क्या सोलन नगर निगम कांग्रेस को क्रॉस वोटिंग का डर है ?
**कब मिलेंगे चार नगर निगमों को मेयर और डिप्टी मेयर ?
**भाजपा का आरोप, जानबूझकर विलम्ब कर रही सरकार
**क्या सोलन की वजह से बाकी चुनावों में भी हो रहा विलम्ब ?
एक माह से ज्यादा वक्त बीत गया पर प्रदेश के चार नगर निगमों को मेयर और डिप्टी मेयर नहीं मिल पाए है। नगर निगम मंडी, पालमपुर, सोलन और धर्मशाला में न मेयर है और न डिप्टी मेयर। जाहिर है इससे कार्य प्रभावित हो रहे है। उधर भाजपा इसे लेकर सरकार पर हमलावर है। अभी तक चुनाव की नोटिफिकेशन नहीं आई है और ऐसे में अब सरकार की देरी पर सवाल उठना तो लाजमी है। आखिर क्यों हो रहा है ये विलम्ब, इसे लेकर कयासबाजी जारी है।
आपको बता दें कि नगर निगम पालमपुर और सोलन में जहाँ कांग्रेस का कब्ज़ा है तो वहीँ मंडी और धर्मशाला में भाजपा के पास संखयाबल है। यूँ तो ये चुनाव पार्टी सिंबल पर हुए थे पर हिमाचल प्रदेश के स्थानीय निकायों में एंटी डिफेक्शन कानून लागू नहीं होता, ऐसे में क्रॉस वोटिंग से इंकार नहीं किया जा सकता। पेंच दरअसल यहीं फंसा है। माना जा रहा है कि मंडी में भाजपा और पालमपुर में कांग्रेस के मेयर डिप्टी मेयर तो लगभग तय है, पर धर्मशाला और सोलन में ट्विस्ट मुमकिन है। धर्मशाला में कांग्रेस जहाँ सम्भावना तलाश रही है तो सोलन में कांग्रेस को डर होना लाजमी है। सोलन में कांग्रेस के ही पार्षद अपने मेयर डिप्टी मेयर के खिलाफ 2022 में विश्वास प्रस्ताव ला चुके है और यहाँ पार्षदों में मतभेद नहीं बल्कि मनभेद की स्थिति दिखती है। इसी में भाजपा को संभावना दिख रही है। ऐसे में कांग्रेस फूंक फूंक कर कदम बढ़ाना चाहती है। सोलन से विधायक कर्नल धनीराम शांडिल कैबिनेट मंत्री है, सीपीएस संजय अवस्थी कभी इसी निकाय में पार्षद थे, ऐसे में यहाँ चूक हुई तो इन दिग्गजों पर भी सवाल उठेगा।
बहरहाल चर्चा आम है कि सोलन में कांग्रेस अपने पार्षदों को एकसाथ लाने में अब तक कामयाब नहीं हुई है। पार्टी को क्रॉस वोटिंग का डर है और ये ही कारण है की मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव को लम्बा खींचा जा रहा है। वहीँ धर्मशाला में पार्टी जोड़ तोड़ कर सभावना देख रही है। इसी के चलते अन्य दो नगर निगमों में भी विलम्ब हुआ है। हालांकि आपको बता दें कि मेयर डिप्टी मेयर चुनाव में विधायक के वोट को लेकर पहले स्थिति स्पष्ट नहीं थी, जो विलम्ब का एक कारण बना है।
उधर भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस सरकार इसे जानबूझकर खींच रही है। अब विधायकों के वोटों को लेकर स्थिति साफ हो गई है, फिर भी सरकार ये चुनाव नहीं करा रही है। आपदा के दौर में मेयर डिप्टी मेयर न होने से विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए है। बहरहाल सियासी वार पलटवार के बीच सियासी जोड़ तोड़ भी जारी है। कांग्रेस सत्ता में है और यदि पार्टी कहीं भी चुकी तो सवाल तो उठेंगे ही। वहीँ 2021 के उपचुनावों से हिमाचल में लगातार हार का सामना कर रही भाजपा भी मुफीद मौके की तलाश में है। अगर भाजपा मेयर-डिप्टी मेयर चुनाव में कांग्रेस को पटकनी दे पाई तो लोकसभा चुनाव से पहले ये पार्टी के लिए बूस्टर डोज होगा।