आज तक रहस्य बनी हुई है लाल बहादुर शास्त्री की मौत

लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसी हस्ती थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। उन्होंने बड़ी सादगी और ईमानदारी के साथ अपना जीवन व्यतीत किया और सभी देशवासियों के लिए एक प्रेरणा के स्त्रोत बने। लाल बहादुर शास्त्री ने ही 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था। उनके ही नेतृत्व में भारत ने वर्ष 1965 की जंग में पाकिस्तान को शिकस्त दी थी। पाकिस्तान को करारी हार देने के बाद शास्त्री पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध खत्म करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशंकद गए थे। पर वहां से वह अपने देश कभी नहीं लौटे, उनका पार्थिव शरीर वापिस भारत पहुंचा। ताशकंद एक शांति समझौता था या फिर कोई साजिश जिसने भारत से उसका लाल छीन लिया।
आज तक रहस्य बनी हुई है शास्त्री की मौत
55 साल बाद भी लाल बहादुर शास्त्री की मौत एक रहस्य बनीं हुई है। 10 जनवरी 1966 को भारत-पाक के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज़ 12 घंटे बाद 11 जनवरी को तड़के 1 बज कर 32 मिनट पर उनकी मौत हो गई। बताया जाता है की मौत के 2 घंटे पहले तक वो बिलकुल ठीक थे, लेकिन 15 से 20 मिनट के अंदर उनकी तबियत खराब होने लगी। उनके इलाज के लिए डॉक्टरों को बुलवाया गया। डॉक्टरों ने उन्हें एंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के चंद मिनट बाद ही उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। कहा जाता है कि उन्हें ह्रदय संबंधी रोग भी थे। 1959 में उनके बार हार्ट अटैक भी आया था। शास्त्री की मौत पर संदेह इस लिए भी किया जाता है क्यूंकि उनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा किया था की उन्हें ज़हर दिया गया था, जिसकी वजह से उनकी मौत हुई। उनके बेटे का भी कहना था कि उनके शरीर पर नील निशान थे। जब उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद के एयरपोर्ट लाया गया तो भारत पाकिस्तान के तिरंगे झुके हुए थे।
उनके कहने पर लाखों देशवासियों ने एक वक़्त का खाना छोड़ दिया था
1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच जंग चल रही थी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की, तो हम आपको जो लाल गेहूं भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे। ये बात शास्त्री को काफी चुभी। इसी के चलते उन्होंने देशवासियों से अपील की कि हम एक वक़्त का खाना नहीं खाएंगे। उस समय भारत गेंहू कि खेती के लिए आत्मनिर्भर नहीं था। पहले शास्त्री और उनके परिवार ने स्वयं एक वक़्त का खाना छोड़ा। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्यूंकि वो देखना चाहते थे कि वो एक वक़्त बिना खाए रह सकते है या नहीं। जब उन्होंने देख लिया कि वो और उनके बच्चे एक वक़्त बिना खाए रह सकते है, उसके बाद ही उन्होंने देशवासियों से अपील की। उसके बाद लाखों देशवासियों ने उनके कहने पर एक वक़्त का खाना छोड़ दिया। देश के कई हिस्सों में इसे "शास्त्री व्रत" कहा गया।