किसे मिलेगा मुकम्मल ठौर... सुधीर, राणा या राठौर !
- तीनों दिग्गजों को नहीं मिला है कोई अहम जिम्मा
- तीनों का रुख साफ, सभी को कद के मुताबिक मिले पद
सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा और कुलदीप राठौर...हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस के तीन विधायक, तीनों दिग्गज और तीनों हाशिये पर। सत्ता मिलने से पहले तीनों का मंत्रिपद मानो तय था, पर सियासत की फितरत ही कुछ ऐसी होती है, जो लगता है वो होता नहीं। सत्ता तो आई पर समीकरण कुछ यूँ बने और उलझे कि ये तीनों दिग्गज भी उलझ कर रह गए। इन तीनों का असंतोष भी सामने आता रहा है, किसी का मीडिया बयानों में, किसी का सोशल मीडिया पर तो किसी का इशारों-इशारों में। दिलचस्प बात ये है कि इनका असंतोष तो कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है ही, इनकी खमोशी भी पार्टी को असहज करने वाली है। इनके कदम सुक्खू सरकार की चाल से नहीं मिले तो लोकसभा चुनाव में भी इसका खामियाजा तय मानिये। बहरहाल अंदर की खबर ये है कि इन तीनों नेताओं को साधने के लिए दिल्ली में विशेष रूप से मंथन हुआ है। हालांकि तीनों का रुख साफ है, कद के मुताबिक पद मिले। बहरहाल इन तीनों ही नेताओं को भले ही अब तक सत्ता में कोई अहम जिम्मा या भागीदारी न मिली हो, लेकिन सच ये है कि इन्हें दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। कम से कम पार्टी आलाकमान ये जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं दीखता। माहिर मानते है कि ऐसे में मुमकिन है कि बीच का कोई रास्ता निकाल कर पार्टी आलाकमान संभावित डैमेज को कण्ट्रोल करने हेतु हस्तक्षेप करें।
चार बार के विधायक और पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा जिला कांगड़ा में पार्टी का बड़ा चेहरा है। पूर्व की वीरभद्र सरकार में सुधीर मंत्री थे और उन्हें वीरभद्र सिंह का सबसे करीबी माना जाता था। कहते है तब उनकी रज़ा में ही वीरभद्र सिंह की रज़ा होती थी। ये सुधीर का ही सियासी बल था कि तब चाहे नगर निगम की लड़ाई हो, स्मार्ट सिटी या फिर धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने का निर्णय, धर्मशाला हर जगह बाजी मार गया। तब कुछ माहिर तो उन्हें कांग्रेस में वीरभद्र सिंह का उत्तराधिकारी भी कहने लगे थे। फिर सियासी गृह चाल कुछ यूँ बदली कि पंडित जी अलग थलग से हो गए। बीते दिनों देर रात सीएम सुक्खू, सुधीर से मिलने उनके घर पहुंचे थे, जिसके बाद कयास लग रहे है कि उन्हें कोई अहम ज़िम्मा मिल सकता है। इसमें पीसीसी चीफ का पद भी शामिल है। हालांकि एक खबर ये भी है कि आलाकमान के दरबार में उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाने की पैरवी की जा रही है। कहा जा रहा है की सुधीर ही सबसे मजबूत चेहरा है। अब आलाकमान सुधीर को चुनाव लड़ने का फरमान सुनाता है या प्रदेश में सुधीर के कद मुताबिक भूमिका उनके लिए तैयार की जाती है, ये देखना रोचक होगा।
राजेंद्र राणा वो नेता है जिन्होंने 2017 में भाजपा के सीएम कैंडिडेट को हराया था। 2022 में भी धूमल परिवार ने पूरी ताकत झोंकी लेकिन राणा जीतने में कामयाब रहे। बावजूद इसके राणा को अब तक उचित सियासी अधिमान नहीं मिला है। कहने को वे कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष भी है लेकिन संगठन में भी उनकी भूमिका क्या और कितनी है, ये सर्वविदित है। हालांकि वे हौली लॉज के करीबी है और वो ही पहले ऐसे बड़े नेता थे जिन्होंने खुलकर प्रतिभा सिंह को सीएम बनाने की वकालत की थी। बहरहाल अब राणा की कैबिनेट में एंट्री की सम्भावना न के बराबर है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से सीएम, डिप्टी सीएम और एक मंत्री राजेश धर्माणी है और यहाँ से एक और एंट्री मुश्किल होगी। ऐसे में राणा को कहाँ और कैसे एडजस्ट किया जाता है, ये देखना दिलचस्प होगा। वहीँ खबर ये है कि आलकमान के समक्ष सुधीर की तरह ही राणा को भी लोकसभा चुनाव के लिए दमदार बताया जा रहा है। हालांकि राणा की रूचि इसमें नहीं दिखती।
कुलदीप राठौर पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष है और आलाकमान के करीबी भी है। राठौर वो नेता है जो खुलकर कहते रहे है कि सत्ता दिलवाने वालों की उपेक्षा हो रही है। जिला शिमला से ही तीन मंत्री है, ऐसे में राठौर का ठौर भी जाहिर है कैबिनेट में नहीं होगा। पर राठौर की बेबाकी और स्पष्टवादिता प्रदेश सरकार को असजह जरूर करती रही है। बताया जा रहा है की राठौर भी आलाकमान के समक्ष अपनी बात रख चुके है और अब निर्णय आलाकमान को लेना है।
सिर्फ एक रिक्त पद, ठाकुर भी दावेदार !
सुक्खू कैबिनेट में एक पद खाली है और इन तीन नेताओं के साथ -साथ कुल्लू विधायक सूंदर सिंह ठाकुर भी दावेदार है। मंडी संसदीय क्षेत्र से सिर्फ एक मंत्री है और ऐसे में क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से सूंदर ठाकुर का दावा भी मजबूत है। हालांकि सूंदर ठाकुर को सीपीएस बनाया गया था लेकिन ये पद कब तक रहेगा, ये कोर्ट ने तय करना है। वहीँ सूंदर ठाकुर भी सीपीएस को मिली गाड़ी लौटकर चुप रहकर भी काफी कुछ कह चुके है।