सिरमौर : असंतोष, अंतर्कलह और हाटी फैक्टर के बीच फंसी भाजपा

हिमाचल प्रदेश की सियासत में जिला सिरमौर का ख़ास स्थान रहा है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार सिरमौर से ही ताल्लुख रखते थे। अलबत्ता उनके बाद प्रदेश की सियासत में सिरमौर को उचित स्थान तो मिलता रहा पर सिरमौर सियासत के शिखर तक नहीं पहुंचा। पर जयराम राज में सिरमौर का सियासी रुतबा खूब बढ़ा। यूँ तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिला सिरमौर की तीन सीटें मिली थी, फिर भी सिरमौर के खाते में एक मंत्री पद भी गया और प्रदेश भाजपा संगठन की सरदारी भी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप सिरमौर से आते है और प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद भी है। कई बोर्ड-निगमों में भी सिरमौर को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। बावजूद इसके भाजपा यहाँ सहज नहीं दिख रही। प्रदेश अध्यक्ष के जिला में ही असंतोष भी है और अंतर्कलह भी। यदि पार्टी इसे नहीं भेद पाई तो मनमाफिक नतीजे मिलना मुश्किल होगा। इसके अलावा हाटी समुदाय का मसला भी भाजपा के जी का जंजाल बन गया है। देश और प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकार है और पार्टी से जवाब देते नहीं बन रहा। इस मुद्दे पर पार्टी का रुख चुनाव की दशा और दिशा तय कर सकता है।
2017 के चुनाव में नाहन, पांवटा साहिब और पच्छाद सीट पर भाजपा को जीत मिली। तब प्रो प्रेमकुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद बिंदल भी सीएम पद के दावेदारों में थे, पर राजनीतिक बिसात पर वे पिट गए। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें कैबिनेट मंत्री तक का पद नहीं दिया गया। डा. राजीव बिंदल काे विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी मिली। पर 2019 खत्म होते -होते बिंदल विधानसभा अध्यक्ष के पद से सीधे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँचने में कामयाब हो गए। पद मिला तो बिंदल के तेवर भी दिखने लगे और असर भी। पर 2020 में काेविड-19 के दौर में स्वास्थ्य विभाग घाेटाले के चलते डा. बिंदल काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। ख़ास बात ये है कि पार्टी ने उनका रिप्लेसमेंट भी सिरमौर से ही दिया। सांसद सुरेश कश्यप काे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ज़िम्मा मिल गया। इसके बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में पांवटा साहिब से विधायक सुखराम चाैधरी काे मंत्री पद देकर भाजपा ने बिंदल की कमी पूरी करने का सारा प्रबंध कर लिया। पर ग्राउंड रियलिटी की अगर बात करें तो सभी पांच निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी ऐसा नहीं ,है जहाँ भाजपा इक्कीस दिख रही है। हर जगह कड़ा मुकाबला तय है।
पांवटा साहिब : आसानी से नहीं मिलेगा सुख
मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पांवटा साहिब में भी भाजपा को आसानी से सत्ता सुख मिलता नहीं दिख रहा।
भीतरखाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। उधर कांग्रेस संभवतः फिर करनेश जंग को मैदान में उतारे। हालांकि कई कांग्रेसी अब आप में गए है जिससे भाजपा जरूर उत्साहित होगी।
पच्छाद: कांग्रेस की अंतर्कलह से होगी आस
उपचुनाव में भाजपा ने एक युवा महिला नेता को टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप को पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। अब दयाल प्यारी कांग्रेस में जा चुकी है। ऐसे में यहाँ भाजपा की नज़र कांग्रेस की अंतर्कलह पर रहेगी। पर भाजपा में भी टिकट के कई दावेदार है। वैसे पच्छाद में भाजपा की स्थिति कुछ कमजोर जरूर हुई है, जिला परिषद और स्थानीय निकाय के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते है।
नाहन : फिर लगने लगा धरतीपुत्र का नारा
नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी सहज नहीं दिख रहे है। यहाँ अभी से धरतीपुत्र का नारा बुलंद होता दिख रहा है। बाहरी फैक्टर चला और कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी, तो बिंदल को भी मुश्किल होती दिख रही है। इसके अलावा सवर्ण आंदोलन फैक्टर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।
रेणुकाजी /शिलाई : खेल न बिगाड़ दे हाटी समुदाय
रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी। दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा के लिए हाटी समुदाय को विशेष दर्जे का मुद्दा भी सरदर्द बनता दिख रहा है। पार्टी में टिकट दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त भी परेशानी बढ़ा सकती है। उधर कांग्रेस में सम्भवतः दोनों ही वर्तमान विधायकों को फिर मौक मिले।
बिंदल साइडलाइन, बाकी में वो बात नहीं !
सिरमौर में भाजपा के वर्तमान सियासी आउटलुक की बात करें तो तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से साइडलाइन है। न सरकार में उन्हें अहमियत दी गई है और न ही संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी। नगर निगम सोलन और अर्की उपचुनाव का प्रभारी जरूर उन्हें बनाया गया, किन्तु दोनों जगह पार्टी परास्त हुई। उन्हें साइडलाइन रख कई नेताओं की ताकत बढ़ाई गई जिससे समीकरण संतुलित रह सके। पर इसमें कोई संशय नहीं कि बिंदल जैसा जादू अन्य नेता नहीं दिखा पा रहे।
तो भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा...
पिछले दिनों हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में जुटे लोगों ने स्पष्ट कहा कि 2014 में तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नाहन के चौगान मैदान में गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का वादा किया था। तदोपरांत 2019 में तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मंत्री ने हरिपुरधार में इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की बात कही थी। वर्तमान में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप भाजपाई है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में यदि प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्ज नहीं मिलता है, तो उसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना होगा।
दरअसल गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का मसला 144 पंचायतों से सीधे जुड़ा है और इसके दायरे में चार विधानसभा क्षेत्र आते है। शिलाई के अतिरिक्त, श्रीरेणुकाजी, पच्छाद व पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में भी ये मुद्दा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जाहिर है फिलवक्त भाजपा सत्ता में है तो नाराजगी का कोप भी भाजपा को भुगतना पड़ा सकता है। ऐसे में निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा अब इस मुद्दे पर कोई सार्थक पहल कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका लाभ भी मिलना तय है।