2024 में उम्मीदवार का चेहरा भी देखेगी जनता !
( words)
- केंद्र को लेकर न प्रो इंकम्बेंसी और न ज्यादा नाराजगी
- पीएम मोदी के चेहरे पर भाजपा को मिली थी एकतरफा जीत
- सही टिकट आवंटन होगा निर्णायक फैक्टर
उम्मीदवार कोई भी रहा हो लेकिन चेहरा तो मोदी ही थे। पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन का सार ये ही हैं। देश के अधिकांश हिस्सों की तरह ही हिमाचल की चार लोकसभा सीटों पर भी भाजपा को पीएम मोदी के चेहरे पर एकतरफा जीत मिली। 2019 में तो हवा ऐसी चली कि कांग्रेस ने भी रिकॉर्ड बना दिए, हार के अंतर के रिकॉर्ड। जब राहुल गाँधी पूर्वजों की सीट अमेठी नहीं बचा पाएं तो हिमाचल में कांग्रेस के नेता भला क्या और कितना ही कर लेते। विधानसभा हलकों के लिहाज से देखे तो सभी 68 क्षेत्रों में कांग्रेस पिछड़ी। उस रामपुर में भी जहाँ विधानसभा चुनाव में कभी कमल नहीं खिला। बहरहाल पांच साल होने को आएं और फिर अब नेताओं को जनता के दरबार में हाजिरी लगानी हैं। अलबत्ता अभी चुनाव में चंद महीने शेष हैं लेकिन फिलवक्त जमीनी स्तर पर वैसी प्रो इंकमबैंसी नहीं दिख रही जैसी 2019 में थी। सियासी फिजा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया तो सम्भवतः इस दफा जनता सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी का नहीं बल्कि उम्मीदवार का चेहरा भी देखेगी। यानी हिमाचल में मुकाबला खुला हैं।
हिमाचल प्रदेश में 2019 से अब तक बहुत कुछ बदल गया हैं। जयराम पूर्व हो चुके हैं और सुक्खू वर्तमान हैं। 2021 में हुए उपचुनावों से भाजपा लगातार हारती आ रही हैं तो कांग्रेस के लिए सब बेहतर घटा हैं। बावजूद इसके जब मुकाबला लोकसभा का होगा तो भाजपा जरा भी उन्नीस नहीं हैं। लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जायेगा, प्रदेश में दोनों दलों की स्थिति कुछ असर तो डालेगी लेकिन नतीजे पूरी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। पर केंद्र सरकार को लेकर भी न तो इस मर्तबा प्रो इंकम्बैंसी दिख रही हैं और न ही ज्यादा नाराजगी, ऐसे में दोनों ही दलों के लिए उम्मीदवारों का चयन बेहद महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।
मंडी संसदीय सीट भाजपा ने 2021 के उपचुनाव में गवां दी थी, लेकिन अन्य तीन सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। हमीरपुर सांसद अनुराग ठाकुर केंद्र सरकार में मंत्री हैं और खुद सियासत में एक बड़ा नाम हैं। ऐसे में संभव हैं यहाँ भाजपा कोई छेड़छाड़ न करें। हालांकि अनुराग प्रदेश के बाहर भी लोकप्रिय हैं और यदि उन्हें भाजपा कहीं और से उतारती हैं तो हमीरपुर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा संभवतः दूसरा मुफीद विकल्प हैं। इसी संसदीय क्षेत्र से सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री भी आते हैं तो स्वाभविक हैं यहाँ भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी। वहीं शिमला और कांगड़ा में जाहिर हैं भाजपा सियासी परफॉरमेंस का बही-खाता देखकर टिकट पर निर्णय लें। दोनों सांसदों, किशन कपूर और सुरेश कश्यप के टिकट कटते हैं या नहीं, ये पार्टी के आंतरिक सर्वे पर भी निर्भर करेगा। आपको बता दें की इन तीनों संसदीय क्षेत्रों में भाजपा को विधानसभा चुनाव में झटका लगा था और पार्टी की सबसे ज्यादा पतली हालत शिमला संसदीय क्षेत्र में हुई थी जहाँ के सांसद सुरेश कश्यप तब प्रदेश अध्यक्ष भी थे। बहरहाल किशन कपूर और सुरेश कश्यप दोनों लगातार जनता के बीच जरूर दिख रहे हैं, पर टिकट पर फैसला लेने से पहले जाहिर हैं पार्टी सियासी गणित के हर समीकरण पर हिसाब लगाएगी।
वहीं मंडी में पूर्व सीएम जयराम ठाकुर इस वक्त निर्विवाद तौर पर सबसे वजनदार चेहरा हैं। पर यदि जयराम को पार्टी प्रदेश से दिल्ली नहीं बुलाती हैं तो यहाँ चेहरे का चुनाव टेढ़ी खीर होगा। यहाँ से संभवतः पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह फिर मैदान में होगी और ऐसे में भाजपा प्रत्याशी का चयन काफी महत्वपूर्ण होने वाला हैं।
कांग्रेस के सामने दोगुनी चुनौती !कांग्रेस की बात करें तो यहाँ चुनौती दोगुनी हैं। पीएम मोदी के सामने पार्टी चेहरा कौन होगा, ये ही अभी तय नहीं हैं। पार्टी राहुल गाँधी को खुलकर प्रोजेक्ट करेगी, इसकी सम्भावना कम ही लगती हैं। ऐसे में भाजपा के पास एक स्वाभाविक एडवांटेज होगा। इस स्थिति में दमदार प्रत्याशी देना कांग्रेस के सामने इकलौता विकल्प हैं। मंडी में पार्टी के पास प्रतिभा सिंह के रूप में चेहरा है, लेकिन अन्य तीन संसदीय क्षेत्रों में चेहरे पर अब भी पेंच फंसा हैं। कहीं मंत्री को चुनाव लड़वाने की तैयारी बताई जा रही हैं, तो कहीं मंत्री पद के चाहवान को। कोई तैयार हैं, तो कोई तैयार ही नहीं। कांग्रेस के लिए जरूरी हैं कि स्थिति जल्द स्पष्ट हो ताकि संभावित प्रत्याशियों को फील्ड में अधिक समय मिले। पार्टी के पास जरा सी चूक की भी गुंजाईश नहीं हैं।