हिमाचली लोक संस्कृति के ध्वजवाहक थे लायक राम रफीक
पहाड़ी लोक संस्कृति के नायक लायक राम रफ़ीक़ वो शक्सियत है जिन्होंने अपने जीवन का अंतिम दशक खुद तो अंधेरे में बिताया, मगर वो पहाड़ी गायकी को वो पहचान दे गए जो आज भी रोशन है। हिमाचल में पहाड़ी नाटियों का दौर बदलने वाले रफ़ीक़ एक ऐसे गीतकार थे जिन्होंने अपने जीवन में करीब 2500 से अधिक पहाड़ी गीत लिखकर इतिहास रचा। हिमाचल में शायद ही ऐसा कोई गायक होगा, जिसने पारंपरिक गीतों के पीछे छिपे इतिहास के जन्मदाता लायक राम रफीक के गानों को न गाया हो। आज भी रफीक के लिखे गानों को गुनगुनाया जाता है, गाया जाता है। उनके लिखे अमर गीत अब भी महफिलें लूटते है। प्रदेश का ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो जहां शादी के डी जे या स्कूलों के सांस्कृतिक या अन्य आयोजनों में रफ़ीक के गीतों ने रंग न जमाया हो। नीलिमा बड़ी बांकी भाई नीलिमा नीलिमा.., होबे लालिए हो जैसे गीत हो या मां पर लिखा मार्मिक गीत 'सुपने दी मिले बोलो आमिएं तू मेरिए बेगे बुरो लागो तेरो आज, जिऊंदिए बोले थी तू झालो आगे रोएला बातो सच्ची निकली से आज' ... रफीक कई कालजयी गीत लिख गए। रफीक आकाशवाणी शिमला से गायक और अपने गीतों की अनेक लाजवाब धुनों के रचयिता भी रहे।
अपना पूरा जीवन पहाड़ी संगीत पर न्योछावर करने वाले लायक राम रफीक का अंतिम समय बेहद दुखद व कठिनाओं से भरा रहा। ग्लूकोमा ने उनकी आंखों की रोशनी चुरा ली थी। उन्हें अपना अंतिम समय अँधेरे में बिताना पड़ा, मगर ये अंधापन भी उन्हें अपने आजीवन जुनून का पीछा करने से नहीं रोक सका - अंतिम सांस तक वो पहाड़ी गीत लिखते रहे। रफ़ीक़ शिमला में ठियोग के पास एक छोटे से गाँव (नालेहा) में रहा करते थे। कृषि परिवार में जन्मे और स्थानीय स्कूल में पढ़े लिखे। एक पुराने साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि वे मीट्रिक की परीक्षा भी पास नहीं कर पाए थे, स्कूल की किताबों में उनका मन ही नहीं लगता था। पर ठियोग की लाइब्रेरी में रखी साहित्यिक किताबों से मजबूत रिश्ता था। रफ़ीक़ पूरा दिन उस लाइब्रेरी में बैठ उर्दू और हिंदी की कविताओं से भरी किताबें पढ़ते रहते। इन्हीं कविताओं को पढ़ रफ़ीक़ को पहाड़ी बोली में कविताएं लिखने की प्रेरणा मिली और बस तभी से रफ़ीक़ ने अपने ख्यालों को शब्दों के ज़रिये गीत माला में पिरोना शुरू कर दिया।
हजारों लोकप्रिय गीतों के गीतकार लायक राम रफ़ीक उपेक्षा का शिकार रहे है। उनके गीतों को आवाज देकर न जाने कितने गायकों ने शोहरत कमाई और रफीक के हिस्से आई सिर्फ उपेक्षा। ये बेहद विडम्बना का विषय है कि रफीक के अनेक लोकप्रिय गीतों के विवरण में उनका नाम तक दर्ज नहीं है। न सिर्फ रफीक साहब बल्कि पहाड़ी संगीत जगत में गीतकार सबसे अधिक उपेक्षित वर्ग है।
एसडी कश्यप को देते थे इंडस्ट्री में लाने का श्रेय :
रफीक ने 78 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस लेने से पहले तक लगभग 2,500 गीत लिखे थे। रफ़ीक़ ने न सिर्फ नाटियों (लोक गीतों) की लोकप्रियता को बढ़ाने का कार्य किया बल्कि उन्हें व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। रफीक के हिमाचल म्यूजिक इंडस्ट्री में आने से पहले, संगीत निर्देशक एसडी कश्यप ने मंडी में हिमाचल प्रदेश का पहला स्टूडियो ( साउंड एंड साउंड स्टूडियो खोला था )। रफीक अक्सर इंटरव्यूज में ये कहा करते थे की उन्हें रचनाकार बनाने में एसडी कश्यप का बड़ा हाथ था। वे ही उन्हें इस इंडस्ट्री में लेकर आए थे। वे ठियोग से मंडी जा उन्हीं के स्टूडियो में अपने गाने रिकॉर्ड करवाया करते। रफ़ीक़ ने एक लम्बे अर्से तक आकाशवाणी में बतौर गायक भी कार्य किया।
रफीक के लिखे गीत सबको समझ आये:
हिमाचली नाटियों में वास्तविक प्रेम कहानियां, बहादुरी और अच्छे कामों की यादें संजोई जाती है। उस दौर में पहाड़ी नाटियों से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या थी भाषा। दरअसल हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में हर 10-15 मील के बाद भाषा बदल जाती है। इसलिए, किसी विशेष क्षेत्र की भाषा में बनाए गए और गाए गए पारंपरिक गीतों को अन्य क्षेत्रों में उतना सराहा और समझा नहीं जाता था। इस दुविधा को दूर करने में रफीक का बड़ा हाथ रहा। वो ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर लिखते की हर किसी को वो समझ आ जाए। पारंपरिक नाटियों से हटकर, उन्होंने रोमांटिक गीतों को अपनी खूबी बना लिया और उन्हें एक सरल भाषा में लिखा। हर कोई उनके लिखे गाने समझने व गुनगुना लगा। ऊपरी शिमला क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी। इसने उन्हें नाटियों के लिए एक बड़ा दर्शक वर्ग बनाने में मदद की, जिससे यह शैली व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक हो गई। उन लिखे गीतों को गाना हर नए पुराने सिंगर की डिमांड बन गई। गीत लिखने और बनाने के अपार प्रेम ने उन्हें पहाड़ी गीतों का सबसे उम्दा लेखक बना दिया।