क्या हिमाचल नक्शे से मिट जाएगा?”... सुप्रीम कोर्ट ने विकास के नाम पर विनाश पर जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में बेतरतीब विकास और पर्यावरणीय विनाश पर सख़्त टिप्पणी करते हुए आगाह किया है कि यदि राज्य में विकास कार्य बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरणीय संतुलन के जारी रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल देश के नक्शे से ही मिट सकता है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा, भगवान न करे कि ऐसा दिन आए। यह टिप्पणी जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की डबल बेंच ने एमएस प्रिस्टिन होटल्स एंड रिज़ॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के दौरान दी। याचिका शिमला के तारादेवी क्षेत्र में होटल निर्माण से संबंधित थी।
कोर्ट ने याचिका खारिज की, पर्यावरणीय मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लिया
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को जनहित से जुड़ा मानते हुए पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर स्वत: संज्ञान लिया और इसे पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) में तब्दील कर दिया। कोर्ट ने हिमाचल सरकार से 4 हफ्तों में विस्तृत जवाब मांगा है। इसके लिए राज्य के मुख्य सचिव और केंद्रीय वन मंत्रालय को नोटिस भेजा गया है। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
ग्रीन एरिया अधिसूचना की सराहना, लेकिन देरी पर सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार द्वारा ग्रीन एरिया घोषित करने की अधिसूचनाओं को “एक सकारात्मक कदम” बताया, लेकिन यह भी कहा कि यह प्रयास बहुत देर से शुरू किए गए। कोर्ट ने चेताया कि राज्य की पारिस्थितिकीय स्थिति लगातार बिगड़ रही है। शिमला शहर और उसके आस-पास के इलाकों में अब तक 17 से अधिक क्षेत्रों को ग्रीन एरिया घोषित किया जा चुका है, जहां किसी भी तरह का निर्माण कार्य पूर्णतः प्रतिबंधित है।
तारादेवी के जंगल में होटल निर्माण को लेकर दाखिल की गई थी याचिका
एमएस प्रिस्टिन होटल्स एंड रिज़ॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड शिमला के समीप तारादेवी जंगल क्षेत्र में होटल बनाना चाहता था। लेकिन राज्य सरकार ने हाल ही में इस क्षेत्र को ग्रीन एरिया घोषित कर दिया, जिसके खिलाफ कंपनी ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया।
हिमाचल सरकार ने माना, अवैज्ञानिक विकास बना विनाश की वजह
सुनवाई के दौरान हिमाचल सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल अनूप रतन पेश हुए। सरकार ने कोर्ट में स्वीकार किया कि राज्य में फोरलेन निर्माण, पावर प्रोजेक्ट, पेड़ कटान और पहाड़ियों में ब्लास्टिंग जैसे कार्य अवैज्ञानिक तरीकों से हो रहे हैं, जो विनाश का प्रमुख कारण बन रहे हैं।
कोर्ट का सुझाव
कोर्ट ने कहा कि देश के सभी हिमालयी राज्यों को अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को एकजुट करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य की विकास परियोजनाएं जलवायु, पारिस्थितिकी और भूगर्भीय जोखिमों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएं।
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