फतेहपुर: भाजपा का लगाया हार का चौका, बलदेव की हैट्रिक
फतेहपुर में बीते चार चुनाव में चार चेहरे बदल चुकी भाजपा अब लगातार चार चुनाव हार चुकी है। 2009 के उपचुनाव से शुरू हुआ हार का ये सिलसिला 2021 के उपचुनाव में भी कायम रहा। कांगड़ा जिला से होकर ही शिमला की गद्दी का रास्ता जाता है, ऐसे में सत्ता के इस सेमीफाइनल में ये हार पार्टी के लिए करारा झटका है। इस जीत ने जहाँ कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर दी है, वहीँ भाजपा अब सकते में है। यहाँ जयराम सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों की साख भी दांव पर थी, बिक्रम सिंह ठाकुर और राकेश पठानिया। पर ये दोनों ही मंत्री भाजपा की नैया पार नहीं लगा सके। विशेषकर बिक्रम ठाकुर के लिए तो ये बड़ा झटका है, बिक्रम ठाकुर ही यहाँ चुनाव प्रभारी थे। इससे पहले ठाकुर पालमपुर नगर निगम चुनाव में भी प्रभारी थे लेकिन वहां भी भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी।
फतेहपुर उपचुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी, पर न तो मुख्यमंत्री के दौरे भाजपा की हार टाल सके और न ही कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर की रैलियां काम आईं। हिमाचल प्रभारी अनिवाश राय खन्ना के जीत के दावे भी नतीजे के बाद हवा हवाई सिद्ध हुए। इसमें कोई संशय नहीं है कि इस चुनाव में टिकट आवंटन से लेकर नतीजे आने तक हर मोर्चे पर भाजपा की सांगठनिक योजना भी धराशायी हुई। दरअसल इस वर्ष फरवरी में पूर्व विधायक सुजान सिंह पठानिया का निधन हुआ था और उसके बाद से ही भाजपा उपचुनाव के लिए एक्शन में थी। लगातार मुख्यमंत्री और संगठन की विभिन्न इकाइयों के आयोजन हो रहे थे। गौर करने लायक बात ये है कि इन सभी आयोजनों में पार्टी पूर्व में प्रत्याशी रहे कृपाल परमार को आगे रखकर चलती दिखी। जिस तरह की तवज्जो कृपाल को दी जा रही थी उससे मोटे तौर पर ये तय माना जा रहा था कि कृपाल ही चेहरा होंगे। पर अंतिम समय में पार्टी ने बलदेव ठाकुर को टिकट दिया। नतीजन कृपाल के समर्थन में कई प्राधिकारियों ने इस्तीफे दिए, कई नाराज़ हुए।
हालांकि बाहरी तौर पर मुख्यमंत्री ने कृपाल को मना लिया लेकिन इस स्थिति को ठीक से पार्टी मैनेज नहीं कर पाई। पार्टी के एक तबके ने प्रचार नहीं किया और भीतरघात से भी इंकार नहीं किया जा सकता। लगातार तीसरी बार हार के साथ ही भाजपा प्रत्याशी बलदेव ठाकुर के राजनीतिक भविष्य भी सवाल उठने लगने है। इससे बलदेव 2012 में पार्टी प्रत्याशी थे और 2017 में बतौर बागी चुनाव लड़े थे। हार की हैट्रिक बना चुके बलदेव के लिए आगे की राह आसान नहीं होनी। यहाँ दिलचस्प बात ये भी है की 2017 के चुनाव में बलदेव की बगावत ने पार्टी की लुटिया डुबाई थी, तब पार्टी ने उन्हें निष्कासित भी किया था। बावजूद इसके खुद को पार्टी विथ डिफरेंस एंड डिसिप्लिन कहने वाली भाजपा ने बलदेव को टिकट दिया।
दोनों साथ थे तो मजबूत थे !
फतेहपुर क्षेत्र में डॉ राजन सुशांत एक समय में भाजपा के तेज तर्रार नेता माने जाते थे। दोनों साथ थे तो मजबूत थे, पर जब से दोनों की राह जुदा हुई है, दोनों का हाल खराब है। स्व सुजान सिंह पठानिया को 2007 के विधानसभा चुनाव में हारने वाले नेता भी डॉ राजन सुशांत ही थे। इस उपचुनाव में भी डॉ राजन सुशांत करीब 13 हजार वोट ले गए और भाजपा की हार का कारण बने। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार राजन सुशांत के प्रदर्शन में ख़ासा सुधार दिखा। हालांकि उनकी इस हार के बाद उनकी पार्टी 'हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी' के भविष्य पर भी संशय की स्थिति है।