पूर्व विधायक की पत्नी क्या करवा पाएंगी भाजपा की वापसी
बड़सर विधानसभा सीट वो सीट है जहाँ अक्सर बगावत और भीतरघात के कारण राजनितिक दलों को हार का ही सामना करना पड़ा है। कभी ये सीट भाजपा की गढ़ थी। 1980 में भाजपा का गठन हुआ और उसके बाद 1982 में हुए पहले चुनाव में ही भाजपा ने यहाँ जीत के साथ खाता खोला था। 2007 तक यहाँ भाजपा सिर्फ दो चुनाव हारी थी,और 1998 से 2007 तक तीन चुनाव जीतकर बलदेव शर्मा यहाँ जीत की हैट्रिक लगा चुके थे। पर परिसीमन के बाद ये सीट बड़सर हो गई और यहाँ के समीकरण भी बदल गए। 2012 में कांग्रेस के इंद्रदत्त लखनपाल ने लम्बे अंतराल के बाद इस सीट को कांग्रेस के नाम किया। 2017 में फिर इंद्रदत्त लखनपाल ने बड़सर विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इस बार फिर कांग्रेस से इंद्रदत्त लखनपाल मैदान में है।
उधर भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे राकेश शर्मा बबली के आकस्मिक निधन के बाद भाजपा ने पूर्व विधायक बलदेव शर्मा की पत्नी माया शर्मा को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा से टिकट की मांग कर रहे राकेश बबली के भाई संजीव ने टिकट न मिलने पर इस बार निर्दलीय ताल ठोकी है। निसंदेह बलदेव शर्मा की क्षेत्र में पकड़ है जिसका लाभ माया शर्मा को मिल सकता है, लेकिन संजीव के मैदान में होने से भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ा है। ऐसे में जाहिर है कि इसका सीधा लाभ कांग्रेस के इंद्रदत्त लखनपाल को मिलता दिख रहा है। बहरहाल इस बार इंद्रदत्त लखनपाल जीत की हैट्रिक लगा पाते है या नहीं, ये तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस और लखनपाल दोनों जीते, तो भी मंत्री पद पक्का नहीं !
अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है और इंद्रदत्त लखनपाल भी अपना चुनाव जीत जाते है, तो उन्हें अहम् दायित्व मिल सकता है। पर मसला ये है कि जिला हमीरपुर में कांग्रेस के तीन ऐसे नेता है जिनको सरकार में बड़ा दायित्व मिलने के कयास है। लखनपाल के अलावा चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू और प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र राणा भी हमीरपुर जिला से ही है। ऐसे में अगर कांग्रेस जीतती है और ये सभी नेता भी चुनाव जीत जाते है, तब भी जीत की हैट्रिक के बावजूद लखनपाल मंत्री पद से वंचित रह सकते है।