क्लीन इमेज के कवच से सियासी बाणों को झेलते जयराम

नगर निगम के जख्म अभी ताजा है और दस्तक दे रहे है उपचुनाव। दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव ने जयराम सरकार के सामने अनचाही चुनौती खड़ी कर दी है। सरकार को इस लिटमस टेस्ट से गुजरना भी होगा और उठती हुई आवाज़ों को दबाएं रखने के लिए इस पर खरा भी उतरना होगा। लोकप्रियता की शुद्धता में कमी दिखी तो दोतरफा हमला तय है, विपक्ष का हौंसला तो बढ़ेगा ही भीतर से उठ रही आवाज़ें भी बुलंद होंगी। साथ ही 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जनता के बीच भी सरकार के खिलाफ माहौल बनने का खतरा बढ़ेगा। 1993 से वीरभद्र सिंह और प्रेमकुमार धूमल के बीच स्थान्तरित होती रही हिमाचल की सत्ता में 2017 चुनाव में बड़ा ट्विस्ट आया, जब भाजपा के सीएम फेस प्रेम कुमार धूमल खुद चित हो गए। बतौर सीएम एंट्री हुई मिस्टर क्लीन एंड कूल जयराम ठाकुर की। तब से अब तक जयराम विरोधी उन्हें सेट करने का मौका तलाशते दिखे है, पर हर मौके पर जयराम ठाकुर बचते रहे है। उनके कार्यकाल में पहले भाजपा ने लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया, फिर पच्छाद और धर्मशाला में हुए उपचुनाव में शानदार जीत दर्ज की। इसके बाद इसी साल जनवरी में हुए पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा। पर इस जीत के उत्साह में सरकार ने पार्टी सिंबल पर नगर निगम चुनाव करवाने की सियासी भूल कर दी। भूल हुई तो खामियाजा भी भुगतना ही था, नगर निगम चुनाव में कांग्रेस भाजपा से इक्कीस साबित हुई। इस आंशिक जीत से जहां कांग्रेस में जान फूंक गई, वहीं जयराम विरोधियों को भी मौका मिल गया। दरअसल, नगर निगम चुनाव में खुद सीएम जयराम ठाकुर ने वार्ड -वार्ड घूमकर प्रचार किया था, पर नतीजा सिफर रहा। ऐसे सीएम की लोकप्रियता को लेकर सवालों के बाण तो चलने ही थे। साथ ही जयराम ठाकुर की निर्णय लेने की क्षमता को लेकर भी उन पर हमले होते रहे। हालाँकि जयराम ठाकुर की क्लीन इमेज का कवच उन्हें अब तक ऐसे सियासी बाणों से बचाता रहा है, पर निसंदेह आगामी उपचुनाव जयराम सरकार का अब तक का सबसे बड़ा इम्तिहान लेंगे।
जयराम और अनुराग : झलकियों में दिखती तल्खियां
जयराम कैबिनेट में धूमल गुट के कई बड़े चेहरों को जगह नहीं मिली। फिर निगम और बोर्डों की नियुक्ति में भी धूमल गुट हाशिये पर ही दिखा। बदलती सियासत में कुछ नेताओं ने तो निष्ठा बदल ली लेकिन अधिकांश तटस्थ रहे। जाहिर है इन तमाम नेताओं -कार्यकर्ताओं की निष्ठा पूर्व मुख्यमंत्री के लिए बरकरार है। हालाँकि, इस बीच खुद प्रो प्रेम कुमार धूमल शांत और सहज रहे है और उन्होंने कभी भी ऐसा कोई ब्यान नहीं दिया जिससे पार्टी या सरकार असहज हो, पर उनकी ताकत हमेशा दिखी। इस बीच उनके पुत्र अनुराग ठाकुर का कद भी केंद्र की सियासत में बढ़ता रहा। अनुराग केंद्र में मंत्री बन गए और उनके इस सियासी उदय ने धूमल गुट के निष्ठवानों की आस प्रबल कर दी। समर्थकों को अनुराग में भावी सीएम दिखने लगा। इस दरमियान कई मौके ऐसे भी आये जहां अनुराग ठाकुर और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बीच की दूरी स्पष्ट दिखी। पहले डॉ राजीव बिंदल की बतौर प्रदेश अध्यक्ष ताजपोशी में सीएम हाथ बढ़ाते रह गए और जाने -अनजाने अनुराग आगे बढ़ गए। इसके बाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला के मुद्दे पर एक समारोह में अनुराग ने खुलकर प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाये। यानी झलकियों में तल्खियां दिखती आ रही है।
हवा - हवाई नहीं है सीएम के तेवर
हिमाचल में सीएम फेस बदलने को लेकर तरह -तरह की चर्चाएं होती रही है। पिछले दिनों जब उत्तराखंड में सीएम बदले गए तो इन चर्चाओं ने और जोर पकड़ लिया। हालाँकि फिलवक्त इनका कोई ठोस आधार नहीं दिखता। बीते दिनों जब सीएम जयराम ठाकुर दिल्ली गए तो फिर दबी जुबान ऐसी बातें होने लगी। पर वापस लौटते ही सीएम ने दो टूक कह दिया कि 'मैं यहाँ हूँ और 2022 में भी रहूंगा।' सीएम इस तरह कम ही तेवर दिखाते है, अब दिखाया है तो जाहिर है वे आश्वस्त है। वैसे भी वर्तमान स्थिति में इस बात में कोई शक -और- शुबह नहीं है कि सीएम जयराम ठाकुर की कुर्सी इस कार्यकाल में सेफ है। उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का भी आशीर्वाद मिला हुआ है। 2017 में भी नड्डा के समर्थन से ही बतौर सीएम उनकी राह प्रशस्त हुई थी। ऐसे में वर्तमान राजनीतिक परिवेश में तो उन्हें बदले जाने के कोई आसार नहीं दिखते। बाकी राजनीति में हाल और हालात बदलते देर नहीं लगती।
संगठन में भी 'जयराम' की ही 'जय'
2017 में सत्ता वापसी के बाद से अब तक तीन नेता प्रदेश भाजपा की सरदारी संभाल चुके है। सतपाल सिंह सत्ती का कार्यकाल 2019 में पूरा हुआ और उसके बाद जैसे - तैसे माननीय विधानसभा अध्यक्ष बनकर बैठे डॉ राजीव बिंदल प्रदेश अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए। कमान सँभालते ही बिंदल एक्शन में आये और पुरे प्रदेश में उन्होंने अपनी टीम तैनात कर दी। पर बिंदल का विवादों से गहरा नाता है। कोरोना काल में स्वास्थ्य घोटाले में भी उनका नाम उछला और बिंदल को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में क्लीन चिट जरूर मिली लेकिन बिंदल पूरी तरह साइडलाइन कर दिए गए और अब भी हाशिए पर ही है। बिंदल के बाद इंदु गोस्वामी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की खूब चर्चाएं रही। माना जाता है उनका नाम लगभग तय था लेकिन अंत में कमान मिली सांसद सुरेश कश्यप को। माहिर अब भी मानते है कि सुरेश कश्यप की नियुक्ति जयराम ठाकुर का मास्टर स्ट्रोक था। अब सरकार के साथ -साथ संगठन में भी जयराम ठाकुर की पकड़ है।