आखिर सियासी तारे जमीन पर आ ही गए
प्रदेश के सियासी क्षितिज पर जगमगा रहे कई तारे उपचुनाव नतीजों के बाद जमीन पर आते दिख रहे है। नगर निगम चुनाव के बाद उपचुनाव में भाजपा को जोर का झटका लगा है वो भी जोर से। कई आत्ममुग्ध नेता और दिग्गज जनता दरबार में धराशाई हो गए। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समेत कई कैबिनेट मंत्रियों और पार्टी संगठन को जनता ने आइना दिखा दिया। उपचुनाव में मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं की साख दाव पर थी। कई नेताओं को प्रभारी बनाया गया था तो कई पर अपने -अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लीड दिलवाने का जिम्मा था। पर अधिकांश खरे नहीं उतरे। ऐसा ही हाल पार्टी संगठन का भी है, नगर निगम चुनाव के बाद दूसरे बड़े इम्तिहान में भी संगठन बेअसर दिखा।
भाजपा पार्टी विद डिसिप्लिन है, और प्रदेश में जो भी हाल हो मगर राष्ट्रीय स्तर पर इसे अनदेखा नहीं किया जाने वाला। सवाल तो पूछे ही जायेंगे, जवाबदेही भी तय होगी और निश्चित तौर पर सुधार भी होगा। बीते कुछ महीनों में पार्टी ने जिस तरह कई राज्यों में परिवर्तन किया है उसे देखते हुए अभी से सियासी पंडित कयास लगाने लगे है। किन्तु ये नहीं भूलना चाहिए कि जयराम ठाकुर का बचाव न सिर्फ उनकी स्वच्छ छवि की ढाल कर रही है बल्कि मंडी के नौ में से आठ निर्वाचन क्षेत्रों में मिली बढ़त भी उनके पक्ष में गई है। सही मायनों में उपचुनाव में वे अकेले ही भाजपा की तरफ से लोहा लेते दिखे है, बाकी तो मानो फर्ज अदायगी चल रही थी।
भाजपा ये दावा करती है कि चुनाव में प्रत्याशी तय करने से पहले ग्राउंड सर्वे होता है, फिर गहन मंथन के बाद प्रत्याशी तय किये जाते है। इसमें चुनाव प्रभारियों से लेकर आम कार्यकर्ताओं के फीडबैक को तवज्जो दी जाती है। सब कुछ पूरी प्लांनिग के साथ होता है परन्तु जो नतीजे सामने आए है उनसे तो भाजपा के सर्वे पर भी सवाल उठ रहे है। ये सर्वे और फीडबैक पार्टी की जीत के लिए हुए थे या कोई इनसाइड स्टोरी है, ये भी बड़ा सवाल है। भाजपा का कोई एक प्रभारी भी अपनी साख नहीं बचा पाया। पार्टी ने जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को मंडी संसदीय सीट के लिए, बिक्रम ठाकुर को फतेहपुर के लिए, डॉ राजीव बिंदल को अर्की के लिए और मंत्री सुरेश भारद्वाज को जुब्बल कोटखाई उपचुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किया था। इनके आलावा मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर और मंत्री राम लाल मारकंडा पर भी अपने -अपने क्षेत्रों से लीड दिलवाने का जिम्मा था। पर ये सभी असफल रहे।
थम गया जयरथ
जयराम ठाकुर सरकार के मुखिया है और जाहिर है जीत का श्रेय और हार का जिम्मा दोनों उनके खाते में ही दर्ज होने थे। ये चार- शून्य से मिली हार निसंदेह उनके लिए बड़ा झटका है। उपचुनाव में मुख्यमंत्री ने करीब 70 जनसभाएं की लेकिन सब व्यर्थ गया। मंडी में तो मुख्यमंत्री ने स्वयं मोर्चा संभाला था। इससे मुकाबला कड़ा जरूर हुआ परन्तु भाजपा को जीत नहीं मिल पाई। पर जिला के नौ में से आठ निर्वाचन क्षेत्रों में मिली लीड जरूर बताती है कि जिला मंडी में जयराम ठाकुर की पकड़ जबरदस्त है। ये जगजाहिर है कि भाजपा का एक गुट जयराम ठाकुर का विरोधी है, पर अब तक ये गुट खुलकर उनके खिलाफ मुखर नहीं हो पा रहा था। दरअसल चुनावी विजय रथ पर सवार जयराम ठाकुर ने कभी उन्हें ऐसा मौका ही नहीं दिया। पर इस हार के बाद दबे हुए विरोध के सुर बुलंद हो सकते है, जिन्हें थामना जयराम ठाकुर के लिए बड़ी चुनौती होगी।
दमखम दिखा पाते तो मंडी भाजपा की होती
शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर के जिला कुल्लू की चारों सीटों पर भाजपा पिछड़ी। मंत्री के अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी पार्टी को लीड नहीं मिली। यानि मंडी संसदीय उपचुनाव के इम्तिहान में गोविन्द सिंह ठाकुर पूरी तरह फेल हो गए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि मंत्री के जिला में पार्टी अच्छा करती तो जीत हार का अंतर खत्म किया जा सकता था। यदि गोविन्द ठाकुर अपना दमखम दिखा पाते तो मंडी भाजपा की होती। प्रतिभा सिंह को मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर के गढ़ मनाली में भी 1841 मत अधिक प्राप्त हुए है। भाजपा ने कुल्लू जिले का दायित्व भी शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर को सौंपा था। बता दें की कुल्लू जिले के चारों हलकों में कांग्रेस ने 14,659 मतों की बढ़त प्राप्त की है।
मार्कण्डेय फिर विफल
तकनीकी शिक्षा मंत्री डा. रामलाल मारकंडा भी उपचुनाव में नाकाम रहे। मंत्री अपने हलके व गृह जिले में भाजपा की साख नहीं बचा पाए। लाहौल स्पीति में कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिली। लाहुल स्पीति के विधायक एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री डा. रामलाल मारकंडा ने जिला परिषद के चुनाव में भाजपा को मिली हार से भी कोई सबक नहीं सीखा। वह क्षेत्र के 23,790 मतदाताओं की नब्ज टटोलने में पूरी तरह विफल रहे। 23,790 से 13,547 ने मतदान किया था। कांग्रेस यहां 2147 मतों की बढ़त ले गई।
बेअसर दिखे मंत्री महेंद्र
उपचुनाव में मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर भी अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए। महेंद्र ठाकुर को मंडी संसदीय उपचुनाव का प्रभारी बनाया गया था। पर वे भी चुनाव प्रचार प्रसार में अधिक प्रभावशाली नहीं दिखे। जिला मंडी के बाहर हर जगह भाजपा पिछड़ी जो हार का कारण सिद्ध हुआ। लगातार अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले मंत्री कहने को चुनाव प्रभारी जरूर थे पर चुनाव पूरी तरह जयराम ठाकुर के इर्दगिर्द ही घूमता दिखा। हालांकि मंत्री का अपना निर्वाचन क्षेत्र धर्मपुर मंडी संसदीय क्षेत्र में नहीं आता लेकिन कुछ अन्य क्षेत्रों से महेंद्र सिंह दूर ही दिखे।
बतौर प्रभारी दूसरी हार, उठेंगे कई सवाल
फतेहपुर में उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह ठाकुर व वन मंत्री राकेश पठानिया ने कमान संभाल रखी थी। यहां भी दोनों ही मंत्री फेल हो गए। विशेषकर बिक्रम ठाकुर के लिए ये बड़ी हार है। इससे पहल पालमपुर नगर निगम चुनाव में भी मंत्री प्रभारी थे और भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी। बिक्रम ठाकुर जिला कांगड़ा में भाजपा के सबसे मजबूत मंत्री है और उद्योग व परिवहन जैसे महत्वपूर्ण महकमे उनके पास है। बतौर प्रभारी उनका लगातार विफल होना पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है। सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर ही जाता है।
अर्की में नहीं हुई जीत वाली नाटी
अर्की में भी लोग बस इंतज़ार करते रह गए और बिंदल का जादू नहीं चला। लगा था जीत की नाटी करने का जो मौका सोलन नगर निगम चुनाव के बाद नहीं मिला वो शायद अर्की में मिल जाए, पर ऐसा जनादेश आया नहीं। बिंदल को संगठन का डॉक्टर भी कहा जाता है लेकिन उनके प्रभारी रहते पार्टी को फिर हार मिली है। आमतौर पर अपने संवाद से ही कार्यकर्ताओं में जोश भर देने वाले बिंदल को जो लोग करीब से जानते है, जो उनकी कार्यशैली को जानते है उन्हें भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर हुआ क्या है।
भुलाएं नहीं भूलेगी ये हार
बाकि हलकों में जो हुआ उसे भुलाया जाना उतना कठिन नहीं है परन्तु जुब्बल कोटखाई की हार को भाजपा के इतिहास का काला अध्याय कहा जाने लगा है। यहां देश की सबसे बड़ी पार्टी के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। यहां संगठन भी टूटा और कार्यकर्त्ता भी पार्टी से रूठ गया। स्थिति सुधरने के बजाए दिन प्रति दिन बिगड़ती चली गई। चुनाव प्रभारी सुरेश भारद्वाज अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में पूरी तरह विफल रहे और नतीजा अब सभी के सामने है। सवाल ये भी है कि उपचुनाव के दौरान परिवारवाद को लेकर भाजपा का जो जमीर जागा है क्या वो आगे भी जाएगा रहेगा। दूसरा क्या चेतन बरागटा का निष्कासन 6 वर्ष तक बरकरार रहेगा या पार्टी को 2022 आते -आते फिर उनकी याद आएगी।