"नहीं मानता हरिदास"......... वो मंत्री जो दस्तखत के साथ अपना फैसला भी लिखते थे!
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कई दिलचस्प शख्सियतें हुई हैं, लेकिन इन मंत्री जी का अंदाज बिल्कुल अलग था। ये मंत्री फाइलों पर महज दस्तखत नहीं करते थे, बल्कि अपना स्पष्ट निर्णय भी लिखते थे।
हम बात कर रहे हैं यशवंत सिंह परमार की सरकार में मंत्री रहे हरिदास की। हरिदास न सिर्फ अपनी सादगी बल्कि अपने अनोखे फैसलों के लिए भी मशहूर थे। हरिदास अगर किसी प्रस्ताव से सहमत होते, तो लिखते— "मान गया हरिदास", और यदि असहमत होते, तो दो टूक जवाब देते— "नहीं मानता हरिदास"!
हरिदास ज़्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं थे, मगर उनका विज़न कमाल का था। उनकी समझ सिर्फ प्रशासन तक सीमित नहीं थी, वे ज़मीन से जुड़े नेता थे। जब उन्हें पता चला कि बिलासपुर और उसके आसपास की मिट्टी में कुछ खास है, तो वे उसका एक ढेला उठाकर विधानसभा पहुँच गए।
विधानसभा का माहौल हमेशा की तरह गर्म था। जब हरिदास ने अपनी बात रखनी शुरू की, तो कई लोग मुस्कुराने लगे। उन्होंने मिट्टी का वह ढेला दिखाकर कहा, "इसकी जांच होनी चाहिए। मुझे लगता है कि यह साधारण मिट्टी नहीं है, इसका व्यावसायिक इस्तेमाल हो सकता है!"
कुछ विधायकों ने ठहाके लगाए, कुछ ने मजाक में कहा, "मंत्री जी, अब आप मिट्टी में भी संभावनाएँ ढूँढने लगे?"
लेकिन हरिदास बिना विचलित हुए अपनी बात पर अडिग रहे।
हरिदास की जिद पर आखिरकार मिट्टी की जांच करवाई गई। जब रिपोर्ट आई, तो सभी चौंक गए। यह मिट्टी उच्च गुणवत्ता वाले सीमेंट निर्माण के लिए उपयुक्त थी! जल्द ही इस खोज ने उद्योगपतियों का ध्यान आकर्षित किया। देखते ही देखते बिलासपुर और उसके आसपास के इलाकों में बड़े-बड़े सीमेंट प्लांट लगने लगे।
बरमाणा में एसीसी सीमेंट प्लांट और दाड़लाघाट में अंबुजा सीमेंट प्लांट स्थापित हुए, जिससे न केवल हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार भी मिला। वही लोग, जो कभी ठाकुर हरिदास की खिल्ली उड़ाते थे, अब उनकी दूरदृष्टि की तारीफ कर रहे थे।