डाले तो 1990 में जब भाजपा-जनता दल गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुआ तब शांता कुमार ने जिला कांगड़ा की दो सीटों से चुनाव लड़ा था, पालमपुर और सुलह। जनता मेहरबान थी शांता कुमार को दोनों ही सीटों पर विजय श्री मिली थी। पर 1993 का चुनाव आते -आते जनता का शांता सरकार से मोहभंग हो चुका था। नतीजन सुलह सीट से चुनाव लड़ने वाले शांता कुमार खुद चुनाव हार गए। वहीँ पिछले चुनाव में वीरभद्र कैबिनेट के दो दमदार मंत्री सुधीर शर्मा और जीएस बाली को भी हार का मुँह देखना पड़ा था।
मौजूदा चुनाव की बात करें तो जयराम कैबिनेट में उद्योग एवं परिवहन मंत्री और जसवां परागपुर से विधायक बिक्रम ठाकुर, सामजिक न्याय एवं आधिकारित मंत्री और शाहपुर से विधायक सरवीण चौधरी और वन मंत्री राकेश पठानिया, अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कड़े मुकाबले में फंसे दिख रहे है। मंत्री राकेश पठानिया की तो सीट भी इस बार पार्टी ने बदली है और उन्हें नूरपुर से फतेहपुर भेजा गया है। वहीँ सुलह सीट से विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार भी कांग्रेस की बगावत में जीत तलाश रहे है। इन तीन मौजूदा मंत्रियों और विधानसभा अध्यक्ष के अलावा पालमपुर से पार्टी के प्रदेश महामंत्री त्रिलोक कपूर, देहरा से पूर्व मंत्री रमेश चंद धवाला, ज्वालामुखी से पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि और दल बदलकर भाजपा में आएं कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष पवन काजल कांगड़ा से चुनावी मैदान में है। जिला कांगड़ा में चुनाव लड़ रहे भाजपा के इन आठ दिग्गजों में से एकाध को छोड़ दिया जाएँ तो शायद ही कोई ऐसा है जो सहजता से चुनाव जीतता दिख रहा है। अधिकांश नेता कांटे के मुकाबले में फंसे है और इनके हारने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में आठ नेताओं का प्रदर्शन भाजपा के लिए काफी कुछ तय करने वाला है।
1985 से सत्ता के साथ जिला कांगड़ा
जिसके कांगड़ा में ज्यादा विधायक, उसी की सरकार। वर्ष 1985 से ये सिलसिला चला आ रहा हैं। 1985, 1993, 2003 और 2012 में कांग्रेस पर कांगड़ा का वोट रुपी प्यार बरसा तो सत्ता भी कांग्रेस को ही मिली। वहीं 1990, 1998, 2007 और 2017 में कांगड़ा में भाजपा इक्कीस रही और प्रदेश की सत्ता भी भाजपा को ही मिली। यानी 1985 से 2017 तक हुए आठ विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता में जिला कांगड़ा का तिलिस्म बरकरार रहा हैं। इससे पहले 1982 के चुनाव में भाजपा को 10 सीटें मिली थी लेकिन प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी। ऐसे में जाहिर है अगर भाजपा को सत्ता पर कब्ज़ा बरकरार रखना है तो विशेषकर इन आठ दिग्गजों का बेहतर करना आवश्यक है। बहरहाल, मतदान हो चूका है और आठ दिसम्बर को तय हो जायेगा कि कांगड़ा किसके साथ गया है।