एक ऐसा मंदिर जहां पति-पत्नी एक साथ पूजा करें तो बिछुडऩा माना जाता है तय

हिमाचल देवभूमि है। यहां चप्पे-चप्पे पर देवताओं का वास है। यही कारण है कि इस पावन स्थली को देवी-देवताओं ने अपना स्थान बनाया है। यूं भी हिमाचल की आवो-हवा और वातावरण अति शुद्ध है। प्रकृति यहां पर अपनी चरम छटा पर है। वहीं यहां प्रसिद्ध शक्तिपीठ भी विराजमान हैं। हर मंदिर में पूजन की अपनी मान्यताएं हैं। कांगड़ा में माता ब्रजेश्वरी की पिंडी रूप में पूजा होती है। चामुंडा में मां काली की पूजा होती है और ज्वाला में मां की पावन ज्योति की पूजा होती है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाएंगे जहां पति-पत्नी एक साथ दर्शन नहीं कर सकते हैं। जी हां दंपति को एक साथ दर्शन करने की आज्ञा नहीं है। हालांकि सारे वेदों और संस्कारों में पति-पत्नी के एक साथ पूजन का विधान बताया गया है मगर इस मंदिर में ऐसा करने से मनाही है। शिमला जिला में रामपुर में समुद्र तल से 11000 फुट की ऊंचाई पर मां दुर्गा का एक स्वरूप विराजमान है, जिसे श्राई कोटि माता के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में पति-पत्नी एक साथ दर्शन नहीं कर सकते। दोनों का यहां एक साथ पूजन करना निषेध माना गया है। हर बात के पीछे कोई अहम कारण होता है। सो इस मंदिर में भी कुछ ऐसी ही कहानी जुड़ी है, जिस कारण पति-पत्नी को एक साथ पूजन करने पर मनाही है।
इससे संबंधित जुड़ी कहानी के बारे में पुजारी वर्ग का कहना है कि एक बार भोलेनाथ ने अपने दोनों पुत्रों को गणेश जी तथा कार्तिकेय जी को समस्त ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के लिए कहा। पिता का आदेश पाकर ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी तो ब्रह्मांड का चक्कर काटने के लिए प्रस्थान कर गए, मगर गणेश जी ने अपने माता-पिता के चक्कर काटकर ही यह कह दिया कि मेरे लिए तो माता-पिता के चरण ही समस्त ब्रह्मांड के तुल्य हैं। ऐसे में ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी जब समस्त ब्रह्मांड का चक्कर काटकर वापस लौटे तो तब तक गणेश जी का विवाह हो चुका था। यह देखकर कार्तिकेय ने आजीवन विवाह न करने का प्रण ले लिया। श्राईकोटी मैं आज भी द्वार पर गणपति जी महाराज अपनी पत्नी सहित विराजमान हैं। कार्तिकेय जी के विवाह न करने के प्रण से माता पार्वती बहुत रुष्ट हो गई और उन्होंने कहा कि जो भी पति-पत्नी यहां उनके दर्शन करेंगे उस दम्पति का बिछुडऩा तय होगा। इस कारण आज भी यहां पति- पत्नी एक साथ पूजा नहीं करते। अगर फिर भी कोई ऐसा करता है मां के श्राप अनुसार उसे ताउम्र एक-दूसरे का वियोग सहना पड़ता है। यह मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है तथा मंदिर की देख- रेख माता भीमाकाली ट्रस्ट के पास है। घने जंगल के बीच इस मंदिर का रास्ता देवदार के घने वृक्षों से और अधिक रमणीय लगता है। शिमला पहुंचने के बाद यहां वाहन और बस के माध्यम से नारकंडा और फिर मशनु गावं के रास्ते से होते हुए यहां पहुंचा