अर्की उपचुनाव विशेष: बाहरी तौर पर भाजपा एकजुट, कांग्रेस की फिर वही कहानी
अनुराग ठाकुर अर्की पहुंचे और गोविन्द राम शर्मा के तेवर ढीले पड़ गए। पार्टी से दशकों पुराना नाता भी याद आ गया और कमल के फूल के प्रति निष्ठा भी बगावत में आड़े आ गई। नामांकन के अंतिम दिन तक बना सस्पेंस खत्म हुआ और भाजपा संभावित बगावत साधने में कामयाब रही। किन आश्वासनों के भरोसे गोविन्द राम शर्मा चुनावी मैदान से हटे, ये पार्टी के अंदर की बात है लेकिन इतना तय है कि कम से कम बाहरी तौर पर तो भाजपा अब अर्की में सशक्त और संगठित दिख रही है। मोटे तौर पर अब भाजपा के रतन सिंह पाल और कांग्रेस के संजय अवस्थी के बीच टक्कर होनी है।उधर कांग्रेस की सियासत फिर दिलचस्प हो गई है। पिछले कई चुनावों की तरह इस बार फिर पार्टी में विद्रोह - भीतरघात की स्थिति है। नतीजन जो कांग्रेस कुछ दिन पहले मजबूत लग रही थी उसे डर जरूर होगा कि कहीं विद्रोह उसे मजबूर न बना दे। कारण साफ है, खुला विद्रोह भीतरघात से अधिक नुकसान करता है। चलिए मान भी लेते है कि भाजपा को भीतरघात का 'फ्लू' हो सकता है पर कांग्रेस को तो विद्रोह का 'डेंगू' होता दिख रहा है। ऐसे में अर्की का संग्राम रोचक होना तय है।
अर्की निर्वाचन क्षेत्र की सियासत बेहद रोचक रही है। अतीत पर नजर डाले तो यहां कांग्रेस -भाजपा दोनों को बराबर प्यार मिलता रहा है। वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना हुई थी और उसके बाद से अब तक हुए 9 विधानसभा चुनाव हुए है। इनमें कांग्रेस पांच मर्तबा तो भाजपा ने चार मर्तबा बाजी मारी है। पहले करीब ढाई दशक तक अर्की की सियासत हीरा सिंह पाल और नगीन चंद्र पाल के बीच घूमती रही, तो 1993 में कांग्रेस नेता धर्मपाल ठाकुर के विधायक बनने के बाद अर्की वालों ने उन पर लगातार तीन बार भरोसा जताया। फिर कर्मचारी राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले गोविंद राम शर्मा दो बार जीते। पर 2017 के विधानसभा चुनाव में खुद सूबे के मुख्यमंत्री ( तत्कालीन ) वीरभद्र सिंह ने अर्की से मैदान में उतरने का निर्णय लिया और अर्की के विधायक बने। अब उनके निधन के बाद उपचुनाव होने जा रहा है, पर असंतोष और अंदरूनी खींचतान की आग दोनों ही राजनीतिक दलों को झुलसा सकती है।
अवस्थी को टिकट, ठाकुर नाराज
वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अर्की उपचुनाव जीतना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होगा। बहरहाल, कांग्रेस ने फिर संजय अवस्थी को मैदान में उतारा है। जमीनी बात करें तो संजय अवस्थी शुरू से मजबूत दावेदार लग रहे थे। हालांकि राजेंद्र ठाकुर भी स्व. वीरभद्र सिंह से नजदीकी के बुते टिकट की दौड़ में रहें लेकिन अवस्थी के रहते पार्टी ने उन्हें मौका नहीं दिया। नाराज़ होकर राजेंद्र ठाकुर सहित ब्लॉक कांग्रेस अर्की के कई पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया। यानी पार्टी में बगावत की स्थिति है और ऐसे में संजय अवस्थी की राह भी आसान नहीं होगी। दूसरा पक्ष ये भी है कि राजेंद्र ठाकुर और उनके समर्थकों के इस्तीफे के बाद पार्टी संगठन में नई नियुक्तियां संजय अवस्थी के मन मुताबिक हो गई। एक किस्म से अवस्थी फ्री हैंड होकर अपने निर्णय लेंगे।
2007 में कांग्रेस को भारी पड़ी गलती
वर्ष 1993, 1998 और 2003 में कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके थे। 2003 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और धर्मपाल ठाकुर को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया गया था। वे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबी नेताओं में थे। अर्की क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। पर बावजूद इसके 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बड़ी चूक हो गई और धर्मपाल ठाकुर का टिकट काट दिया गया। कहते है वीरभद्र सिंह इसके पक्षधर नहीं थे, वे धर्मपाल ठाकुर को ही टिकट देने के हिमायती थे। पर कांग्रेस आलाकमान ने वीटो इस्तेमाल करते हुए प्रकाश चंद करड को टिकट थमा दिया। आखिरकार हुआ वही जिसका अंदेशा था, हवा - हवाई उम्मीदवार देने का खामियाजा कांग्रेस ने भुगता और पार्टी तीसरे स्थान पर रही। प्रकाश चंद बुरी तरह चुनाव हारे। वहीँ दूसरे स्थान पर रहने वाले थे धर्मपाल ठाकुर जो कांग्रेस से टिकट कटने के बाद बतौर निर्दलीय मैदान में थे। प्रकाश चंद को जहां करीब साढ़े सात हज़ार वोट ही मिले थे वहीँ धर्मपाल ठाकुर को निर्दलीय लड़ने के बावजूद करीब साढ़े चौदह हजार वोट मिले थे। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस की इस अंदरूनी लड़ाई का फायदा तब भाजपा को मिला था। माहिर मानते है की अगर कांग्रेस ने धर्मपाल ठाकुर का टिकट नहीं काटा होता तो संभवतः कांग्रेस अर्की में जीत का चौका लगाती।
2012 में बगावत ने बिगाड़े अवस्थी के समीकरण
2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने संजय अवस्थी को उम्मीदवार बनाया था। दरअसल 2008 में धर्मपाल ठाकुर का देहांत हो चूका था और 2007 का चुनाव लड़ चुके प्रकाश चंद भी तब तक खुद को स्थापित नहीं कर पाए थे। ऐसे में पार्टी को एक दमदार चेहरा चाहिए था और संजय अवस्थी पर पार्टी ने भरोसा जताया। पर अंदरूनी खींचतान और बगावत पार्टी को भारी पड़ी। दरअसल उस चुनाव में पार्टी के ही अमर चंद पाल बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे और 10 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। नतीजन संजय अवस्थी करीब दो हजार वोट से चुनाव हार गए, पर तब से संजय अवस्थी ही स्थानीय कांग्रेस का मुख्य चेहरा बने हुए है।
2017 में वीरभद्र ने करवाई वापसी
2017 विधानसभा चुनाव से कई माह पहले से ही अर्की में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विशेष मेहरबानी दिखने लगी थी। वीरभद्र सिंह के लगातार दौर और कई सौगातों ने संकेत दे दिए थे कि खुद वीरभद्र सिंह अर्की से मैदान में उतर सकते है। दरअसल वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण की अपनी सीट से अपने पुत्र विक्रमादित्य सिंह को विधानसभा भेजना चाहते थे। हुआ भी ऐसा ही। उन्होंने विक्रमादित्य के लिए शिमला ग्रामीण सीट छोड़ दी और खुद अर्की से मैदान में उतर गए। जब खुद वीरभद्र सिंह मैदान में थे तो जाहिर सी बात है खुलकर कोई विरोध नहीं हुआ। जैसा अपेक्षित था वीरभद्र सिंह चुनाव जीत गए और दस साल बाद अर्की सीट वापस कांग्रेस के कब्जे में आ गई। पर उनके आने से संजय अवस्थी का इंतज़ार बढ़ गया। 2012 के बाद से ही संजय अवस्थी तैयारी में जुटे थे लेकिन तब उन्हें चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिला।
वर्ष विधायक पार्टी
1967: हीरा सिंह पाल निर्दलीय
1972: हीरा सिंह पाल लोक राज पार्टी
1977: नगीन चंद्र पाल जनता पार्टी
1982: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी
1985: हीरा सिंह पाल कांग्रेस
1990: नगीन चंद्र पाल भारतीय जनता पार्टी
1993: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस
1998: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस
2003: धर्मपाल ठाकुर कांग्रेस
2007: गोविंद राम शर्मा भाजपा
2012: गोविंद राम शर्मा भाजपा
2017 : वीरभद्र सिंह कांग्रेस