जगजीत जैसा न कोई था और न कोई होगा
हिंदुस्तान में जब भी गजल गायकी का जिक्र होता है तो बात अमूमन जगजीत सिंह के नाम से शुरू होती है और उन्हीं पर खत्म हो जाती है। दरअसल हिंदुस्तान में गजल गायक तो बहुत हुए लेकिन ऐसे गायक बेहद कम है जिन्होंने सिर्फ ग़ज़ल ही गाई हो। जगजीत सिंह ऐसा ही नाम है। वो जगजीत सिंह ही थे जिन्होंने गजल से आम आदमी का तार्रुफ़ करवाया या यूँ कहे कि हर आम और ख़ास वर्ग को गजल के आगोश में लिया। जिस सादगी के साथ जगजीत सिंह ने गजल गाई, वैसा न तो उनसे पहले कभी हुआ था और उनके जाने के बाद होता दिखा। एक से बढ़कर एक अजीम शायरों की गजलों को जगजीत आवाज देते गए और जग को अपना दीवाना बनाते गए। जगजीत बेहद ख़ास थे, नायाब थे और ये ही कारण है कि उनके इंतकाल को बेशक ग्यारह साल बीत गए हो लेकिन संगीत जगत में उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर पाया।
साल था 1941 और फरवरी महीने की आठ तारीख थी जब राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में सरदार अमर सिंह धमानी और बच्चन कौर के यहां भारतीय संगीत जगत को जीतने वाले जगजीत सिंह का जन्म हुआ। पिता चाहते थे कि जगजीत पढ़-लिखकर प्रशासनिक सेवा में जाए, मगर जगजीत की मंजिल तो कुछ और ही थी। शुरू से ही मन स्वर, लय और ताल में लगता था। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा से मिली। फिर उस्ताद जमाल खान से भी उन्होंने संगीत के गुर सीखे। उस अल्हड़ उम्र में ही जगजीत ने संगीत को अपनी जिंदगी बना लिया था। कहते है जगजीत पैसे चुराकर फिल्में देखने जाते थे, क्योंकि फिल्मों में अच्छा संगीत सुनने को मिलता था। एकबार तो सिनेमा हॉल में पिता ने पकड़ लिया और पीटते हुए घर ले गए, मगर संगीत के जूनून में कोई कमी नहीं आई। पढ़ाई-लिखाई के इस दौर में ही पहली मोहब्बत भी हुई, लेकिन अंजाम तक नहीं पहुंच सकी।
कई साक्षात्कारों में जगजीत सिंह ने खुद बताया था कि साल 1965 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के नाम पर वे समय काट रहे थे। जब परीक्षाओं का समय आया, तब उन्होंने सोचा कि पढ़ाई कुछ की नहीं है तो परीक्षा में बैठने का क्या फायदा ? सो परीक्षा में बैठे ही नहीं।
जगजीत ने अपना सामान उठाया और अपनी किस्मत आजमाने के लिए मायानगरी मुंबई का रास्ता पकड़ लिया। पर मंजिल आसां नहीं थी। मुंबई पहुंचकर जगजीत का संघर्ष शुरू हुआ। शुरुआत में उन्होंने छोटी-छोटी पार्टियों में थोड़े से पैसों के लिए गाना शुरू किया और एक मौके की तलाश करते रहे। मुंबई में जगजीत सिंह का संघर्ष इसलिए भी ज्यादा था क्यों कि उनके गाने का अंदाज बिलकुल जुदा था। उनका संघर्ष रंग लाया 1965 में जब उनका पहला रिकॉर्ड निकला और इसके दो वर्ष बाद एक और रिकॉर्ड आया। पर इन दोनों से उन्हें ज्यादा पहचान नहीं मिली। फिर साल 1967 में जगजीत सिंह के जीवन में चित्रा सिंह आई, जिन्हें बाद में जगजीत ने गजल गायकी की शिक्षा दी और फिर 1969 में दोनों ने शादी कर ली। चित्रा पहले से ही शादीशुदा थी और कहते है उनके तलाक के बाद जगजीत ने उनके पहले पति से इजाजत लेकर उनसे शादी की थी।
जगजीत सिंह को असली पहचान 1976 में मिली जब उनका पहला लॉन्ग प्ले एल्बम ‘‘द अनफॉरगेटेबल्स’’ आया, जिसमें उनके साथ पत्नी चित्रा की आवाज भी शामिल थी। इस नायाब एल्बम में फिराक गोरखपुरी, जिगर मुरादाबादी, अमीर मिनाई, तारिक बदायुनी, सुदर्शन फाकिर जैसे बड़े गजलकारों की गजलों को जगजीत-चित्रा की आवाज ने अलहदा अंदाज में गाया इस एल्बम की सफलता के बाद जगजीत सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके साथ ही जगजीत -चित्रा की जोड़ी भी हिट हो गई और इस जोड़ी ने एक के बाद एक कई हिट गीत-गजल दिए |सनं 1981 में आया जगजीत सिंह का गीत "होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो " फिल्म ‘प्रेम गीत’ का ये गीत सच में अमर हो गया। 1982 में ‘साथ-साथ’ फिल्म में जगजीत सिंह और चित्रा के कई गीत हिट हुए। 'ये तेरा घर ये मेरा घर हो' या 'तुमको देखा तो ये खयाल आया' इस फिल्म के गीत आज भी हरदिल अजीज है। फिर 1983 में आई महेश भट्ट की फिल्म ‘अर्थ’। फिल्म में कुल पांच गाने थे, जिनमें से तीन थी कैफी आजमी की गजले। 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो', 'झुकी झुकी सी नजर', 'कोई ये कैसे बताए', कैफ़ी साहब की इन ग़ज़लों ने जगजीत सिंह को लोकप्रियता के क्षितिज पर पंहुचा दिया। । जगजीत ने सन् 1987 में ‘बियोंड टाइम’ रिकॉर्ड किया, यह किसी भी भारतीय संगीतकार की पहली डिजिटल सीडी थी। 10 अक्टूबर 2011 को जगजीत सिंह का निधन हुआ और तब तक वे लगातार अपनी नायाब गायकी से संगीत जगत को गुलजार करते रहे। जब तक जगजीत रहे बुलंदियों पर रहे और आज अपने निधन के इतने वर्ष बीत जाने पर भी जगजीत ही गजल सम्राट है।
आम आदमी की प्ले लिस्ट में गजल को शामिल करवाया :
जगजीत सिंह ने गजल गायकी को बेहद सरल किया और गजल को आम आदमी की प्ले लिस्ट में शामिल करवाया। उनके गायन में शास्त्रीय संगीत की बुनियाद तो रही, लेकिन उसके अनावश्यक बोझ से गजल को मुक्त कर उसे सहज बनाया। वे वायलिन जैसे आधुनिक उपकरणों को प्रयोग में लाए। वो जगजीत ही थे जिन्होंने गजल में भी कोरस की का इस्तेमाल किया। कई गज़लकारों की ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज देकर अमर किया। उनका गजल गाने का तरीके बेशक अन्य प्रबुद्ध गजल गायकों जैसा नहीं था और कई लोगों ने उनकी आलोचना भी की, लेकिन न तो उन्होंने अपना तरीका बदला और न ही उनकी लोकप्रियता में कमी आई।
फिर कभी स्टेज पर नहीं लौटी चित्रा :
जगजीत सिंह और चित्रा की जोड़ी बुलंदियों को छू ही रहे थी कि उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी हो गई। 1990 में उनका 18 वर्षीय बेटा विवेक एक दुर्घटना में मारा गया। इस सदमे ने उनकी जिंदगी पर विराम लगा दिया । चित्रा इसके बाद फिर कभी दोबारा स्टेज पर नहीं लौटी। जगजीत सिंह ने भी कई महीनों तक बोलना बंद कर दिया। वक्त गुजरने के बाद जगजीत सिंह वापस लौटे और संगीत के जरिये अपने दर्द को भुलाने में जुट गए। फिल्म दुश्मन में शामिल हुई उनकी गजल 'चिट्ठी न कोई सन्देश' जिस दर्द को बयां करती है उसे उनकी बेटे के निधन से जोड़कर देखा जाता है।
कई सम्मान मिले :
सन 1998 में जगजीत सिंह को मध्य प्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर सम्मान से नवाजा था। भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन 2003 में जगजीत सिंह को पद्म भूषण सम्मान से पुरस्कृत किया गया था। वही सन 2005 में दिल्ली सरकार द्वारा गालिब अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था।इसके अलावा राजस्थान सरकार ने मरणोपरांत जगजीत सिंह को अपना उच्चतम नागरिक पुरस्कार यानी राजस्थान रत्न पुरस्कार प्रदान किया। जगजीत सिंह के सम्मान में भारत सरकार द्वारा 2014 में उनकी तस्वीर लगी एक डाक टिकट भी जारी की थी ।