सफल होगा 'किशन का मिशन' या 'गद्दी के बदले गद्दी' !
आम तौर पर एकमुश्त पड़ने वाला गद्दी वोट कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाता है। गद्दी समुदाय की एकता इनकी सियासी ताकत का असल कारण है और ये ही वजह है कि कोई भी दल इन्हें नजर अंदाज़ नहीं करता। विशेषकर भाजपा गद्दी चेहरों पर दांव खेलती आई है और सीटिंग सांसद किशन कपूर लम्बे वक्त से प्रोमिनेन्ट गद्दी फेस है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में जिला चम्बा के चार और जिला कांगड़ा के 13 विधानसभा क्षेत्र आते है। इस संसदीय क्षेत्र की 17 में से कम से कम 11 सीटों पर गद्दी फैक्टर हावी रहता है। इनमें चम्बा सदर, डलहौज़ी, चुराह, भटियात, धर्मशाला, बैजनाथ, पालमपुर, शाहपुर, ज्वाली, नूरपुर और इंदौरा शामिल है। माना जाता है कि गद्दी समुदाय का वोट मौटे तौर पर विभाजित नहीं होता। ऐसे में सियासी गणित के लिहाज से राजनैतिक दल गद्दी चेहरे को सेफ बेट मानते है, विशेषकर भाजपा।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने धर्मशाला के विधायक और तब की जयराम सरकार में मंत्री किशन कपूर को कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था और कपूर ने रिकॉर्ड जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया था। अब फिर लोकसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो चुका है और टिकट की कयासबाजी भी। किशन कपूर टिकट के मिशन पर है लेकिन उन्हें टिकट मिलता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा। पर माहिर मान रहे है कि संभव है भाजपा यदि किशन कपूर का टिकट काटती है तो अगला उम्मीदवार भी गद्दी समुदाय से ही हो। दावेदारों की फेहरिस्त में जो नाम प्रमुख है उनमें एक है त्रिलोक कपूर जो भाजपा प्रदेश महामंत्री भी है और दूसरे नेता है विशाल नेहरिया। इस सूची में एक तीसरे नाम का जिक्र भी जरूरी है और वो है चुराह विधायक हंसराज।
बतौर भाजपा प्रदेश महामंत्री त्रिलोक कपूर का ये दूसरा टर्म है। पर साथ ही त्रिलोक कपूर के खाते में पालमपुर विधानसभा सीट की हार भी दर्ज है। विधानसभा चुनाव में कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में भाजपा को 17 में से सिर्फ 5 सीट पर जीत मिली थी। यानी त्रिलोक कपूर के सियासी खाते में जमा से ज्यादा घटाव है। पर कपूर का लम्बा अनुभव और आलाकमान की गुड बुक्स में उनकी उपस्थिति उनका दावा मजबूत करते है।
चुराह विधायक और पूर्व विधानसभा स्पीकर हंसराज की बात करें तो वे निसंदेह तेजतर्रार नेता तो है ही, पर उनका चम्बा से होना उनके लिए फायदे का सौदा भी हो सकता है तो रुकावट भी। जनजातीय क्षेत्र से उम्मीदवार देकर भाजपा बड़ा सन्देश भी दे सकती है, तो जिला कांगड़ा की नाराजगी का डर चम्बा की उम्मीदवारी में रोड़ा भी है। साथ ही यदि हंसराज उम्मीदवार होते है और जीत जाते है तो भाजपा को विधानसभा उपचुनाव का सामना भी करना पड़ेगा। ऐसे में उनकी उम्मीदवारी पर पार्टी को काफी सियासी गणित लगनी पड़ेगी।
तीसरा नाम है विशाल नेहरिया का। 2019 के धर्मशाला उपचुनाव में भाजपा ने उनको उम्मीदवार बनाया और नेहरिया ने शानदार जीत दर्ज की। इसके बाद 2022 में उनका टिकट काट दिया गया लेकिन नेहरिया समर्थकों की नाराजगी के बावजूद पार्टी लाइन से बाहर नहीं गए। ये फैक्टर उनके पक्ष में जा सकता है। नेहरिया युवा नेता है और माहिर मान रहे है कि भाजपा अधिक से अधिक युवाओं को टिकट देने की नीति पर आगे बढ़ेंगी। ऐसे में इस मापदंड पर भी नेहरिया फिट बैठते है।
बहरहाल ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीटिंग सांसद किशन कपूर फिर टिकट लाने में कामयाब होंगे ? और किशन कपूर नहीं तो क्या भाजपा गद्दी समुदाय से ही प्रत्याशी देती है या नहीं। फिलवक्त सब सियासी अटकलें है और अटकलों का क्या। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से भाजपा में कम से कम एक दर्जन टिकट के चाहवान है।