इस सीट पर राजपरिवार ने कभी कमल नहीं खिलने दिया
1980 में भाजपा की स्थापना हुई थी और हिमाचल प्रदेश में 1982 के अपने पहले विधानसभा चुनाव में ही पार्टी ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी। प्रदेश में पार्टी का जनधार लगातार बढ़ता रहा और एक- एक कर कांग्रेस के कई मजबूत गढ़ों में भाजपा ने सेंध लगाईं। पर एक सीट ऐसी है जिसे अब तक भाजपा जीत नहीं पाई है और ये सीट है रामपुर। इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ 1977 की जनता लहर में हारी थी। इसके बाद हर बार यहाँ कांग्रेस ही जीती है। दरअसल रामपुर सीट पर रामपुर बुशहर रियासत के राजा और हिमाचल की सियासत के भी राजा रहे स्व वीरभद्र सिंह का ख़ासा प्रभाव रहा है। हालांकि आरक्षित होने के चलते इस सीट पर कभी राजपरिवार का कोई सदस्य खुद चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन चेहरा चाहे कोई भी रहा हो यहां वोट राजपरिवार के नाम पर ही पड़ते आएं है। अब वीरभद्र सिंह के निधन के बाद भी इस सीट पर राजपरिवार का प्रभाव दिखता है। पिछले साल हुए मंडी संसदीय उपचुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस को रिकॉर्ड लीड मिली थी। इस सीट के इतिहास पर निगाह डाले तो 1982 से लेकर 2003 तक यहाँ कांग्रेस के सिंघीराम ने लगातार जीत दर्ज की। सिंघीराम कभी वीरभद्र सिंह के करीबी थे, लेकिन दोनों में दूरियां बढ़ी तो 2007 में राज परिवार का आशीर्वाद नंदलाल को मिला। तब से नंदलाल तीन बार जीत चुके है और इस मर्तबा उन्होंने अपना चौथा चुनाव लड़ा है।
पर इसी रामपुर सीट पर एक आंकड़ा कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। 2003 के चुनाव में कांग्रेस 17247 वोट से इस सीट पर जीती थी। 2007 में कांग्रेस ने यहाँ से प्रत्याशी बदला, और नंदलाल को मैदान में उतारा। नंदलाल को जीत तो मिली लेकिन अंतर घटकर 6470 वोट का रह गया। 2012 में नंदलाल 9471 वोट से जीते, पर 2017 में अंतर 4037 वोट का ही रहा। अब इस बार इस क्षेत्र में नंदलाल को लेकर ख़ासा विरोध दिखा है। हालांकि होलीलॉज से नजदीकी नंदलाल के काम आई और वे फिर टिकट ले आए, किन्तु पहली बार इस सीट पर नजदीकी मुकाबले के कयास लग रहे है। उधर इस बार भाजपा ने रामपुर विधानसभा सीट से युवा चेहरे कौल सिंह नेगी को मैदान में उतारा है। इसमें कोई संशय नहीं है कि कौल सिंह नेगी ने पुरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा है। अब उनकी मुहीम रंग लाती है या नहीं, इसके लिए फिलवक्त आठ दिसंबर का इन्तजार करना होगा।