भटियात में कोई नहीं लगा पाया जीत की हैट्रिक, क्या जरियाल रचेंगे इतिहास ?
भटियात विधानसभा सीट पर पुराने प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने-सामने है। भाजपा से यहाँ विक्रम जरियाल मैदान में है, तो कांग्रेस से कुलदीप पठानिया। पिछले दो चुनावों के नतीजों पर गौर करे तो यहाँ विक्रम जरियाल कमल खिलाने में सफल रहे है। कुलदीप 2012 में सिर्फ 112 वोट से हारे थे, जबकि 2017 में ये अंतर सात हजार के करीब था। 2017 में चुनाव जीतने के बाद भाजपा विधायक विक्रम जरियाल को मंत्री पद का दावेदार भी माना जा रहा था, लेकिन भाजपा ने जिला से चुराह विधायक हंसराज को डिप्टी स्पीकर बनाया और जरियाल के हाथ खाली रहे। अब फिर जरियाल जीत की हैट्रिक लगाने को मैदान में है। इस बार भी यहाँ नजदीकी मुकाबला देखने को मिल रहा है। विक्रम जरियाल और कुलदीप पठानिया के बीच कांटे का मुकाबला अपेक्षित है।
भटियात विधानसभा में राजपूत व अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता है। अगर 2012 के विधानसभा को देखें तो जरियाल यह चुनाव सिर्फ 112 मतों से जितने में सफल रहे थे, जबकि चार बार के विधायक रहे पठानिया आसानी से हार गए थे। इसका कारण था यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार रहे भूपिंदर सिंह चौहान, जिन्होंने दस हज़ार के आस-पास मत प्राप्त किये थे। साफ़ तौर पर मतों का विभाजन यहाँ दिखता है। 2017 में फिर जरियाल को यहाँ के लोगों ने विधानसभा पहुँचाया। पर इस बार भटियात में विक्रम जरियाल की राह आसान नहीं दिख रही। दरअसल प्रदेश की अपनी ही सरकार होने के बावजूद भटियात क्षेत्र के लिए कोई बड़ी उपलब्धि लाना भी उनके लिए दूर की कौड़ी साबित हुआ है। कांगड़ा और चंबा की सीमा से लगते इस विधानसभा क्षेत्र के बाबत अगर बुनियादी सुविधाओं की बात की जाए तो अच्छे स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए यहाँ के बाशिंदों को टाँडा मेडिकल कॉलेज कांगड़ा और धर्मशाला का रुख करना पड़ता है। अगर इस क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों, आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियो, प्लस टू किए गए स्कूलों की उद्घाटन पट्टिकाओं पर नज़र डालें तो ज्यादातर पर कुलदीप पठानिया का नाम दर्ज है।
भटियात के इतिहास पर निगाह डाले तो किसी भी नेता ने यहाँ जीत की हैट्रिक नहीं लगाईं है। शिव कुमार यहाँ से 1977 और 1982 में जीते लेकिन 1985 का चुनाव हार गए। हालांकि 1990 में वे फिर जीते। इसी तरह 1985 और 1993 में जीतने के बाद कुलदीप पठानिया 2003 और 2007 में लगातार दो चुनाव जीते लेकिन 2012 में हार गए। अब विक्रम जरियाल यहाँ से लगातार दो चुनाव जीत चुके है और यदि इस बार भी जीते तो वे यहाँ जीत की हैट्रिक लगाने वाले पहले नेता होंगे।