महादेवी वर्मा की पांच बेहतरीन रचनाएँ
महादेवी वर्मा छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। पढ़ें महादेवी वर्मा की लिखी कुछ श्रेष्ठ रचनाएं।
मैं नीर भरी
मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा;
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक-से जलते
पलकों में निर्झरिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत-भरा,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,
नभ के नव रँग बुनते दुकूल,
छाया में मलय-बयार पली!
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार, बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी
नवजीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना;
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्रोत :
पुस्तक : संधिनी (पृष्ठ 93) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन संस्करण : 2012
झिलमिलाती रात
झिलमिलाती रात मेरी!
साँझ के अंतिम सुनहले
हास-सी चुपचाप आकर,
मूक चितवन की विभा—
तेरी अचानक छू गई भर;
बन गई दीपावली तब आँसुओं की पाँत मेरी!
अश्रु घन के बन रहे स्मित—
सुप्त वसुधा के अधर पर
कंज में साकार होते
वीचियों के स्वप्न सुंदर,
मुस्कुरा दी दामिनी में साँवली बरसात मेरी!
क्यों इसे अंबर न निज
सूने हृदय में आज भर ले?
क्यों न यह जड़ में पुलक का,
प्राण का संचार कर ले?
है तुम्हारी श्वास के मधु-भार-मंथर वात मेरी!
स्रोत :
पुस्तक : आत्मिका (पृष्ठ 48) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : राजपाल प्रकाशन संस्करण : 2015
क्यों अश्रु न हों शृंगार मुझे!
क्यों अश्रु न हों शृंगार मुझे!
रंगों के बादल निस्तरंग,
रूपों के शत-शत वीचि-भंग,
किरणों की रेखाओं में भर,
अपने अनंत मानस पट पर,
तुम देते रहते हो प्रतिपल,
जाने कितने आकार मुझे!
हर छवि में कर साकार मुझे!
लघु हृदय तुम्हारा अमर छंद,
स्पंदन में स्वर-लहरी अमंद,
हर स्वप्न स्नेह का चिर निबंध,
हर पुलक तुम्हारा भाव-बंध,
निज साँस तुम्हारी रचना का
लगती अखंड विस्तार मुझे!
हर पल रस का संसार मुझे!
मेरी मृदु पलकें मूँद-मूँद,
छलका आँसू की बूँद-बूँद,
लघुतम कलियों में नाप प्राण,
सौरभ पर मेरे तोल गान,
बिन माँगे तुमने दे डाला,
करुणा का पारावार मुझे!
चिर सुख-दुख के दो पार मुझे!
मैं चली कथा का क्षण लेकर,
मैं मिली व्यथा का कण देकर,
इसको नभ ने अवकाश दिया,
भू ने इसको इतिहास किया,
अब अणु-अणु सौंपे देता है
युग-युग का संचित प्यार मुझे!
कहकर पाहुन सुकुमार मुझे!
रोके मुझको जीवन अधीर,
दृग-ओट न करती सजग पीर,
नूपुर से शत-शत मिलन-पाश,
मुखरित, चरणों के आस-पास,
हर पग पर स्वर्ग बसा देती
धरती की नव मनुहार मुझे!
लय में अविराम पुकार मुझे
क्यों अश्रु न हों शृंगार मुझे!
स्रोत :
पुस्तक : संधिनी (पृष्ठ 128) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन संस्करण : २०१२
फिर विकल हैं प्राण मेरे!
फिर विकल हैं प्राण मेरे!
तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या है!
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?
क्यों मुझे प्राचीन बनकर
आज मेरे श्वास घेरे?
सिंधु की निःसीमता पर लघु लहर का लास कैसा?
दीप लघु शिर पर धरे आलोक का आकाश कैसा?
दे रही मेरी चिरंतनता
क्षणों के साथ फेरे!
बिंबग्राहकता कणों को शलभ को चिर साधना दी,
पुलक से नभ भर धरा को कल्पनामय वेदना दी;
मत कहो हे विश्व 'झूठे
हैं अतुल वरदान तेरे!'
नभ डुबा पाया न अपनी बाढ़ में भी क्षुद्र तारे,
ढूँढ़ने करुणा मृदुल घन चीर कर तूफान हारे;
अंत के तम में बुझे क्यों
आदि के अरमान मेरे!
स्रोत :
पुस्तक : संधिनी (पृष्ठ 95) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन संस्करण : २०१२
इन आँखों ने देखी न राह कहीं
इन आँखों ने देखी न राह कहीं
इन्हें धो गया नेह का नीर नहीं,
करती मिट जाने की साध कभी,
इन प्राणों को मूक अधीर नहीं,
अलि छोड़ो न जीवन की तरणी,
उस सागर में जहाँ तीर नहीं!
कभी देखा नहीं वह देश जहाँ,
प्रिय से कम मादक पीर नहीं!
जिसको मरुभूमि समुद्र हुआ
उस मेघव्रती की प्रतीति नहीं,
जो हुआ जल दीपकमय उससे
कभी पूछी निबाह की रीति नहीं,
मतवाले चकोर ने सीखी कभी;
उस प्रेम के राज्य की नीति नहीं,
तूं अकिंचन भिक्षुक है मधु का,
अलि तृप्ति कहाँ जब प्रीति नहीं!
पथ में नित स्वर्णपराग बिछा,
तुझे देख जो फूली समाती नहीं,
पलकों से दलों में घुला मकरंद,
पिलाती कभी अनखाती नहीं,
किरणों में गुँथी मुक्तावलियाँ,
पहनाती रही सकुचाती नहीं,
अब फूल गुलाब में पंकज की,
अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!
करते करुणा-घन छाँह वहाँ,
झुलसाता निदाध-सा दाह नहीं
मिलती शुचि आँसुओं की सरिता,
मृगवारि का सिंधु अथाह नहीं,
हँसता अनुराग का इंदु सदा,
छलना की कुहू का निबाह नहीं,
फिरता अलि भूल कहाँ भटका,
यह प्रेम के देश की राह नहीं!
स्रोत :
पुस्तक : संधिनी (पृष्ठ 48) रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन संस्करण : 2012