दिसंबर आठ को किसको मिलेगा सत्ता का ठाठ
'नाई-नाई बाल कितने, जजमान सामने आ जाएंगे '..हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है और आठ दिसंबर को नतीजा भी सामने होगा। तब तक दावों का सिलसिला बरकरार रहने वाला है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022, वो चुनाव है जिसका नतीजा आने के बाद संभवतः प्रदेश की सियासत का परिदृश्य बिलकुल अलग हो। संगठन की एकजुटता, राजनीतिज्ञों की कूटनीति और कार्यकर्ताओं की निष्ठा, कहाँ कम और कहाँ अधिक है, आठ दिसंबर को सब स्पष्ट होगा। इस चुनाव के नतीजे कई बड़े नेताओं का अहम और सुनहरे अतीत पर टिका उनका वहम भी खत्म कर सकते है। दरअसल दोनों दलों के कई बड़े धुरंधर चुनावी मझधार में फंसे दिख रहे है।
इस बार भी प्रदेश में सत्ता की लड़ाई दोनों मुख्य दलों यानी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही दिख रही है। इस चुनाव में कहीं नए नेताओं का आगमन हुआ है, तो कहीं कुछ पुराने साथी साथ छोड़ गए। जहाँ एक सियासी युग का अंत होता दिखाई दिया, तो एक नए युग का उदय भी दिख रहा है। पिछले कई दशकों से जिन चेहरों पर भाजपा और कांग्रेस चुनाव लड़ते रहे, वो दोनों मुख्य चेहरे इस विधानसभा चुनाव में नहीं थे। हालाँकि कांग्रेस का चुनाव प्रचार जहाँ वीरभद्र सिंह के स्वर्गवास के बावजूद उनके नाम के इर्द गिर्द घूमता दिखाई दिया, वहीं धूमल के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद उनकी भागीदारी बेहद सीमित रही।
इस चुनाव की एक नई कड़ी आम आदमी पार्टी भी साबित हुई। हर बार से अलग इस बार मुख्य मुकाबला सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के बीच ही नहीं रहा बल्कि आम आदमी पार्टी ने भी कड़ी टक्कर देने की पूरी कोशिश की। हालांकि ये कोशिश रंग लाती दिख नहीं रही। चुनाव से कुछ माह पहले जरूर आम आदमी पार्टी ने सभी राजनैतिक दलों की धुकधुकी बढ़ा दी। मंडी में जब पहले रोड शो से आप ने चुनावी शंखनाद किया तो भाजपा -कांग्रेस कमर कसने को मजबूर हो गए। पर चुनाव नजदीक आते -आते आप का पूरा फोकस गुजरात शिफ्ट हो गया। हालांकि पार्टी ने सभी 68 सीटों पर चुनाव तो लड़ा, पर लगा महज खानापूर्ति के लिए ऐसा किया गया हो। पर चंद सीटों पर जरूर पार्टी प्रत्याशी अपने बुते फर्क डाल सकते है। चुनाव राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने भी लड़ा है लेकिन एकाध सीट को छोड़कर उनका प्रभाव ज्यादा नहीं दिखता। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी का हाथी भी इस बार सुस्ताया हुआ दिखा है। वहीं जिला शिमला की कुछ सीटों पर सीपीआईएम की मौजूदगी ने खासा फर्क डाला है। इनके अलावा कई सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी सब पर भारी पड़ सकते है। बहरहाल, मुख्य मुकाबला एक बार फिर कांग्रेस और भाजपा के बीच होता दिख रहा है।
इस चुनाव में भाजपा सत्ता परिवर्तन का रिवाज बदलने का दावा कर रही है। दरअसल हिमाचल में 1985 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री प्रदेश में सरकार को रिपीट नहीं करवा पाया है। मगर भाजपा दावा करती आ रही है कि जयराम ठाकुर ये करने में सफल होंगे। निसंदेह, जो बड़े-बड़े दिग्गज नहीं कर पाएं, अगर वो जयराम कर गए तो इतिहास बन जाएगा। परन्तु अगर ऐसा नहीं होता तो अनगिनत सवाल खड़े हो जाएंगे। हालांकि इस सपने को साकार करने के लिए भाजपा के तमाम दिग्गज पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मैदान में डटे रहे है। चुनाव के ऐलान से पहले ही प्रधानमंत्री प्रदेश के कई दौरे कर चुके थे और उसके बाद भी उनकी रैलियों का दौर जारी रहा। प्रधानमंत्री के अलावा भाजपा के अन्य स्टार प्रचारक जैसे अमित शाह,जेपी नड्डा, अनुराग ठाकुर, स्मृति ईरानी और योगी आदित्यनाथ भी हिमाचल में डटे रहे। निसंदेह भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व की मौजूदगी के मामले में तो कांग्रेस से इक्कीस दिखी, मगर बात जब प्रदेश के नेताओं पर आती है तो मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के अलावा कोई एक भी अन्य नेता ऐसा नहीं दिखा जो अपने क्षेत्र को छोड़ कर अकेले कहीं और जनसभा कर सके। शायद ये ही कारण है कि भाजपा का प्रचार प्रदेश के मुद्दों पर कम और डबल इंजन पर अधिक केंद्रित दिखाई दिया।
वहीं, इस चुनाव में कांग्रेस की बात करें तो पार्टी करीब चार दशक बाद बिना वीरभद्र सिंह के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरी थी। माना जा रहा था कि अब वीरभद्र के बाद कांग्रेस के किसी भी नेता में न तो प्रदेश के हर कोने की जनता को अपनी और खींचने का तिलिस्म है और न कांग्रेस को एकजुट रखने की रणनीति। तमाम सियासी माहिर मान रहे थे कि बिना वीरभद्र प्रदेश में कांग्रेस बिखर जाएगी। परन्तु इस चुनाव में कांग्रेस ने सबको चौंका दिया। पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला लिया और ऐसा करके भी दिखाया। मतदान तक ना तो कांग्रेस के आला नेताओं में कोई कलेश दिखा, न मुख्यमंत्री पद की जंग। हालांकि अब जरूर मुख्यमंत्री पद के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। मगर मतदान सम्पन्न हो चुका है और कांग्रेस अनअपेक्षित तौर पर पूरा चुनाव एकजुटता के साथ लड़ी है।
कांग्रेस का स्टार प्रचार मुख्य तौर पर कांग्रेस के दो राष्ट्रीय नेताओं के जिम्मे दिखा। प्रियंका गाँधी और सचिन पायलट, इन दोनों ही नेताओं ने प्रदेश के ताबड़तोड़ दौरे किए और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया। हालांकि राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी दोनों ही हिमाचल नहीं पहुंचे। इनके अलावा प्रदेश के स्थानीय नेतृत्व ने भी मोर्चा जमकर संभाले रखा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह समेत स्वयं चुनाव लड़ रहे अन्य नेता जैसे चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, कौल सिंह ठाकुर, विक्रमादित्य सिंह ने भी प्रचार का जिम्मा बखूबी निभाया। ये नेता अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर भी निकले और कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए जमकर प्रचार भी किया।
कांग्रेस मैनिफेस्टो में सबको साधने का प्रयास
प्रचार के दौरान कांग्रेस ने भाजपा की हर दुखती रग पर हाथ रखा। कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा तो भुनाया ही, पुरानी पेंशन बहाल करने की गारंटी भी दी। पार्टी के मैनिफेस्टो में लगभग वो तमाम मांगें शामिल थी जो प्रदेश के किसी भी वर्ग ने सामने रखी हो। अब सरकार बनने पर ये वादे पूरे होते है या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा मगर कांग्रेस ने प्रदेश के हर वर्ग को इस घोषणा पत्र के ज़रिये साधने का प्रयास किया। उधर, भाजपा के मैनिफेस्टो में न पुरानी पेंशन बहाली का वादा दिखा और न ही बागवानों को साधने के लिए कोई बड़ा मास्टर स्ट्रोक। हालांकि भाजपा ने स्कूल जाने वाली बच्चियों को साइकिल और कॉलेज की छात्राओं के लिए स्कूटी की घोषणा जरूर की।
मिशन रिपीट में बगावत की बाधा !
इस चुनाव में भाजपा कई मसलों के कारण भी बैकफुट पर आती दिखी है, इनमें सबसे पहले नंबर पर भाजपा का टिकट आवंटन रहा। हर बार की तरह पार्टी विद डिसिप्लिन इस बार प्रदेश में डिसिप्लिन मेंटेन नहीं कर पाई। प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों में से करीब एक तिहाई पर भाजपा के बागी मौजूद थे। इनके अलावा भी पार्टी के कई निष्ठावान टिकट आवंटन से नाराज़ हुए जिसका पार्टी को नुक्सान भुगतना पड़ सकता है। आज कल खूब ऑडियो भी वायरल होने लगे है जिसमें भाजपा के नाराज़ नेता भाजपा के नेतृत्व पर स्थानीय नेताओं की अनदेखी का आरोप भी लगा रहे है और कांग्रेस की सरकार बनने का दावा भी कर रहे है। उधर, कांग्रेस के टिकट आवंटन पर गौर करें ये तो कई सालों में पार्टी का सबसे सटीक आवंटन लगता है। एक दो सीटों को छोड़ दिया जाए तो पार्टी कहीं भी किसी तरह का कोम्प्रोमाईज़ करती नहीं दिखी। हालाँकि टिकट आवंटन को लेकर पार्टी पर खूब आरोप भी लगे। खूब चर्चा हुई की कांग्रेस में टिकट बेचे जा रहे है। अब इसका प्रभाव चुनाव पर पड़ा या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा। कांग्रेस में बगावत भी भाजपा की बनिस्पत बेहद कम दिखी।
कांग्रेस ने किया ओपीएस का वादा
कर्मचारियों के मुख्य मुद्दे पुरानी पेंशन बहाली ने भी पूरे चुनाव के दौरान भाजपा की मुश्किलें बढ़ाए रखी। महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों का तोड़ तो भाजपा ज्यूँ त्यूं निकाल ही लेती, पर पुरानी पेंशन का कोई तोड़ भाजपा के पास नहीं था। यूँ तो जयराम सरकार ने कर्मचारियों को भी साधने का हर संभव प्रयत्न किया, मगर जयराम चाह कर भी पुरानी पेंशन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए। कर्मचारियों का वोट फॉर ओपीएस अभियान भाजपा के लिए खतरा सिद्ध हो सकता है। उधर कांग्रेस ने सरकार गठन के दस दिन के भीतर ओपीएस बहाली का वादा किया है।
धूमल का चुनाव न लड़ना क्या टर्निंग पॉइंट ?
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के चुनावी मैदान में न होने से धूमल समर्थकों का मनोबल भी टूट सा गया था। साथ ही इससे मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर रहा सहा संशय भी खत्म हो गया। जाहिर है इससे धूमल निष्ठावानों का मनोबल जरूर टूटा। क्या भाजपा आलाकमान को धूमल को चुनाव लड़वाना चाहिए था, क्या धूमल को चुनावी मैदान में न उतारना बड़ी चूक साबित होगा, ये फिलवक्त बड़ा सवाल है।
निर्दलियों पर निगाह, कितने पहुंचेंगे विधानसभा ?
मतदान हो चुका है और आठ दिसम्बर को मतगणना होगी। तब तक सभी दल, सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे है। कहते है सियासत महाठगिनी होती है, कई बार जो दिखता है वो होता नहीं, और जो होना होता है उसकी भनक बड़े बड़े सियासी सूरमाओं को नहीं लगती। ये ही तो सियासत का मिजाज है। इस चुनाव में निर्दलीयों की भूमिका बेहद अहम हो सकती है। करीब तीस सीटें ऐसी है जहाँ दोनों दलों के बागी या अन्य निर्दलियों ने समीकरण प्रभावित किये है। इनमें से कितने जीतकर विधानसभा पहुँचते है, ये बहुत कुछ तय करेगा। सो दावे के साथ कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।
सत्ता परिवर्तन का सियासी रिवाज
**आखिरी बार 1985 में सरकार रिपीट हुई थी और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे। उनके बाद कोई रिपीट नहीं कर पाया। अगर जयराम ठाकुर रिपीट करते है तो इतिहास बनाएंगे।
वर्ष पार्टी मुख्यमंत्री
1985 कांग्रेस वीरभद्र सिंह
1990 भाजपा शांता कुमार
1993 कांग्रेस वीरभद्र सिंह
1998 भाजपा प्रेम कुमार धूमल
2003 कांग्रेस वीरभद्र सिंह
2007 भाजपा प्रेम कुमार धूमल
2012 कांग्रेस वीरभद्र सिंह
2017 भाजपा जयराम ठाकुर