जमानत जब्त, जो दिख रहा था वो ही हुआ
जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में जो हुआ वो भाजपा को अर्से तक याद रहेगा। ऐसी करारी हार भुलाई भी नहीं जा सकती। सत्तासीन भाजपा के लिए भी ये हार झटका भी है और सबक भी। इससे बुरी स्थिति क्या होगी कि भाजपा उपचुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई है। भाजपा प्रत्याशी के मतों का आंकड़ा 2644 में सीमट कर रह गया जो किसी राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार की ओर से लिए गए अब तक सबसे कम मतों का रिकॉर्ड है। जिस सीट पर भाजपा का कब्जा था वहां भाजपा की इतनी बुरी हालत होगी ये तो उन नेताओं ने भी नहीं सोचा होगा जिनकी मनमानी ने पार्टी की लुटिया डुबाई।
दरअसल उपचुनाव में भाजपा टिकट आवंटन के बाद से ही अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेल रही थी। टिकट आवंटन के बाद मानों जुब्बल कोटखाई में भाजपा का पूरा संगठन ही ध्वस्त हो गया। जब अपना कार्यकर्ता ही साथ नहीं था तो नतीजा कैसे अनुकूल आता ? खुद मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने पूरा दमखम लगाया लेकिन इन कार्यक्रमों में जनता तो दूर की बात पार्टी कार्यकर्ता तक नहीं पहुंच रहे थे। कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर के कार्यक्रम के लिए भी आसपास के क्षेत्रों से लोग पहुंचे लेकिन स्थानीय लोग वहां भी नहीं दिखे। पार्टी की स्थिति का अंदाजा इसी से लगा लीजिये कि टिकट आवंटन से प्रचार बंद होने तक भाजपा में निष्कासन का दौर ही चलता रहा। अंत तक पार्टी अपने ही कार्यकर्ताओं को निष्कासित करती रही।
जिला शिमला के एकमात्र मंत्री सुरेश भारद्वाज को भाजपा ने जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र में चुनाव प्रभारी बनाया था। चुनाव प्रचार की पूरी कमान सुरेश भारद्वाज के हाथों में रही। पर भारद्वाज पूरी तरह बेअसर रहे। चेतन का टिकट काटने के बाद कार्यकर्ताओं में खूब रोष था और चेतन के समर्थक तो इसका जिम्मेदार मंत्री को ही बताते रहे। हालांकि भाजपा में टिकट का निर्णय पार्टी आलाकमान करता है और चेतन का टिकट काटने का तर्क परिवारवाद पर लगाम लगाना बताया गया पर समर्थक ऐसा नहीं मानते। दरअसल अतीत में स्व नरेंद्र बरागटा और सुरेश भारद्वाज के बीच का मतभेद कई मौकों पर सामने आता रहा, जिसके चलते बरागटा परिवार के समर्थकों की धारणा है कि चेतन के टिकट की राह भारद्वाज ने ही मुश्किल की। कारण जो भी हो लेकिन उपचुनाव में भाजपा की खूब किरकिरी हुई।
करारी हार, उम्मीद से बदतर रहा प्रदर्शन
जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा मात्र 2644 मतों में सीमट कर रह गई। जबकि भाजपा को जमानत बचाने के लिए करीब 9414 मत चाहिए थे। भाजपा प्रत्याशी नीलम जमानत बचाने के लिए आवश्यक मतों के एक तिहाई वोट भी नहीं ले सकीं। हालांकि ऐसा नहीं है कि नीलम की जमीनी पकड़ नहीं है या निजी तौर पर उन्हें लेकर लोगों में कोई रोष हो लेकिन भाजपा की खराब रणनीति ने उनकी भी फजीहत करवाई। माना जा रहा था कि नीलम की जमानत बचना मुश्किल होगा लेकिन इतनी बुरी स्थिति तो विश्लेषकों ने भी नहीं सोची होगी।
जब अनुराग स्वीकार है तो चेतन क्यों नहीं ?
परिवारवाद के जिस अजब तर्क के नाम पर भाजपा ने चेतन का टिकट काटा वो न जनता को हजम हुआ और न भाजपा कार्यकर्ताओं को। जो व्यक्ति करीब डेढ़ दशक से पार्टी में सक्रिय हो, लम्बे वक्त से पार्टी के प्रदेश आईटी सेल का प्रमुख हो, परिवारवाद के नाम पर उसका टिकट काटे जाना समझ से परे है। चेतन पैराशूटी नेता नहीं है जो अपने पिता के निधन के बाद टिकट लेने आ गए, वो निरंतर पार्टी में सक्रिय थे। एक आम कार्यकर्त्ता की तरह ही अपने कई वर्ष पार्टी को दे चुके है। अगर उनके टिकट की राह में परिवारवाद रोड़ा था तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर भी तो वर्तमान में केंद्रीय मंत्री है। समर्थक तो उन्हें भावी मुख्यमंत्री तक मानते है। जब अनुराग स्वीकार है तो चेतन क्यों नहीं ?
अब ठेके कौन देगा
माना जा रहा है कि भाजपा की स्थिति बदतर करने में बड़े नेताओं के बयानों ने भी खासी भूमिका अदा की है। जुब्बल कोटखाई में प्रचार के दौरान मंत्री सुरेश भारद्वाज का एक बयान भी खूब चर्चा में रहा। भारद्वाज का ठेकेदारों को लेकर दिया विवादित बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। एक जनसभा में भारद्वाज इस वीडियो में कहते नजर आये कि यहां विकास के हर काम और ठेके भाजपा प्रत्याशी नीलम सरैईक और भाजपा सरकार के माध्यम से ही मिलेंगे। बहुत से ठेकेदार सोचते हैं कि वे उधर से आ जाएंगे और उनका चलता रहेगा। वैसे ठेके नहीं मिलेंगे।