कांग्रेस की 'प्रतिभा' विरुद्ध भाजपा का सियासी 'रण कौशल'
मंडी संसदीय उपचुनाव में एक तरफ सहानुभूति की लहर पर सवार होकर कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह पर दाव खेला है तो दूसरी तरफ भाजपा ने कारगिल हीरो रि. ब्रिगेडियर कुशाल चंद ठाकुर को मैदान में उतार जय हिन्द का नारा बुलंद किया है। निसंदेह मुकाबला कड़ा है, दिलचस्प है। मंडी संसदीय चुनाव जहां कांग्रेस के लिए वापसी का एक मौका है तो वहीं भाजपा के लिए ये वर्चस्व बरकरार रखने की जंग है। हारने वाले का नुक्सान दोनों तरफ बराबर होगा। मंडी के इस मुकाबले को अभी से सैनिक सम्मान बनाम वीरभद्र सिंह को श्रद्धांजलि के सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। यूँ तो ये मुकाबला प्रतिभा सिंह विरुद्ध ब्रिगेडियर कुशाल चंद ठाकुर में है पर राजनीतिक नजरिए से इसे प्रतिभा सिंह विरुद्ध जयराम ठाकुर भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दरअसल दो बार की सांसद प्रतिभा के सामने मोटे तौर पर खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ही कमान संभाली हुई है। भाजपा इस चुनाव को मुख्यमंत्री के चेहरे पर ही लड़ने जा रही है। ऐसे में ये ब्रिगेडियर से ज्यादा जयराम ठाकुर का इम्तिहान है।
वीरभद्र नहीं है, पर उन्हीं के नाम पर लड़ा जा रहा चुनाव
मंडी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारा है। प्रतिभा सिंह को काफी समय पहले से ही मंडी संसदीय उपचुनाव के लिए सबसे मज़बूत प्रत्याशी माना जा रहा था। प्रतिभा सिंह खुलकर कह रही है कि वे वीरभद्र के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है। बाकायदा सोशल मीडिया पर वीरभद्र सिंह को श्रद्धांजलि के नाम पर वोट की अपील हो रही है। प्रतिभा सिंह और कांग्रेस कह रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भले ही उनके और कांग्रेस परिवार के बीच नहीं है परंतु उनका आशीर्वाद और उनके प्रदेश में किए विकास कार्य सबके सामने हैं। यानी वीरभद्र सिंह के निधन के बाद उपजी सहानुभूति के बल पर मंडी चुनाव जीतने की तैयारी है। इसके अलावा कांग्रेस करुणामूलक नौकरियां, बेरोजगारी, महंगाई और सेब के गिरते दामों को मुद्दा बनाकर मैदान में है। मंडी के रण में प्रतिभा सिंह पांचवीं बार मैदान में उतरी है। इससे पहले उन्हें दो बार जीत और दो बार हार मिली है। पहली जीत उन्हें 2004 के आम चुनाव व दूसरी 2013 के उपचुनाव में मिली थी। मंडी संसदीय क्षेत्र वीरभद्र परिवार की कर्मभूमि रही है। वीरभद्र सिंह ने 1971 में मंडी संसदीय क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा था। यहीं से चुनाव लड़कर वह केंद्र में मंत्री बने थे। प्रतिभा सिंह 1998 में सक्रिय राजनीति में आई थी। पहला चुनाव इसी संसदीय क्षेत्र से लड़ा था, जब भाजपा के महेश्वर सिंह ने उन्हें करीब सवा लाख मतों से पराजित किया था।1998 में केंद्र में एनडीए की सरकार 13 माह ही चल पाई थी जिसके पश्चात 1999 में लोकसभा का दोबारा चुनाव हुआ था। पर तब प्रतिभा सिंह ने चुनाव नहीं लड़ा। 2004 के आम लोकसभा चुनाव में उन्होंने दूसरी बार अपनी किस्मत आजमाई। तब उन्होंने महेश्वर सिंह से 1998 की हार का बदला लिया था। 2009 का लोकसभा चुनाव वीरभद्र सिंह ने लड़ा था और शनदार जीत दर्ज की थी। 2012 में प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया। फिर 2013 में उपचुनाव हुआ तो प्रतिभा तीसरी बार मैदान में उतरी और वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को करीब 1.39 लाख मतों से शिकस्त देकर दूसरी बार संसद सदस्य निर्वाचित हुई थी। इसके साल भर बाद 2014 में लोकसभा के आम चुनाव हुए और माेदी लहर में भाजपा के रामस्वरूप शर्मा ने उन्हें 39 हजार से अधिक मतों से पराजित किय । प्रदेश में उस समय कांग्रेस सरकार थी। प्रतिभा सिंह की हार से सब दंग रह गए थे। अब करीब सात साल बाद प्रतिभा सिंह दोबारा चुनावी अखाड़े में उतरी हैं। ये उनका पहला चुनाव है जिसमें वीरभद्र सिंह उनके साथ नहीं है लेकिन उनका नाम अब भी प्रतिभा की ताकत दिख रहा है।
ब्रिगेडियर चुनावी मोर्चे पर, भाजपाई सेना एकजुट
भाजपा ने इस बार मंडी से एक नए चेहरे पर दाव खेला है। कारगिल हीरो सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को मैदान में उतारना भाजपा का एक बड़ा कदम माना जा रहा है। उन्हें मैदान में उतारकर भाजपा ने 45,000 सैनिक परिवारों को साधने का प्रयास किया है। इस संसदीय क्षेत्र में सैनिक परिवारों के करीब डेढ़ लाख से अधिक वोट हैं। काफी समय से यहां सेना की पृष्ठभूमि रखने वाले व्यक्ति को टिकट देने की मांग उठती रही है। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर 2014 से टिकट की दौड़ में थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी पैनल में नामांकित हुए, लेकिन टिकट रामस्वरूप शर्मा की झोली में चला गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में द्रंग हलके से टिकट मिलने की उम्मीद थी। पैनल में नामांकित हुए, टिकट जवाहर ठाकुर ले गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर टिकट के प्रबल दावेदार थे। भाजपा ने टिकट दोबारा रामस्वरूप शर्मा को थमा दिया। कवरिंग उम्मीदवार बना भाजपा ने ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को मान सम्मान देने का प्रयास किया था। 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर किसी अहम पद पर उनकी तैनाती होने की उम्मीद जताई जा रही थी। इसके लिए भी उन्हें करीब ढाई साल तक इंतजार करना पड़ा। हिमाचल प्रदेश एक्स सर्विसमैन कारपोरेशन का अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक नियुक्त कर सरकार ने उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयास किया था। सात साल बाद चौथे प्रयास में टिकट उनकी झोली में आया है। खास बात ये है कि ब्रिगेडियर को टिकट देने पर भाजपा में कोई विरोध नहीं दिखा। यानी पार्टी उनके नाम पर एकजुट दिखी है। टिकट की दौड़ में शामिल अन्य भाजपा प्रत्याशी भले ही रेस से बाहर हो गए परन्तु बगावत जैसी स्थिति मंडी में देखने को नहीं मिली। टिकट के चाहवान महेश्वर सिंह, पंकज जम्वाल और अजय राणा के हाथ बेशक मायूसी लगी पर वे अब भी भाजपा के समर्थन में ही दिख रहे है। अजय राणा को बार-बार आस्था बदलने का खामियाज़ा भुगतना पड़ा तो महेशवर सिंह के लिए भी टिकट न मिलने का कारण कुछ ऐसा ही है। अजय राणा को 2014 के चुनाव की तरह इस बार भी टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। इस बार के पैनल में उनका नाम दिल्ली तक गया, लेकिन वहां मुहर नहीं लग पाई। बिग्रेडियर खुशाल ठाकुर को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित संसदीय क्षेत्र के ज्यादातर नेताओं का आशीर्वाद था। पार्टी का सर्वे भी उनके पक्ष में था। इन्हीं दो बातों के आधार पर टिकट उनकी झोली में आ गया जिसे बाकि लोगो ने स्वीकार लिया।
पांच साल में दस गुना बढ़ा था हार का अंतर
2014 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस उम्मीदवार थी और उस चुनाव में उन्हें करीब 40 हज़ार वोटों से शिकस्त मिली थी। जबकि 2019 में आश्रय शर्मा 4 लाख से भी अधिक वोटों से हारे थे। यानी 2014 में जो अंतर करीब 40 हज़ार था वो पांच साल में 10 गुना बढ़कर करीब चार लाख हो गया।दिग्गज भी धराशाई हुए है मंडी में
इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में वीरभद्र सिंह मंडी से करीब 36 हज़ार वोट से चुनाव हार गए थे। 1989 में पंडित सुखराम करीब 28 हज़ार वोट से चुनाव हारे। उन्हें महेश्वर सिंह ने चुनाव हराया था। इसके बाद 1991 में महेश्वर सिंह को पंडित सुखराम ने परास्त किया। 1998 में महेश्वर सिंह ने प्रतिभा सिंह को चुनाव हराया। 1999 में महेश्वर ने कौल सिंह ठाकुर को हराया। महेश्वर सिंह इसके बाद 2004 में प्रतिभा सिंह से और 2009 में वीरभद्र सिंह के सामने चुनाव हार गए। वर्तमान में सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 2013 के उप चुनाव में प्रतिभा सिंह से हारे। वहीं 2014 के आम चुनाव में प्रतिभा सिंह को रामस्वरूप शर्मा ने हराया।