चेतन बरागटा हुए मुखर और बदल गए जुब्बल-कोटखाई के समीकरण
बरसात का मौसम खत्म हुआ और उपचुनाव आ गए, साथ ही शुरू हो गई कच्चे -पक्के वादों की बरसात और इस बरसात में उठ रही बगावत की गंध ने सियासी तौर पर माहौल और भी रोचक बना दिया है। जुब्बल कोटखाई में भाजपा दो धड़ों में बंट गई गई है। एक तरफ बरागटा को श्रद्धांजलि देने वाले लोग जमा हो गए है तो दूसरी तरफ भाजपा के निष्ठावान सिपाही बचे है। दो गुटों में बंटें ये भाजपाई पहले आपस में लड़ेंगे और फिर कांग्रेस से मुकाबले पर बात होगी। वहीं जुब्बल कोटखाई कांग्रेस एकजुट होकर भजपाईओं के इस तमाशे का आनंद ले रही है। पर कांग्रेस की राह इतनी भी आसान नहीं होगी जितना कुछ समर्थक सोच कर चल रहे है। विशेषकर बरागटा के प्रति दिख रही सहानुभूति कुछ भी गुल खिला सकती है, बशर्ते वे मैदान में डटे रहे। बहरहाल यदि बरागटा डटे रहे तो ये सहानुभूति कितनी वोट में तब्दील होती है और किस किसको नुकसान पहुंचाएगी, ये ही विश्लेषण का विषय होगा। जुब्बल कोटखाई की राजनीति समझने वाले मानते है कि इसे सीधे तौर पर सिर्फ भाजपा का नुक्सान नहीं समझना चाहिए, जब सहानुभूति प्रखर होती है तो राजनैतिक सीमायें नहीं देखती। जो माहौल और जन सैलाब चेतन बरागटा को टिकट न मिलने पर आहत हुए लोगों ने खड़ा किया उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और न ही अनदेखा किया जा सकता है भाजपा की सुनियोजित रणनीतियों को। खैर आगे जो भी हो इतना स्पष्ट है की जुब्बल कोटखाई का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। ये उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती है तो कांग्रेस के सामने अपनी परंपरागत सीट को फिर कब्जाने की, वहीँ चेतन बरागटा ने इसे मान सम्मान की जंग बना लिया है।
कांग्रेस ने जुब्बल कोटखाई से पूर्व विधायक रोहित ठाकुर को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने गहन मंथन और जोड़ तोड़ के बाद चेतन बरागटा का टिकट काट कर नीलम सरैक को टिकट दिया है। नीलम सरैक को टिकट देकर पार्टी एक मापदंड स्थापित करना चाहती थी कि भाजपा वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ है। हालाँकि ये पोलिटिकल स्टंट पार्टी को उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है। भाजपा ने शायद कभी नहीं सोचा होगा की चेतन के समर्थन में इतने लोग मैदान में उतर भाजपा के खिलाफ बगावत कर देंगे। चेतन पूरी तैयारी कर चुके थे, टिकट न मिलने पर उन्होंने ये तक कह डाला कि उन्हें बर्बाद कर दिया, उन्हें धोखा दिया गया। चेतन समर्थकों के बीच आकर रो दिए और पूरा माहौल बदल दिया। भाजपा के कई समर्थक भी चेतन को टिकट न मिलने से खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। दरअसल जुब्बल कोटखाई ऐसा उपचुनाव क्षेत्र है जहां चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रचार प्रसार शुरू हो गया था। भाजपाई पिछले तीन महीनों से चेतन के साथ गांव -गांव घूम प्रचार प्रसार कर रहे थे परंतु टिकट बदल पार्टी ने उस पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया। ये समर्थक पार्टी के वंशवाद के तर्क को भी सिरे से खारिज कर रहे है। इनका कहना है की चेतन पिछले 14 सालों से पार्टी के लिए काम कर रहे है। वे भाजपा आईटी सेल के अध्यक्ष भी है। उन्होंने पिछले कई सालों से पार्टी को मज़बूत करने का काम किया है। उन्हें टिकट देना वंशवाद नहीं कहला सकता। यहां नीलम सरैक पर भी तरह - तरह के आरोप लगाए जा रहे है। कुछ का कहना है की नीलम ने कांग्रेस के साथ मिलकर पार्टी को कमज़ोर करने का काम किया है तो कुछ उनपर पार्टी कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगा रहे है। हाल फिलहाल चेतन ने मैदान में उतर कर यहां के समीकरण बदल दिए है।
दो बार खिला कमल, दोनों बार बरागटा थे मैदान में
जुब्बल-कोटखाई वो विधानसभा क्षेत्र है जहां कमल खिलाना भजपा के लिए कभी आसान नहीं रहा। इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ तो कहा ही जाता है मगर जुब्बल - कोटखाई को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. ठाकुर रामलाल का गढ़ कहना भी गलत नहीं होगा। ठाकुर रामलाल कुल नौ मर्तबा जुब्बल कोटखाई से विधायक रहे है। उनके निधन के बाद दो बार इस विधानसभा क्षेत्र की कमान उनके पोते रोहित ठाकुर भी संभाल चुके है। अब तक भाजपा को यहां केवल दो ही बार जीत मिल पाई है। कांग्रेस के इस गढ़ में कमल खिलाने वाले नेता थे पूर्व विधायक नरेंद्र बरागटा। वर्ष 2003 में बरागटा ने इस विस क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा मगर वे जीत नहीं पाए। इसके बाद विपक्ष में रहते हुए वे पांच साल जुब्बल - कोटखाई की आवाज बने रहे। नतीजन 2007 में उन्हें जुब्बल - कोटखाई की जनता ने वोट रुपी आशीर्वाद दिया और पहली बार इस सीट पर भाजपा विजयी हुई। 2017 में भी इस विधानसभा क्षेत्र से नरेंद्र बरागटा ही जीते।
2003 से सत्ता के साथ जुब्बल-कोटखाई
जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की जनता 2003 से ही सत्ता के साथ चलती आ रही है। वर्तमान में भाजपा की सरकार है तो भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते, 2012 में कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस के रोहित ठाकुर और उससे पहले 2007 में भाजपा की सरकार थी तो भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते थे। इसी तरह 2003 के चुनाव में रोहित ठाकुर को जनता का आशीर्वाद मिला।
यहां वीरभद्र सिंह भी हारे है
1990 में वीरभद्र सिंह हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में उतरे। उस चुनाव में वीरभद्र दो सीटों से लड़े, रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई। रोहड़ू में तो वीरभद्र जीत गए लेकिन जुब्बल कोटखाई में करीब पंद्रह सौ वोट से हार गए। दिलचस्प बात ये है की वीरभद्र सिंह को हराने वाले थे वहीं ठाकुर रामलाल जिन्हें कुर्सी से हटाकर वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। दरअसल मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ठाकुर रामलाल को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया था और प्रदेश की राजनीति से एक किस्म से वे दूर हो गए थे। धीरे -धीरे ठाकुर रामलाल और कांग्रेस के बीच भी खाई बनती गई और ठाकुर रामलाल जनता दल में शामिल हो गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में ठाकुर रामलाल ने जनता दल से टिकट पर जुब्बल कोटखाई से चुनाव लड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को परास्त करके अपनी पकड़ का लोहा मनवाया।
दो मुख्यमंत्री देने वाल इकलौता क्षेत्र
जुब्बल कोटखाई, हिमाचल प्रदेश का इकलौता ऐसा निर्वाचन क्षेत्र जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह। नौ बार के विधायक और तीन बार मुख्यमंत्री रहे ठाकुर रामलाल की कर्मभूमि रहे जुब्बल कोटखाई की सियासत हमेशा से ही रोचक रही है। 1977 में ठाकुर रामलाल जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब वे इसी सीट से विधायक थे। फिर 1980 में जब शांता सरकार को गिराकर ठाकुर रामलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब भी वे इसी सीट से विधायक थे। 1982 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ने रिपीट किया और जुब्बल कोटखाई से विधायक ठाकुर रामलाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। फिर 1983 में हिमाचल की सियासत में टिम्बर घोटाले के चलते बवाल मच गया। तब इसी बवाल में मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल की कुर्सी चली गई और वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। सियासत के जादूगर वीरभद्र सिंह ने जनता की नब्ज को भांपते हुए विधानसभा जल्दी भंग करवा दी और 1985 में ही विधानसभा चुनाव करवा दिए। दिलचस्प बात ये है कि 1985 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह ने अपना चुनाव क्षेत्र बनाया जुब्बल कोटखाई को। उसी जुब्बल कोटखाई क्षेत्र को ठाकुर रामलाल का गढ़ था। वीरभद्र सिंह जीत गए और दूसरी बार मुख्यमंत्री भी बन गए। यानी जुब्बल कोटखाई को दूसरा मुख्यमंत्री मिल गया।