अल्लामा इक़बाल के मशहूर शेर जो आपको बना देंगे उनका मुरीद
जब-जब किसी शायर ने अपनी क़लम उठाई है, तब-तब ज़िंदगी के किसी न किसी पहलू को शेर के रूप में हमारे सामने पेश किया है। ऐसे ही एक शायर हैं अल्लामा इक़बाल, जिन्होंने सिर्फ़ प्यार ही नहीं, बल्कि जीवन के हर एक भाव को अपने शेर में ढाला है। अल्लामा इकबाल का जन्म पंजाब, पाकिस्तान में 9 नवंबर 1877 को हुआ था और उनका देहांत 21 अप्रैल 1938 में हुआ था। इकबाल की रचनाएं उम्मीदों के साथ जिंदगी में हमेशा नए रास्तों की ईजाद करती रहीं। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है। उनके उन्हीं शेर में से कुछ आज हम आपके लिए लेकर आए हैं।
1. सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा।
2. लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िंदगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी!
3. मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए,
कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है।
4. ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
5. जफा जो इश्क में होती है वह जफा ही नहीं,
सितम न हो तो मुहब्बत में कुछ मजा ही नहीं।
6. सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं,
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं।
7. माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।
8. नशा पिला के गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
9. ज़ाहिद-ए-तंग-नज़र ने मुझे काफ़िर जाना,
और काफ़िर ये समझता है मुसलमान हूँ मैं।
10. अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल,
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे।
11. दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।
12. तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।
13. जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी,
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो।
14. कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है,
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है।
15. जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में,
बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते।