जाने क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे ?
अभियंता दिवस (इंजीनयर्स डे) 15 सितंबर को देश भर के इंजीनियर्स को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत वंश के महान इंजीनियर थे, जिन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके जन्म दिवस के दिन यह दिवस मनाया जाता है। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने बहुत से अद्भुत काम किए। विश्वेश्वरैया ने 1917 में बैंग्लोर में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की, यह देश का पहला सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज था। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को बतौर इंजीनियर सफलतापूर्वक अपना काम करने के लिए 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह दिन आधुनिक भारत की रचना में अपना बड़ा सहयोग देने वाले मोक्षगुंडम व भारत के सभी प्रतिभाशील इंजीनियर्स के नाम समर्पित है।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया प्रेरणा है हर हिंदुस्तानी के लिए :
विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर को 1860 में मैसूर रियासत में हुआ। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। इंजीनियरिंग पास करने के बाद विश्वेश्वरैया को बॉम्बे सरकार की तरफ से जॉब का ऑफर आया, और उन्हें नासिक में असिस्टेंट इंजिनियर के तौर पर काम मिला। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एमवी के नाम से भी विख्यात हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। एमवी ने इस बाँध के लिए नए ब्लॉक सिस्टम का भी इजाद किया जो बाढ़ के पानी को भी रोकने में सक्रिय था। उनके इस निर्माण की सराहना उस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भी की। कृष्णराजसागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था, इसके लिए मोर्टार भी तैयार किया गया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। एमवी शिक्षा की महत्तवता को अच्छी तरह समझते थे और वे समझते थे कि एक व्यक्ति की गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षित होना ही है। उनके ही अथक प्रयासों के चलते मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। उन्होंने कई इंजीनियरिंग कॉलेजों का निर्माण करवाया ताकि देश में विकास कि गति को बढ़ाया जा सके। पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, संदल, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और भी अधिक विकसित किया गया ।1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।
मैसूर का दिल थे विश्वेश्वरैया, आज भी किया जाता है याद :
विश्वरैय्या ने मैसूर को एक अलग पहचान दिलवाने व रियासत के विकास में एक हैं भूमिका निभाई। कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। विश्वेश्वरैया लोगों की समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर भी चिंतित थे। फैक्टरियों का अभाव, सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भरता तथा खेती के पारंपरिक साधनों के प्रयोग के कारण समस्याएं जस की तस थीं। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्वेश्वरैया ने इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस के गठन का सुझाव दिया एवं आर्थिक स्तिथि सुधारने के लिए उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया। उनके ही अथक प्रयासों के चलते मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। उन्होंने कई इंजीनियरिंग कॉलेजों का निर्माण करवाया ताकि देश में विकास कि गति को बढ़ाया जा सके। पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, संदल, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और भी अधिक विकसित किया गया । 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।
वह रेल की पटरी और एक अनोखा मुसाफिर :
विश्वरैय्या के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि अंग्रेज़ों के शासन काल के दौरान एक ब्रिटिश भारतीय रेल गाड़ी सफर के मध्य में थी। जहाँ ज़्यादातर मुसाफिर ब्रिटिश थे वहीं एक हिन्दुस्तानी मुसाफिर भी वहां मौजूद था। साधारण वेशभूषा , साँवलका रंग, छोटा कद और गंभीर अभिव्यक्ति। उस व्यक्ति को अनपढ़ समझ कर सभी उसका मज़ाक उड़ा रहे थे परन्तु उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था तभी अचानक उस व्यक्ति ने उठ कर ट्रेन की इमरजेंसी चेन खींच दी। चेन खींचने पर सभी अन्य यात्रियों ने उन्हें भला बुरा कहना शुरू कर दिया। गार्ड ने व्यक्ति से चेन खींचने के कारण पर सवाल किया। व्यक्ति ने कहा "मेरा अनुमान है यहाँ से कुछ दूर पटरी टूटी हुई है" और जब इसके बाद पटरी का निरीक्षण किया गया तो वाकई पटरी कुछ हिस्सों से टूटी हुई थी व उसके पेंच खुले हुए थे। उस व्यक्ति ने यह अनुमान रेलगाड़ी के चलने से आ रही आवाज़ की ध्वनि से लगाया। इस तरह उस व्यक्ति ने कई लोगों की जान बचाई और ट्रेन हादसे को होने से रोका। यह अद्धभुत व्यक्ति कोई और नहीं बल्क़ि एमवी ही थे।
कैसा होता देश अगर इंजीनयर्स न होते :
इंजीनियर्स के बिना आज के भारत की कल्पना भी कर पाना मुश्किल होता। कैसा होता वह देश जहाँ एक भी बाँध न होता,देश की सुरक्षा के लिए सैनिक हथियार न होते, बिजली न होती, रेल मार्ग न होते, गाँवों को शहरों से जोड़ती सड़क न होती, यातायात के आधुनिक साधन न होते। कितना मुश्किल होता देश का विकास इंजीनियर्स के इस महान योगदान के बिना। जहाँ एक और देश को डिजिटल किया जा रहा है वहीँ यह सोचना भी ज़रूरी है कि क्या यह काम भी कभी इंजीनियर्स के बिना हो पाता। कोरोना काल में मिल रही वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग कि सुविधा भी इंजीनयर्स कि ही देन है जिसके कारण रोज़-मर्रा की ज़िन्दगी बे-हद आसान हो गई है।