अपमान का बदला लेने के लिए जयललिता ने ली प्रतिज्ञा
25 मार्च 1989 को तमिलनाडु विधानसभा में जो हुआ था वो भुलाया नहीं जा सकता। उस दिन एक महिला के स्वाभिमान और अस्तित्व पर हमला हुआ था। दरअसल तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था। जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने हाल के ही विधानसभा चुनाव में 27 सीटें जीती थीं और तमिलनाडु की विधानसभा को विपक्ष में एक महिला नेता मिली थी। डीएमके सरकार में थी और मुख्यमंत्री थे एम करुणानिधी।
सदन में जैसे ही बजट भाषण पढ़ा जाना शुरू हुआ जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में हंगामा शुरू कर दिया। इसी बीच अन्नाद्रमुक के किसी नेता ने करुणानिधी की तरफ फाइल फेंकी, जिससे उनका चश्मा गिरकर टूट गया। करुणानिधि पर हुए हमले का बदला लेने के लिए न केवल जयललिता का विरोध किया गया बल्कि हद पार की गई। हंगामा बढ़ता देख जयललिता सदन से बाहर जाने लगी, तभी एक मंत्री ने उन्हें बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची, जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं। भरी सभा में उनकी साड़ी खींचकर, बाल नोचकर उन्हें चप्पल मारी। इस बीच उनके कंधे पर लगी सेफ्टी पिन खुल गई और चोट के कारण खून बहने लगा।
फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आ गईं। जयललिता ने सदन से निकलते हुए कसम खाई थी कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी वरना कभी नहीं आएंगी। इसके दो साल बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव में जयललिता के नेतृत्व वाले एआईएडीएमके ने कांग्रेस से समझौता किया। दोनों दलों को तमिलनाडु के चुनाव में 234 में 225 पर जीत मिली। इसके बाद जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं और उनकी कसम पूरी हुई।
एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा था, “25 मार्च 1989 में विधानसभा में हुए हमले से ज्यादा मेरे लिए कुछ अपमानजनक नहीं है। मुख्यमंत्री करुणानिधि वहीं थे। उनकी दोनों पत्नियां भी वीआईपी बॉक्स में बैठकर देख रही थीं। उनके हर विधायक और मंत्री ने मुझे खींच-खींचकर शारीरिक शोषण किया। उनका हाथ जिस पर गया उन्होंने उसे खींचा चाहे कुर्सी हो, माइक हो या भारी ब्रास बेल्ट। अगर वह उस दिन सफल होते तो आज मैं जिंदा न होती। मेरे विधायकों ने उस दिन मुझे बचाया। उनमें से एक ने मेरी साड़ी भी खींची। उन्होंने मेरे बाल खींचे और कुछ तो नोच भी डाले। उन्होंने मुझ पर चप्पल फेंकी। कागज के बंडल फेंके। भारी किताबें मारी। उस दिन मैंने सदन को आँसुओं और गुस्से के साथ छोड़ा। मैंने कसम खाई कि जब तक ये आदमी मुख्यमंत्री बनकर सदन में होगा मैं यहाँ नहीं बैठूंगी और जब मैं उस सदन में दोबारा गई तो मैं चीफ मिनिस्टर थी। मैंने दो साल में अपनी कसम पूरी की।”