अद्धभूत गोथिक वास्तुकला और ब्रिटिश अतीत का चलचित्र है शिमला का टाउन हॉल

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला ऐतिहासिक गोथिक वास्तुकला भवनों के लिए विख्यात है। अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला अथाह इतिहास समेटे हुए है। शिमला शहर में अंग्रेजी शासनकाल में जो निर्माण कार्य हुए हैं वह आज भी अपनी अद्भुत कला शैली के लिए विश्व भर में विख्यात हैं। शिमला में कई स्मारक और इमारतें हैं जिन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान सर्वश्रेष्ठ वास्तुकारों द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है। इन्हीं विशाल इमारतों में से एक हैं शिमला की प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत टाउन हॉल। ये इमारत शिमला के गौरवशाली अतीत का प्रमाण हैं जिसे उस युग के बेहतरीन कारीगरों द्वारा बनाया गया। टाउन हॉल शिमला का निर्माण 1910 में भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था। तब शिमला ब्रिटिश हुकूमत की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। शिमला टाउन हॉल शहर के केंद्र में माल रोड पर स्थित है। शिमला के किसी भी हिस्से से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। 18 वीं शताब्दी के बाद के वर्षों में टाउन हॉल शिमला शहर का केंद्र हुआ करता था। टाउन हॉल की इमारत आधी लकड़ी की ट्यूडर शैली की इमारत हैं। सभी लकड़ी की फ्रेम और खिड़कियां रोशनीदार कांच के बने हैं। इसे स्कॉटिश वास्तुकार जेम्स रैनसम द्वारा एक पुस्तकालय के रूप में डिजाइन किया गया था। भारत के विभाजन के बाद नगर निगम के कुछ कार्यालय इसमें रखे गए थे। वैसे टाउन हॉल की मूल इमारत हेनरी इरविन द्वारा डिज़ाइन की गई थी जिन्होंने औपनिवेशिक भारत में कई अन्य इमारतों को डिजाइन किया था।
मूल टाउन हॉल भवन 1860 में बनाया गया था और इसका निर्माण 1888 में पूरा हुआ था। पर बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने इसका स्वरूप बदला। आपको बता दें कि प्रसिद्ध गेयटी थिएटर टाउन हॉल के भीतर था और इसके साथ ही टाउन हॉल में एक पुस्तकालय, एक विशाल हॉल, एक ड्राइंग रूम, कार्ड-रूम, बॉलरूम, शस्त्रागार, पुलिस स्टेशन और एक रिटायरिंग रूम भी था। इमारत में एक गिरजाघर का बाहरी रूप था, लेकिन इमारत के अंदर मनोरंजन के सभी घटक थे। उस समय इमारत के निर्माण के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थर "बरोग स्टोन्स" के थे। पत्थरों के साथ-साथ लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता था और छतों को स्लेटी स्लेट से बनाया जाता था। छतें झुकी हुई थीं ताकि बर्फ या पानी जमा न हो सके। खिड़कियां चौड़ी थीं और शीशों से बनी थीं, जिससे इमारत में प्राकृतिक प्रकाश का पर्याप्त प्रावधान था और अत्यधिक सर्दियों के महीनों के दौरान, इमारत गर्म और आरामदायक रहती थी। पर कुछ समय बाद टाउन हॉल की ऊपरी मंजिलें इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं कि उसे तोड़ा गया और फिर से बनाना पड़ा। यह कार्य 1910-11 में स्कॉटिश वास्तुकार जेम्स रैनसम द्वारा किया गया था। ब्रिटिश शासन में गर्मियों के दिनों में सरकारी अधिकारी शिमला में आकर रुकते थे और शिमला में बहुत सारे प्रशासनिक कार्य किए जाते थे। उन कार्यों को पूरा करने के लिए और सरकारी अधिकारियों को आवास प्रदान करने के लिए कई निर्माण किए गए थे। टाउन हॉल बिल्डिंग शुरू से ही नगरपालिका गतिविधियों का केंद्र रही और वर्तमान में इसमें शिमला नगर निगम के महापौर व उपमहापौर बैठते है। इमारत आसपास की वास्तुकला को जोड़ती है, जो स्वतंत्रता पूर्व युग की याद दिलाती है।
शिमला नगर बोर्ड का गठन 1851 में हुआ था और नगर पालिका के विभिन्न कार्य जैसे सड़क, स्वच्छता, जल आपूर्ति, जल निकासी, कर संग्रह शिमला नगर निगम द्वारा नियंत्रित किया जाता था। टाउन हॉल की आधारशिला शिमला नगर बोर्ड द्वारा रखी गई थी। उल्लेखनीय हैं कि कुछ साल पहले टाउन हॉल की इमारत में शिमला नगर निगम के विभिन्न कार्यालय चल रहे थे और इसमें एक पुस्तकालय भी था। बता दें कि टाउन हॉल के भीतर पुस्तकालय ब्रिटिश राज के बाद से ही है। पर अब इसका औपनिवेशिक ढाँचे में जीर्णोद्धार हुआ है, लेकिन इस संरचना की मौलिकता व इसके ऐतिहासिक जुड़ाव को यथावत बनाए रखा गया है। इमारत को उसके मूल रूप में बहाल करने के लिए 2014 में एक परियोजना शुरू की गई थी और इस औपनिवेशिक वास्तुशिल्प चमत्कार के नवीनीकरण में 8 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए थे। हालांकि यह बात और हैं कि उस समय इस इमारत के जीर्णोद्धार का कार्य खूब सुर्खियों में रहा था। ट्यूडर शैली के टाउन हॉल की इमारत को एडीबी द्वारा वित्त पोषित परियोजना के तहत 2 साल 11 महीने के भीतर अपने मूल स्वरूप में राज्य पर्यटन विभाग द्वारा बहाल किया गया था। एक विरासत संरचना होने के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मानदंडों के अनुसार किया गया। भवन के बेहतर जीवन के लिए सीमेंट की जगह चूना सुरखी का उपयोग किया गया है। इसके बाहरी और अंदरूनी हिस्से को पॉलिश और स्टोन वर्क की मरम्मत करके नए सिरे से तैयार किया गया है।
माल रोड और रिज़ मैदान के दीवाने थे अंग्रेज
अंग्रेज शिमला के माल रोड और रिज की खूबसूरती के बहुत कायल थे। उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि रिज के आसपास ऊंची-ऊंची ऐसी इमारतें न बनें, जिससे यहां से नजर आने वाली खूबसूरत पर्वतशृंखलाओं का दृश्य ही ओझल हो जाए। इसी तरह माल रोड की खूबसूरती और साफ -सफाई को बनाए रखने की तरफ भी वे विशेष ध्यान देते थे। अंग्रेजों के समय में माल रोड को दिन में दो बार पानी से धोया जाता था। इसके लिए चमड़े की मश्क लेकर विशेष सफाई कर्मचारी यहां हमेशा तैनात रहते थे। माल रोड पर थूकने या कूड़ा फेंकने के लिए लोगों पर जुर्माना किया जाता था। यह व्यवस्था आज तक कायम है। शिमला के माल रोड पर थूकने या कूड़ा फेंकने पर आज भी पांच सौ रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। इस संबंध में चेतावनी देने वाले साइन बोर्डों को माल रोड पर प्रमुखतापूर्वक लगाया गया है।
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
टाउन हॉल न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि बाहरी राज्यों से आने वाले सैलानियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। यह रिज मैदान के बीचों बीच स्थित है जिस वजह से यह हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस इमारत को बनाया ही कुछ इस तरह गया है कि हर कोई इस इमारत की खूबसूरती का कायल हो जाए। पर्यटक शहर शिमला के टाउन हॉल को रात की रोशनी में देखने पर एक अलग और शानदार नजारा मिलता है। टाउन हॉल शिमला के सबसे महत्वपूर्ण स्थल माल रोड पर स्थित है। इमारत के प्रवेश द्वार पर बड़ी सीढ़ियाँ हैं। इन चरणों का उपयोग न केवल आगंतुक बैठने और गपशप करने और विश्राम के कुछ क्षणों के लिए करते हैं, बल्कि इमारत का भव्य प्रवेश द्वार आगंतुकों के लिए तस्वीर लेने का पसंदीदा स्थान है। चूंकि टाउन हॉल का स्थान ठीक उसी स्थान पर है जहां द माल रोड रिज से मिलता है, आगंतुकों को इसके आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण इमारतें और स्मारक देखने को मिलते हैं। टाउन हॉल के ठीक बगल में प्रसिद्ध गेयटी थियेटर है। इसके पास एक और लोकप्रिय विरासत स्थल है, क्राइस्ट चर्च, ब्रिटिश शिमला का एक भवन। इन सबको देखकर शिमला आने वाले सैलानी बार बार यहाँ आना पसन्द करते हैं।
स्केटिंग शुरू होने की जानकारी देता था लाल गुब्बारा
ऐतिहासिक टाउनहाल भवन की छत पर लाल गुब्बारा टांगा जाता था। जी हां आपको सुन कर हैरानी जरूर होगी लेकिन यह बिल्कुल सत्य है। अंग्रेजों के समय से सर्दियां शुरू होते ही टाउनहाल की छत पर लाल रंग का गुब्बारा दिख जाता था। सुबह और शाम के समय ये गुब्बारा टाउनहाल की छत पर टंगा दिखता था। 2014 में जब टाउनहाल की मरम्मत का काम शुरू हुआ तो ये गुब्बारा दिखना भी बंद हो गया। यह गुब्बारा 1920 से टाउनहाल की छत पर लगता आया है। गुब्बारे द्वारा बताया जाता था कि आइस स्केटिंग रिंक में स्केटिंग शुरू हो चुकी है। ये गुब्बारा उतनी देर ही टंगा रहता था, जितनी देर स्केटिंग होती थी। सुबह और शाम के सेशन के वक्त ये गुब्बारा टाउनहाल पर टंगा होता था। जिस दिन टाउनहाल पर ये गुब्बारा नहीं दिखता था तो उसका मतलब था कि मौसम की वजह से स्केटिंग नहीं हो रही है। अंग्रेजों के जमाने में टाउनहाल के दूसरी तरफ रिवॉली सिनेमा के ऊपर के हिस्से में घना जंगल था। पेड़ों की वजह से रिंक नजर नहीं आता था। तभी अंग्रेजों ने स्केटिंग रिंग के शौकीनों की सुविधा के लिए ये गुब्बारा लगाना शुरू किया ताकि माल रोड पर टहलते हुए स्केटिंग के शौकीनों को पता चल जाए कि स्केटिंग हो रही है या नहीं। गुब्बारा लटकता देख शिमला घूमने आए शौकिया पर्यटक और स्थानीय लोग भी स्केटिंग का लुत्फ उठाने के लिए स्केटिंग रिंक में पहुंच जाते थे। पर अब यह रिवाज या अंग्रेजों की बनी हुई परम्परा काफी सालों से बंद है।
यादों को खोजते-खोजते शिमला पहुँचते है ब्रिटिश
अंग्रेजों को उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्र शिमला में अपने देश की तस्वीर दिखती थी। उन्हें यह जगह इतनी पसंद आई की उन्होंने इसे हू-ब-हू इंग्लैंड के शहर की शक्ल देने की कोशिश की। खास बात तो यह है कि वे साल के ज्यादातर माह शिमला में ही गुजारते थे। आज ब्रिटिश काल के ये ऐतिहासिक भवन पर्यटकों के लिए आकर्षण बने हुए हैं। साथ ही शिमला की अस्तित्व की गवाह भी हैं। शिमला में अंग्रेज अपने देश की छवि ढूंढ़ते थे। शिमला से उन्हें बेहद प्यार था। आज भी इंग्लैंड की नई पीढ़ी के लोग अपने बाप-दादाओं की यादों को खोजते-खोजते शिमला आ पहुंचते हैं। इस शहर के चप्पे-चप्पे में इतिहास छिपा है। यहां के देवदार के वृक्ष न जाने कितनी कही-अनकही बातों और घटनाओं के गवाह हैं। इन्होंने एक लम्बा वक्त देखा है। शिमला की अहमियत इसकी खूबसूरत वादियों की वजह से ही नहीं रही बल्कि यहां से चलने वाले ताकतवर अंग्रेजी शासन ने भी इसे पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई।
वर्तमान में नगर निगम महापौर और उपमहापौर का कार्यालय
शिमला की खूबसूरती को चार चांद लगाने वाली ऐतिहासिक इमारत टाउन हॉल एक तरफ जहां लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं वहीं दूसरी तरफ इस इमारत में इन दिनों नगर निगम के महापौर और उपमहापौर का कार्यालय हैं। बता दे कि इस इमारत के जीर्णोद्धार के बाद हाईकोर्ट ने केवल महापौर व उपमहापौर के कार्यालय खोलने की ही अनुमति दी है। हालांकि निगम प्रशासन हर संभव प्रयास कर रहा है कि इस इमारत में पहले की तरह नगर निगम का कार्यालय हो।