सियासत और शायरी
सियासत और शायरी का रिश्ता बहुत पुराना है। कभी कुछ लफ्ज़ आवाम कि आवाज़ बन जाते हैं, तो कभी कुछ हुकूमत के उज़्र। बड़े आंदोलनों के नारों से लेकर संसद के इशारों तक, सियासत का शायराना मिजाज़ हर किसी को लुभाता है। प्रस्तुत है सियासत पर लिखे कुछ उम्दा शेर-
1 जंग में कत़्ल सिपाही होंगे
सुर्खरु ज़िल्ले इलाही होंगे
मौज रामपुरी
2 दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
बशीर बद्र
3 ऐ क़ाफ़िले वालों, तुम इतना भी नहीं समझे
लूटा है तुम्हे रहज़न ने, रहबर के इशारे पर
तरन्नुम कानपुरी
4 कच्चे मकान जिनके जले थे फ़साद में
अफ़सोस उनका नाम ही बलवाइयों में था
नईम जज़्बी
5 औरों के ख़यालात की लेते हैं तलाशी
और अपने गरेबान में झाँका नहीं जाता
मुज़फ्फर वारसी
6 एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
मुन्नवर राना
7 काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ.
शकील बदायुनी
8 तूफ़ान में हो नाव तो कुछ सब्र भी आ जाए
साहिल पे खड़े हो के तो डूबा नहीं जाता
मुज़फ़्फ़र वारसी
9 हुकूमत से एजाज़ अगर चाहते हो
अंधेरा है लेकिन लिखो रोशनी है
अशरफ़ मालवी
10 तबाह कर दिया अहबाब को सियासत ने
मगर मकान से झंडा नहीं उतरता है
शकील जमाली
11 कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर
क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या
सागर ख़य्यामी
12 हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
निदा फ़ाज़ली
13 नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
राहत इंदौरी
14 कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते
अज्ञात
15 देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें
ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
16 धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
जावेद अख़्तर
17 इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले
नादिम नदीम
18 ये सच है रंग बदलता था वो हर इक लम्हा
मगर वही तो बहुत कामयाब चेहरा था
अम्बर बहराईची
19 सियासत की दुकानों में रोशनी के लिए,
जरूरी है कि मुल्क मेरा जलता रहे।
अज्ञात
20 कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये,
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये।
दुष्यंत कुमार