ओपीएस पर ब्यान, क्या केएल का कांग्रेस में जाने का है प्लान ?
कसमें, वादे, निष्ठा, सियासत में सब छलावा है। कब हालात बदल जाए, कब जज़्बात बदल जाए, कुछ भी कहना मुमकिन नहीं है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला है नालागढ़ विधानसभा सीट पर। कांग्रेस के नारे लगाते-लगाते लखविंदर राणा ने कब भाजपा का पटका धारण कर लिया, पता ही नहीं चला। राणा के भाजपा में जाते ही नालागढ़ विधानसभा क्षेत्र के सियासी समीकरण भी पूरी तरह से बदल गए। हालांकि भाजपा और राणा का पुराना नाता है, जिस दौर में पीएम मोदी प्रदेश के प्रभारी हुआ करते थे, उस दौरान राणा ने भाजपा का खूब झंडा लहराया। हरि नारायण सिंह सैनी के रहते राणा को भाजपा में अपना भविष्य नहीं दिखा और राणा कांग्रेस में शामिल हो गए। उस वक्त हरि नारायण सिंह सैनी भाजपा का मुख्य चेहरा रहे थे। 2011 में हरि नारायण सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने सैनी की पत्नी को मैदान में उतारा और तब पहली बार कांग्रेस के लखविंदर राणा ने बाजी मारी, लेकिन एक ही साल में जनता का राणा से मोहभंग हो गया और 2012 में राणा को शिकस्त का सामना करना पड़ा।
2012 में भाजपा ने सेवानिवृत्त अधिकारी केएल ठाकुर पर दांव खेला और केएल ठाकुर पहली बार विधायक बने। 2017 में एक बार फिर लखविंदर सिंह राणा और केएल ठाकुर आमने-सामने थे, फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और राणा जीतने में कामयाब रहे। इस बार कुछ महीने पहले तक भाजपा में केएल ठाकुर के समकक्ष कोई चेहरा नहीं दिख रहा था, लेकिन हालात ऐसे बने कि केएल ठाकुर को बगावत करके चुनाव लड़ना पड़ा। अब नतीजे अगर भाजपा के पक्ष में नहीं आये तो सवाल तो उठेंगे ही। बहरहाल, माहिर मानते है कि नालागढ़ में इन दोनों के बीच ही मुख्य मुकाबला है। इस बीच कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस ने हरदीप बावा को मैदान में उतारा है, वहीं बावा जो 2017 में कांग्रेस के बागी थे। पर लखविंदर के जाने के बाद कांग्रेस के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे, सो बावा को टिकट रुपी आशीर्वाद मिल गया।
हालांकि माहिर मान रहे थे कि कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष धर्मपाल चौहान भी कांग्रेस के प्रबल दावेदारों में शामिल हो सकते थे। खैर, अब अगर भाजपा की बगावत के बावजूद बावा नहीं जीत पाते है या तीसरे स्थान पर चले जाते है तो जाहिर है कि उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी सवाल जरूर उठेंगे। इस बीच दिलचस्प बात ये है कि केएल ठाकुर ऐलान कर चुके है कि उनका समर्थन उसी दल को होगा जो पुरानी पेंशन बहाल करेगा, यानी अगर कांग्रेस सरकार बनती है और केएल ठाकुर भी जीत जाते है तो वे कांग्रेस के खेमे में भी दिख सकते है। बहरहाल, नालागढ़ का विधायक कौन बनेगा ये तो जनता ही तय करेगी और जनता का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका अब नतीजों के लिए 8 दिसम्बर का इंतज़ार जारी है।