टाट पटनगा से सजती है हिमाचली टोपी
किन्नौर, लाहुल-स्पीति, कुल्लू और आस-पास के ट्राइबल क्षेत्र के लोग हिमाचली टोपी पर सफ़ेद फूल लगाते है। क्या आप जानते है यह कौन सा फूल है? दरअसल ये फूल जैसा दिखने वाला एक बीज है। हालांकि इस का पौधा उन क्षेत्रों में नहीं मिलता है जहाँ ये फूल स्थानीय लोगों की पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। इस पेड़ का नाम है ओरोक्सिलम सिग्नम जिसे अरलू या टाट पटनगा भी कहा जाता है। यह बीज बड़ी तलवार के आकार की फली में मौजूद होते हैं। इसका प्रयोग ट्राइबल क्षेत्र के हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़े लोग भी करते है। सफेद फूल के बिना किन्नौरी टोपी की शान अधूरी मानी जाती है। इसे किन्नौर में ख्वार और सिरमौर में टाट पटनगा के नाम से जाना जाता है। देश-विदेश में पहचान पाने वाली किन्नौरी टोपी पर सफेद फूल किन्नौर में न होकर जिला सिरमौर के मैदानी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इस फूल को किन्नौर में ख्वार और चाम्खा, सोलन में टाट मरंगा जबकि सिरमौर में टाट पटनगा के नाम से जाना जाता है।
अरलू एक छोटा से मध्यम आकार का पर्णपाती पेड़ है जो 12 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। हैरानी की बात है कि यह समशीतोष्ण क्षेत्र का पौधा नहीं है। यह लगभग सभी उपोष्णकटिबंधीय भारत में 1,200 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। इसमें बड़े यौगिक पत्ते होते हैं, जो कभी-कभी एक मीटर लंबा भी हो सकता है। पेड़ बड़े बैंगनी फूल धारण करता है। फली बड़ी, 60-90 सेमी लंबी और तलवार के आकार की होती है। ये फली के अंदर पंखों की तरह होते है। इसे निकालने के लिए चाकू से खोल दिया जाता है। इसके बाद इसे पिरोने के लिए पेटल्स को बीच में रखकर गेहूं के तनों से घुमाकर गुथ की तरह बनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में "तेकेमा" कहा जाता है। इसके बाद इसमें पसंद अनुसार बखरी कान को सम्मिलित किया जाता है जिसे वैज्ञानिक रूप से "चोरिज़िया स्पीसीओसा" के नाम से जाना जाता है। बखरी कान कपास की गेंदों का प्रतिबिंब देती हैं। इन्हें गेंद के रूप में टैग करके बनाया जाता है और विभिन्न रंगों में रंगा जाता है। इस सफेद फूल और बकरी कान से बने फूल के बिना हिमाचली टोपी की शान अधूरी मानी जाती है।