उपचुनाव : कोई कसर रह गई तो असर दूर तक दिखेगा
आगामी चार उपचुनाव 20 विधानसभा क्षेत्रों में दोनों राजनीतिक दलों का इम्तिहान है। ये उपचुनाव आठ जिलों में दोनों मुख्य दलों की जमीनी स्थिति बताएगा। ये विधानसभा चुनाव से पहले शक्ति परिक्षण का बेहतरीन मौका है, दरअसल ये सही मायनों में सत्ता का सेमीफाइनल है। ये किसी अन्य उपचुनाव की तरह नहीं है, ये कहीं चेहरे तय कर सकता है तो कहीं चेहरे बदल सकता है। किसी का दावा मजबूत कर सकता है तो 2022 से पहले किसी की राह कठिन। 30 अक्टूबर को मतदान होना है और उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। चाहे मंडी संसदीय क्षेत्र हो या जुब्बल कोटखाई, अर्की और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव, हर तरफ जोर आजमाइश चली है। कोई प्रत्याशी कोई राजनीतिक दल कसर नहीं छोड़ना चाहता। यहां कसर रह गई तो इसका असर दूर तक दिखेगा।
जुब्बल-कोटखाई: नित नए समीकरण और दिलचस्प होता उपचुनाव
उपचुनाव में जुब्बल - कोटखाई इस वक्त हॉट सीट है। सबकी नजरें यहाँ टिकी है। कारण है यहाँ दिख रही रोचक जंग। कांग्रेस ने यहाँ से पूर्व विधायक और जांचे -परखे उम्मीदवार रोहित ठाकुर पर ही भरोसा जताया है। उनके टिकट को लेकर शुरू से कोई संशय नहीं था और रोहित कई माह पहले ही प्रचार शुरू कर चुके थे। साथ ही क्षेत्र में उनकी लगातार सक्रियता और स्थानीय संगठन पर उनकी पकड़ भी उन्हें पक्ष में रहे है। पर रोहित और कांग्रेस को अति आत्मविश्वास की स्थिति से बचना होगा और याद रखना होगा कि 2017 में ऐसा ही आत्मविश्वास उन्हें ले बैठा था। ये तय है की ये चुनाव उनके लिए आसान नहीं है। यहां से दूसरे उम्मीदवार जिन पर सबकी निगाहें टिकी है वो है चेतन बरागटा। इनकी एंट्री ने इस चुनाव को दिलचस्प मोड़ दे दिया है। दरअसल भाजपा ने यहां बरागटा का टिकट काट नीलम सरैक को टिकट दिया। टिकट कटा तो पहले चेतन आहत हुए और फिर चेतन के समर्थक। चेतन बतौर निर्दलीय मैदान में है और भाजपा की मुश्किलें बढ़ा चुके है। भले ही ये चेतन का पहला हो लेकिन उन्हें चुनाव लड़वाने का ठीक अनुभव है, जो उनकी रणनीति में भी दिख रहा है। लगातार सुर्ख़ियों ने बने रहकर चेतन इस चुनाव को अलग मोड़ पर ले जा रहे है जिससे कांग्रेस -भाजपा दोनों तो सतर्क और सावधान रहना होगा। भाजपा और नीलम की बात करें तो इन्हें गियर बदलने की ज़रूरत है। अभी चुनाव प्रचार का अंतिम चरण बाकी है और इसमें कोई संशय नहीं कि भाजपा को भी कम नहीं आंकना चाहिए। उम्मीद ये ही है कि मतदान का दिन आते -आते भाजपा भी रंग में होगी और पार्टी की चिर परिचित आक्रामकता इस चुनावी संग्राम में देखने को मिलेगी। नीलम की जमीनी पकड़ को भी यहां दरकिनार नहीं किया जा सकता। यहां एक और निर्दलीय प्रत्याशी सुमन कदम भी मैदान में है, वो भी भरपूर प्रयास कर रही है। चुनाव में वो कितनी प्रभावशाली साबित होती है, ये तो वक़्त ही बताएगा।
फतेहपुर: विपक्षी हमले से साथ झेलने पड़ रहे है भीतरघाती बाण
कांग्रेस ने यहां भवानी पठानिया को प्रत्याशी बनाया है जो परिवारवाद की बिसात पर अपनी राजनीतिक पारी का आगाज करने जा रहे है। पर यहां कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है की परिवारवाद के नाम पर जो कार्यकर्ता कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध करने पर उतारू थे वो अब 'मिस्टर इंडिया' होते दिख रहे है। परन्तु कांग्रेस को ये याद रखना होगा कि सियासत महाठगिनी है। यहां अक्सर जो दिखता है वो होता नहीं है। पार्टी के पास चूक की जरा भी गुंजाईश नहीं होनी चाहिए।भाजपा की बात करें तो फतेहपुर की दीवारों पर अब भी आये दिन नए पोस्टर नजर आ रहे है। यहां पोस्टर पॉलिटिक्स खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। जब भाजपा के कृपाल परमार को टिकट देने की सुगबुगाहट थी तो 'अबकी बार चक्की पार' के पोस्टर लग रहे थे और अब जब बलदेव भाजपा के फाइनल कैंडिडेट है तो 'अबकी बार जवाली पार' के पोस्टरों ने फतेहपुर की दीवारों को रंगीन बना रखा है। अब ये विपक्षी हमला है या भीतरघाती बाण कुछ कहा नहीं जा सकता। भाजपा के धुआंधार प्रचार के बावजूद कुछ क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ताओं का किसानों द्वारा विरोध किया जा रहा है। पर इसमें कोई शक ओ शुबा नहीं है कि पार्टी ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है और भाजपा की ये आक्रामक प्रचार शैली विरोधियों के पसीनी छुड़ा सकती है। फतेहपुर की टक्कर में एक बड़ा नाम डॉ राजन सुशांत भी है। हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक बतौर निर्दलीय मैदान में है और कर्मचारियों और कास्ट फैक्टर से आस लगाए बैठे है। बेशक बीता कुछ वक्त अनुकूल न रहा हो पर राजन सुशांत राजनीति के पुराने घाघ है। वे पांच बार विधायक और एक बार कांगड़ा से सांसद भी रहे है। सियासी माहिरों का मानना है की फतेहपुर के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में राजन सुशांत का बड़ा हाथ रहेगा। फतेहपुर से हिमाचल जनक्रांति पार्टी के पंकज कुमार दर्शी और निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. अशोक कुमार भी चुनावी मैदान में है, नतीजे के दिन इनके प्रदर्शन पर भी निगाहें रहेगी।
मंडी : 'जयराम' की पकड़ और 'वीरभद्र' के नाम का है सवाल !
मंडी लोकसभा का उपचुनाव इस वक्त वीआईपी उपचुनाव बना हुआ है, जिसे राष्ट्रवाद बनाम श्रद्धांजलि के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। यहां एक तरफ वीरभद्र परिवार मैदान में है तो दूसरी ओर पूर्व सैनिक ब्रिगेडियर कुशाल सिंह ठाकुर को भाजपा ने चेहरा बनाया पर। पर मोटे तौर पर बात करें तो कि कुशाल ठाकुर के नाम के साथ खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मैदान में है। मुख्यमंत्री स्वयं घूम घूम कर भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांग रहे है, एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया जा रहा है। मंडी लोकसभा का उपचुनाव निसंदेह भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, यहां मुख्यमंत्री से लेकर विधायकों के रिपोर्ट कार्ड बनने है और इसीलिए भाजपा यहां हर मुनासिब तरकीब अपना रही है। दूसरी तरफ ये उपचुनाव वीरभद्र परिवार के लिए वर्चस्व की जंग है। आगामी समय में होली लॉज का रसूख कितना बरकरार रहता है ये भी काफी हद तक इस उपचुनाव पर निर्भर करेगा। प्रतिभा सिंह स्वयं हो या कोई भी अन्य कांग्रेसी नेता, मंडी में प्रचार प्रसार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा किये गए विकास के नाम पर वोट मांगे जा रहे है। बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी के जैसे मुद्दे भी जनता को याद करवाए जा रहे है। कई अन्य प्रत्याशी भी मैदान में है जैसे राष्ट्रीय लोकनीति पार्टी की अंबिका श्याम, हिमाचल जनक्रांति पार्टी के मुंशी राम ठाकुर, निर्दलीय उम्मीदवार अनिल कुमार और सुभाष मोहन स्नेही। हालांकि मुख्यमंत्री के प्रचार और वीरभद्र के नाम के आगे ये कितना टिक पाते है ये देखना रोचक होगा।
अर्की : उपचुनाव हो रहा रोचक, अपने ही बिगाड़ रहे समीकरण
अर्की विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही परिस्थिति कुछ हद तक एक समान नजर आ रही है। दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए अंतर्कलह बड़ी चुनौती बना हुआ है। एक तरफ जहां कांग्रेस के प्रत्याशी संजय अवस्थी के खिलाफ खुलेआम मुखालफत करने वाले राजेंदर ठाकुर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ रहे है तो दूसरी ओर भाजपा से नाराज चल रहे गोविंद राम शर्मा और उनके साथी भी रतन पाल के पक्ष में प्रचार नहीं कर रहे। भाजपा या यूँ कहे की अनुराग ठाकुर के प्रयास के बाद गोविंद राम शर्मा चुनाव न लड़ने पर सहमत ज़रूर हो गए थे, मगर वो पूरी तरह मान गए है ऐसा नहीं कहा जा सकता। ये स्पष्ट है की यदि इस बार रतन पाल अच्छा नहीं कर पाते है तो 2022 में गोविंदराम की टिकट राह ओर प्रशस्त होगी। ऐसा ही कुछ संजय अवस्थी के साथ भो होगा। संजय दूसरी दफे अर्की से चुनाव लड़ रहे है। इससे पहले उन्हों 2012 में चुनाव लड़ा था। अगर संजय अच्छा परफॉर्म करते है तो आल गुड पर यदि इस बार भी वे अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते है तो सवाल तो उठेंगे ही। ताजा स्थिति की बात करें तो निसंदेह भाजपा का प्रचार कुछ तेजी पकड़ता हुआ दिख रहा है, पर संजय अवस्थी को क्षेत्र में लगातार सक्रीय होने का लाभ भी मिल रहा है। राजेंद्र ठाकुर की नाराजगी यहां कांग्रेस की चिंता का सबब है तो गोविंदराम का खफा होना भजाईयों के लिए परेशानी।