उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके राजीव बिंदल, फिर नहीं जीतवा सके चुनाव
रतन सिंह पाल के साथ-साथ अर्की निर्वाचन क्षेत्र में वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ राजीव बिंदल की साख भी दांव पर लगी थी। दरअसल बिंदल अर्की में भाजपा के प्रभारी थे, पर अर्की में बिंदल का जादू नहीं चला। संगठनात्मक कार्यक्रमों में भी पार्टी की कमजोरी खुलकर सामने आई। जिस 'बिंदल मैनेजमेंट' का राग उनके समर्थक गाते थे वो फिर एक बार फ्लॉप सिद्ध हुआ। इससे पहले बिंदल सोलन नगर निगम चुनाव में भी बिंदल प्रभारी थे पर नतीजा पार्टी के पक्ष में नहीं रहा था। सोलन बिंदल का गृह क्षेत्र था बावजूद इसके तब न सिर्फ भाजपा हारी बल्कि बिंदल के कई करीबियों को भी जनता ने नकार दिया। अब अर्की में भी बिंदल बेअसर रहे। अर्की में चुनाव प्रचार के दौरान हुए कार्यक्रमों में प्रबंधन की खामियां लगातार उजागर हुई। नामांकन के दिन केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर अर्की पहुंचे थे। तब अनुराग के स्वागत के लिए काफी संख्या में उनके समर्थक और चाहवान विभिन्न क्षेत्रों से अर्की पहुंचे थे सो कार्यक्रम जैसे-तैसे ठीक ठाक हुआ। किन्तु अनुराग के दूसरे दौरे में भाजपा के चुनाव प्रबंधन की पोल खुल गई। उसी दिन देवभूमि क्षत्रिय संगठन की कुहिनार में रैली थी जिसमें काफी संख्या में लोग पहुंचे जबकि अनुराग के कार्यक्रम में तुलनात्मक तौर पर काफी कम लोग थे। यानी डॉ राजीव बिंदल की अगुवाई में भाजपा के चुनाव प्रबंधक केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के कार्यक्रमों में इतनी भीड़ भी नहीं जुटा पाए जितनी एक नए संगठन ने एकत्र कर ली। इसके बाद 25 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के कुनिहार में आयोजित कार्यक्रम में उचित प्रबंध करना भाजपा के लिए नाक का सवाल था। पर हकीकत ये है कि चप्पे -चप्पे पर पोस्टर बैनर की भरमार होने के बावजूद पुरे प्रचार अभियान में भाजपा आम जनता से कनेक्ट करने में नाकामयाब रही। साथ ही पार्टी के आम कार्यकर्त्ता की बॉडी लैंग्वेज भी वैसी नहीं थी जिसके लिए भाजपा जानी जाती है।
स्वास्थ्य घोटाले के बाद इस्तीफा, अब हाशिये पर !
डॉ राजीव बिंदल लम्बे वक्त से पार्टी के कद्दावर नेता रहे है। वर्ष 2000 में हुए सोलन उपचुनाव को जीतकर बिंदल पहली बार विधानसभा पहुंचे थे और इसके बाद 2003 और 2007 में भी सोलन निर्वाचन क्षेत्र से जीते। 2012 में जब सोलन सीट आरक्षित हो गई तो बिंदल ने नाहन का रुख किया और वहां जीतकर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। 2017 में बिंदल दूसरी बार नाहन से जीते और एक वक्त पर प्रो धूमल के हारने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना जा रहा था। पर समय के फेर में मुख्यमंत्री की रेस में शामिल बिंदल मंत्री तक नहीं बने। उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। जैसे तैसे 2019 के अंत में बिंदल प्रदेश अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे लेकिन कोरोना काल में हुए स्वास्थ्य घोटाले की वजह से 2020 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। तब बिंदल ने इसे नैतिकता के आधार पर दिया गया इस्तीफा बताया था और बाद में उन्हें क्लीन चिट भी मिल गई। पर इसके बाद से बिंदल एक किस्म से हाशिए पर दिख रहे है, न उन्हें मंत्री पद मिल रहा है और न ही संगठन में कोई अहम् भूमिका।
समर्थकों को आस, परिवर्तन हो तो शायद कुछ बेहतर हो !
डॉ राजीव बिंदल के समर्थक निरंतर इसी आस में है कि या तो बिंदल को कबिनेट में एंट्री मिल जाएं या फिर संगठन में कोई बड़ी भूमिका। पर ऐसा हो नहीं रहा। अब प्रदेश में हुए चार उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है जिसके बाद सरकार संगठन में फेरबदल के कयास है। बिंदल समर्थक इसी उम्मीद में है कि इस बारे डॉ बिंदल को भी कहीं बेहतर स्थान मिलेगा पर ये नहीं भुलाया जा सकता कि सोलन नगर निगम चुनाव और अर्की उपचुनाव की हार भी बिंदल के खाते में है।
जिला संगठन में बदलाव की दरकार
अर्की में भाजपा के संगठन की बात करें तो यहाँ संगठन में बदलाव की दरकार है। अर्की मंडल के पदाधिकारी इस उपचुनाव में जमीनी स्तर पर प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रहे है। न सिर्फ अर्की बल्कि भाजपा के जिला संगठन का भी ऐसा ही हाल है। पिछले कई सालों में सोलन जिला में भाजपा का संगठन कभी इतना कमजोर नहीं दिखा है। अमूमन ये ही हाल जिला भाजयुमो का है। जो भाजयुमो युवा शक्ति के सहारे पार्टी के आयोजनों में जोश भरता था वो भी अब फीका सा दिख रहा है। यूँ तो भाजयुमो का वन बूथ ट्वेंटी यूथ कार्यक्रम हर माह जारी है लेकिन सवाल ये है कि क्या यह अभियान केवल युवाओं को कागजों में जोड़ना मात्र ही साबित हो रहा है। फिलवक्त जिला सोलन में मिल रही हार के बाद संगठन में फेरबदल की जरुरत को भाजपा नकार नहीं सकती।