बांका हिमाचल:नमो नमो जी शंकरा
हिमालय की बर्फीली चोटियों में कई देव स्थान हैं। कहते है कि हिमाचल में साक्षात महादेव शिव भी विराजमान होते है। यहां पर शिव के कई ऐसे मंदिर है जिनका पौराणिक महत्व भी है और ये स्थान रह्सयमई भी है। बात चाहे किन्नर कैलाश की करे या पीर पंजाल की पहाडिय़ों के पूर्वी हिस्से में स्थित मणिमहेश की, महादेव है हर स्थान भक्तों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। देश -विदेश से लाखों शिवभक्त पुण्य अर्जित करने व शिवशंभु की कृपा प्राप्ति हेतु इन स्थानों के दर्शन करने पहुँचते है। हिमाचल प्रदेश शिवभूमि भी है।
1. किन्नर कैलाश : हिमालय की गोद में बसा किन्नर कैलाश हिमाचल के किन्नौर जिले में स्थित है। 79 फीट ऊंचा ये शिवलिंग बर्फीले पहाड़ों से घिरा हैं। अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण किन्नर कैलाश शिवलिंग चारों ओर से बादलों से घिरा रहता है। ये दुर्गम स्थान है, इसलिए यहां पर ज्यादा लोग दर्शन के लिए नहीं आते हैं। ख़ास बात ये है कि सूर्य उदय होने से पहले किन्नर कैलाश के आसपास की पहाड़ियों का रंग और कैलाश के रंग में भी काफी फर्क दिखाई देता है। अब इसे कोई चमत्कार कहे या कोई रहस्य या विज्ञान, इसका उत्तर तो शायद किसी के पास भी नहीं है। ये सत्य है कि यहाँ स्थित शिवलिंग बार-बार रंग बदलता है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग हर पहर में अपना रंग बदलता है।
2 . बिजली महादेव : महादेव का ये अनोखा मंदिर कुल्लू के ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास ही एक पहाड़ पर बना हुआ है। कहा जाता है कि यहां आसमानी बिजली गिरने की वजह से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। फिर मंदिर के पुजारी जब शिवलिंग को मक्खन से जोड़ते हैं, तो यह फिर से अपने पुराने रूप में आ जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और बिजली के आघात को वे स्वयं सहन कर लेते हैं।
3 . मणिमहेश : हिमाचल की पीर पंजाल की पहाड़ियों के पूर्वी हिस्से में स्थित है भरमौर, और यहाँ मणिमहेश के रूप में महादेव विराजते है। यहाँ महादेव अपने भक्तों को मणिः के रूप में दर्शन देते है। यही वजह है इस पवित्र स्थल का नाम मणि महेश पड़ा। मणिमहेश नाम का पवित्र सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। इस हिमाच्छादित शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 18,564 फीट है। स्थानीय लोग मानते हैं कि देवी पार्वती से विवाह करने के बाद भगवान शिव ने मणिमहेश नाम के इस पर्वत की रचना की थी। मणिमहेश पर्वत के शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं तथा ये अलौकिक प्रकाश उनके गले में पहने शेषनाग की मणि का है।
4 .चूड़धार : सिरमौर जिले की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार से शिव भक्तों की अटूट आस्था जुड़ी है। इस स्थल को चूर-चांदनी, चूर शिखर और चूर चोटी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 12000 फीट है। यहां पर भगवान शिव के रूप में ही देवता शिरगुल महाराज विराजमान है। चोटी पर स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए हर साल हजारों सैलानी यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए शिव भक्तों को 14 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। खास बात यह है की इस छोटी पर अधिक बर्फ गिरने से इस मंदिर के कपाट करीब तीन माह के लिए बंद हो जाते है।