जुब्बल कोटखाई उपचुनाव : मान गए ठाकुर, खूब दिखाया दमखम
जुब्बल-कोटखाई सीट पर कांग्रेस ने फिर परचम लहराया और एक बार फिर रोहित ठाकुर का दमखम दिखा। रोहित ठाकुर 6293 मतों से विजयी हुए हैं। मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी और भाजपा के बागी चेतन बरागटा के साथ था। चेतन के साथ सहानुभूति भी थी और उनका चुनाव प्रबंधन भी शानदार था लेकिन रोहित की क्षेत्र में लगतार सक्रियता और जमीनी पकड़ के तिलिस्म को चेतन भेद नहीं पाएं। जानकार मान कर चल रहे थे कि जीत हार का अंतर नजदीकी होगा लेकिन 6293 वोट का अंतर रोहित का असल दम बताता है। उपचुनाव में जहाँ भाजपा और चेतन एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप लगाने में उलझे रहे वहीं रोहित ख़ामोशी के साथ जनसम्पर्क में जुटे रहे। भाजपा की कोशिश शुरू से जमानत बचाने से ज्यादा नहीं दिखी तो चेतन का फोकस भी कुछ हद तक भाजपा को काउंटर करने का रहा। दोनों की लड़ाई ने रोहित की राह आसान कर दी।
2017 के विधानसभा चुनाव में रोहित ठाकुर नजदीकी मुकाबले में हार गए थे। तब मुकाबला खुद नरेंद्र बरागटा से था, भाजपा भी एकजुट थी और कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी थी। सो नतीजा रोहित के विरुद्ध में गया। पर उपचुनाव में बंटे हुए प्रतिद्वंदी रोहित के आगे नहीं टिके। 2003 में पहला विधानसभा चुनाव लड़ने वाले रोहित का ये पांचवा चुनाव था और तीसरी बार उन्हें जीत मिली। अपने पहले चुनाव से अब तक जनता ने उन्हें चाहे विधानसभा भेजा हो या नहीं, रोहित ठाकुर हमेशा क्षेत्र में सक्रिय रहे है। इसी सक्रियता और मजबूत पकड़ का इनाम उन्हें मिला है। 2022 में यदि कांग्रेस की सत्ता वापसी होती है और रोहित फिर जीत दर्ज करने में कामयाब रहे तो ये तय है कि उन्हें सरकार में कोई महत्वपूर्ण भूमिका मिलेगी। पर अगले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने में एक वर्ष से भी कम वक्त है और उम्मीदें ज्यादा, सो रोहित को डे वन से मैदान में डटना होगा।
इस उपचुनाव में बेशक रोहित ठाकुर ने शानदार जीत दर्ज की है लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार चेतन बरागटा हारने के बावजूद सबका दिल जरूर जीत गए। जुब्बल-कोटखाई में कुल 56,612 मत पड़े जिनमें से कांग्रेस प्रत्याशी रोहित ठाकुर ने 29,955 मत हासिल किए और चेतन बरागटा को 23662 मत पड़े। पर यक़ीनन तौर पर 20 दिन में जिस तरह से चेतन ने चुनाव लड़ा वो हैरान करने वाला है, विशेषकर उनका चुनाव प्रबंधन। बाकायदा वॉर रूम बनाया गया, कार्यकर्ताओं की पूरी ब्रिगेड तैयार की गई, जिम्मेदारियों का निर्धारण हुआ और रैलियों व चुनाव आयोजनों के लिए बेहतर क्राउड मैनेजमेंट भी दिखा। चेतन को बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जितने मत प्राप्त हुए वो आज से पहले किसी भी निर्दलीय प्रत्याशी को नहीं मिले। चेतन अभी से 2022 के लिए ऐलान कर चुके है और जिस सहजता के साथ उन्होंने अपनी हार स्वीकार की है वो भी तारीफ के काबिल है। अलबत्ता चेतन के लिए चुनावी राजनीति की शुरुआत हार के साथ हुई हो लेकिन इतना तय है कि चेतन अब थमने वाले नहीं है।