न-को-दर ...मतलब ऐसा दरबार कहीं नहीं
- हर मजहब के लिए पूजनीय है बाबा मुराद शाह का सूफियाना दरबार
- मन्नत पूरी होने पर बैंड-बाजों के साथ आते हैं श्रद्धालु
न-को-दर ..मतलब ऐसा दरबार कहीं नहीं है। नकोदर में एक ऐसा सूफियाना दरबार है, जहां पर हर मजहब के लोग भरपूर आस्था से सिर झुकाते है। डेरा बाबा मुराद शाह के दर पर दुनिया भर से लोग नतमस्तक होने के लिए आते है। हिंदू, मुस्लिम, सिख; तमाम धर्मों के लोग यहां बाबा के सामने नतमस्तक होते है। लोग मन्नतें मांगते है और पूरी होने पर बैंड-बाजों के साथ माथा टेकने के लिए आते है। हर साल यहाँ दो दिवसीय मेला सजाया जाता है।
बाबा मुराद शाह को लेकर जो कथा प्रचलित है उसके मुताबिक आजादी से पहले फकीर बाबा शेरे शाह पाकिस्तान से पंजाब के नकोदर आकर रहने लगे। नकोदर की धरती पर ही उन्होंने इबादत करनी शुरू कर दी। बाबा शेरे शाह हमेशा एकान्त स्थान पर रहते थे और नहीं चाहते थे कि लोग उनके पास आये ताकि उनकी प्रार्थना में कोई विघ्न न पड़े। वह प्रार्थनाओं में रहते थे और वारिस शाह द्वारा लिखित पुस्तक "हीर" पढ़ते थे। नकोदर में ही जैलदारों का परिवार रहता था, जिन्होंने उनकी खूब सेवा की। प्रसन्न होकर उन्होंने अध्यात्मिकता को समर्पित बेटे के जन्म लेने का वरदान दिया। इसके बाद परिवार में एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम विद्या सागर रखा गया जो आगे चलकर बाबा मुराद शाह जी के नाम से जाने गए। बाबा मुराद शाह बाबा शेरे शाह के शिष्य बने और उन्होंने 24 साल की उम्र में फकीरी को चुना । भारत के विभाजन के दौरान बाबा शेरे शाह पाकिस्तान चले गये और बाबा मुराद शाह को दरबार की देखभाल करने और सूफीवाद का संदेश फैलाते रहने का आशीर्वाद दिया।
बाबा मुराद शाह के इस दुनिया से चले जाने के बाद साईं गुलाम शाह जिन्हें साईं लाडी शाह के नाम से भी जाना जाता है, दरबार के प्रमुख बने। साईं जी दरबार की देखभाल करते रहे और दरबार का निर्माण करते रहे। साईं जी बाबा मुराद शाह की याद में एक वार्षिक उर्स मेले का आयोजन करते थे, जिसमें वे कव्वाल और सूफी पंजाबी गायकों को प्रदर्शन के लिए आमंत्रित करते थे। क़रामत अली कव्वाल समूह ने अक्सर प्रदर्शन किया और आज भी करते हैं। साईं जी की पसंदीदा कव्वालियों में से एक थी 'मेरे लिखले गुलामा विच ना' जिसे साईं जी हर महफिल में जरूर सुनते थे। साई लाडी शाह भी पहली मई 2008 को गुरुवार को इस दुनिया से चले गए।
प्रसिद्द गायक गुरदास मान साईं जी के शिष्य बन गए और साईं जी गुरदास मान से बहुत प्यार करते थे। 2006 में, साईं ने एक कव्वाली महफ़िल के दौरान अपनी पगड़ी उतार दी थी और गुरदास मान के सिर पर रख दी। साईं लाडी शाह के इस दुनिया से चले जाने के बाद, गुरदास मान अब साईं लाडी शाह और बाबा मुराद शाह की याद में मेलों का नेतृत्व करते हैं। बाबा मुराद शाह का दरबार सभी धर्मों के लिए पूजनीय है। यहां पर होने वाले दो दिवसीय मेले में देश भर से लोग शामिल होते है।