फतेहपुर भी हारे, फिर धरा रह गया मंत्री बिक्रम ठाकुर का प्रबंधन
फतेहपुर उपचुनाव में हार के साथ ही मंत्री बिक्रम ठाकुर के चुनाव प्रबंधन की पोल फिर खुल गई। एक बार फिर मंत्री बिक्रम सिंह ठाकुर चुनावी इम्तिहान में फेल हो गए। अभी तो पालमपुर नगर निगम में हार की टीस भी कम नहीं हुई थी और फतेहपुर ने फिर बड़ा झटका दे दिया। बढ़ती महंगाई, भीतरघात और जमीनी स्तर पर कार्यकर्तओं की नाराजगी के बीच बलदेव ठाकुर की नैय्या पार लगाने के लिए मैदान में डटे प्रभारी बिक्रम ठाकुर के लिए ये उपचुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। फिर भी उम्मीद थी कि मंत्री जी के प्रबंधन का कमाल यहाँ दिखेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। रणनीतिक तौर पर भी भाजपा पुरे चुनाव में पिछड़ी दिखी। बड़े नेताओं के आयोजनों से आम जन की दुरी और नाराज दिख रहे कार्यकर्ता पहले ही हार के संकेत दे रहे थे, और हुआ भी ऐसा ही। जयराम सरकार में बिक्रम ठाकुर वो चेहरा है जिनका कद और पद लगातार बढ़ा है। 2019 में जयराम कैबिनेट के कुछ मंत्रियों का डिमोशन हुआ,पर बिक्रम ठाकुर को उद्योग मंत्रालय के साथ- साथ परिवहन जैसा अहम महकमा भी दे दिया गया। फिर उन्हें पालमपुर नगर निगम चुनाव की ज़िम्मेदारी सौंपी गई जिसमें भाजपा बुरी तरह परास्त हुई। इस हार के बाद अब फतहपुर उपचुनाव की ज़िम्मेदारी भी बिक्रम सिंह ठाकुर को दी गई थी जहाँ वे फिर नाकामयाब रहे है। कांगड़ा जैसे बेहद महत्वपूर्ण ज़िले में मिली इन दो हारों की कसक जरूर भाजपाई खेमे में होगी। जाहिर है फतेहपुर के बाद अब पार्टी आलाकमान भी विस्तृत विश्लेषण करेगा। ऐस में ये मंत्री बिक्रम सिंह के सियासी बहीखाते में जुड़ी एक और हार उनके लिए परेशानी का कारण है। वन मंत्री राकेश पठानिया फतेहपुर उपचुनाव में सह प्रभारी थे। कभी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर के खिलाफ बयान को लेकर तो कभी सभी को मास्क पहनने वाले डंगर बताकर पठानिया लगातार चर्चा में रहे और अब हार को लेकर चर्चा में है। नूरपुर के साथ लगते क्षेत्रों में उनके प्रभाव से भाजपा को बड़ी आस थी पर वे भी बलदेव को जीत नहीं दिला सके। यहाँ जीत मिलती तो निसंदेह पठानिया का असर भी बढ़ता, पर ये हार कई सवाल छोड़ गई। एक सवाल ये भी है कि क्या भाजपा के बड़े चेहरे अति आत्मविश्वास से ग्रस्त है ?
कांग्रेस के बनिस्पत फीका जमीनी प्रचार
फतेहपुर में कांग्रेस ने पूर्व विधायक स्व सुजान सिंह पठानिया के पुत्र भवानी पठानिया को टिकट दिया था। भाजपा के हाथ में परिवारवाद एक बड़ा मुद्दा था लेकिन खुद से ही झूझती दिखी पार्टी आक्रामक तरीके से मतदातों के बीच इस मुद्दे को लेकर नहीं पहुंची। किसी तरह रैलियों में क्राउड मैनेजमेंट कर पार्टी जीत की उम्मीद में थी लेकिन जमीनी स्तर पर पार्टी प्रचार कांग्रेस के बनिस्पत फीका ही दिखा। कांग्रेस के कई नेता भवानी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, बावजूद इसके भाजपा इस स्थिति का लाभ उठाने में कामयाब नहीं रही।
कांगड़ा के मतदाता नामों का लिहाज नहीं करते
2017 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सरकार के बड़े बड़े चेहरे कांगड़ा में धराशाई हुए थे। इनमें सुधीर शर्मा और स्व. जीएस बाली भी थे। कांगड़ा के मतदाताओं ने कभी बड़े नामों का लिहाज नहीं किया है। जिस कांगड़ा में कभी खुद मुख्यमंत्री रहते हुए शांता कुमार चुनाव हार सकते है वहां भाजपा की दूसरी पंक्ति के नेताओं का अति आत्मविश्वास समझ से परे है। फिलहाल कांगड़ा से बिक्रम सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया और सरवीण चौधरी मंत्री है जबकि विपिन सिंह परमार विधानसभा अध्यक्ष है। बावजूद इसके पहले नगर निगम चुनाव में भाजपा को झटका लगा और अब फतेहपुर उपचुनाव में भी। वर्ष 2017 में इसी कांगड़ा ने भाजपा पर भरपूर प्यार बरसाया था, अगर कांगड़ा की हवा बदली तो 2022 में भाजपा की राह वहां मुश्किल होगी।