फतेहपुर उपचुनाव विशेष: रार-तकरार और विरासत की अजब सियासत
फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र, कांग्रेस का वो गढ़ जिसे जीत पाना भाजपा के लिए कभी आसान नहीं रहा। पिछले तीन चुनाव में कांग्रेस यहां जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। कारण चाहे भाजपा का कमज़ोर संगठन और आपसी मतभेद रहे हो या फतेहपुर की जनता का सुजान सिंह पठानिया पर भरोसा, कांग्रेस यहां हर बार जीती। अब सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद ये उपचुनाव भाजपा के लिए वापसी का एक मौका है और शायद इसीलिए भाजपा ने यहां अंतर्कलह साधने में पूरा ज़ोर लगा दिया। रूठों को मनाने की जो जुगत भाजपा ने फतेहपुर में लगाईं है उसे देख सभी हैरान है। कांग्रेस ने भी जैसे - तैसे विद्रोह और अंतर्कलह की स्थिति को कुछ हद तक साध ही ली है, बाकी नतीजे तय करेंगे। परन्तु फतेहपुर का चुनाव सिर्फ इन दो मुख्य राजनीतिक दलों तक ही सीमित नहीं है। इन उपचुनाव के लिए कुल 6 प्रत्याशियों ने नामांकन भरा है और ये स्पष्ट है कि यहां निर्दलीय उम्मीदवार समीकरण बना और बिगाड़ सकते है। फतेहपुर में कांग्रेस ने भवानी पठानिया तो भाजपा ने बलदेव ठाकुर को मैदान में उतारा है। इनके अलावा यहां राजन सुशांत (निर्दलीय ), पंकज दर्शी (हिमाचल जनक्रांति पार्टी), प्रेमचंद (निर्दलीय), डॉ. सोमाल (निर्दलीय) भी मैदान में है।
भाजपा को बलदेव के 'बल' से उम्मीद
भाजपा ने यहां पूर्व प्रत्याशी कृपाल परमार का टिकट काट बलदेव ठाकुर को तरजीह दी है। पूर्व में पार्टी के मंडल अध्यक्ष व वर्तमान में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बलदेव ठाकुर लम्बे समय से पार्टी से जुड़े है और एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं। बलदेव ठाकुर ने अब तक दो चुनाव लड़े हैं। पहला 2012 में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर और दूसरा 2017 में एक आजाद उम्मीदवार के तौर पर। वे दोनों ही चुनाव हारे हैं। बलदेव ठाकुर वर्तमान में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भी हैं। 2017 में पार्टी से बाहर होने के बाद लोकसभा के चुनाव में उन्हें वापस संगठन में जगह दी गई थी और अब उन्हें भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। परन्तु कृपाल परमार के समर्थक भाजपा के इस निर्णय से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं थे। शुरुआत से ही राज्यसभा के सांसद रह चुके प्रदेश भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष, पूर्व महासचिव कृपाल परमार का नाम प्रत्याशियों की सूची में सबसे आगे चल रहा थ। समर्थक उनका टिकट लगभग तय मान रहे थे परन्तु क्षेत्र में विरोध होने के चलते उनका टिकट कट गया। उनके अलावा जगदेव ठाकुर और रीता ठाकुर का नाम भी आगे आया परन्तु अंत में बलदेव बाज़ी मार गए। कृपाल परमार का टिकट काटने पर फतेहपुर भाजपा मंडल के सभी सदस्यों ने संयुक्त इस्तीफे सौंप दिए थे। पार्टी हाईकमान की मनमानी को मानने के लिए कृपाल परमार के समर्थक बिलकुल भी तैयार नहीं थे। परन्तु मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्थिति समय रहते अंडर कण्ट्रोल कर ली। मुख्यमंत्री प्रत्याशी बलदेव ठाकुर के नामांकन के लिए फतेहपुर गए और कृपाल परमार से बात की। वे कृपाल परमार को शांत कर हेलिकॉप्टर में उन्हें अपने साथ फतेहपुर से जुब्बल कोटखाई भी ले आए। बाद में वह शिमला भी सीएम के साथ ही आए जिससे फतेहपुर यहां बगावत का खतरा टल गया। बता दें की 15 साल से भी ज्यादा वक्त में ये पहली दफे है जब इस सीट पर भाजपा का कोई बड़ा बागी नहीं होगा। फतेहपुर भाजपा में अंतर्कलह की ये गाथा 2012 से शुरू हुई है । फतेहपुर में भाजपा ने बलदेव ठाकुर को 2012 में टिकट दिया था। वे चुनाव लड़े परन्तु जीत नहीं पाए। इसके बाद 2017 में बलदेव ठाकुर का टिकट काट कृपाल परमार को टिकट दिया गया और बलदेव ठाकुर ने भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ बतौर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। बलदेव तो नहीं जीत पाए परन्तु उनकी बगावत ने भाजपा के समीकरण भी बिगाड़ दिए। इस बार पार्टी ने उल्टा किया और कृपाल का टिकट काट कर बलदेव को दे दिया। बहरहाल मुख्यमंत्री ने भले ही बाहरी तौर पर कृपाल परमार को समझा लिया हो, बेशक हाथ मिल गए हो लेकिन दिल मिले है या नहीं ये आकलन का विषय होगा। क्या कृपाल के समर्थक दिल से बलदेव का साथ देंगे, ये ही यक्ष प्रश्न है।
कांग्रेस में जय भवानी का नारा बुलंद
कांग्रेस ने फतेहपुर उपचुनाव में पूर्व विधायक सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया को टिकट दिया है। भवानी सिंह पठानिया कॉर्पोरेट जगत की नौकरी छोड़कर अपने पिता स्व सुजान सिंह पठानिया की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए फतेहपुर लौटे है। लगातार वंशवाद का हल्ला मचने के बावजूद पार्टी ने उन्ही पर भरोसा जताया है। इस पर कई कांग्रेसी बेहद नाराज़ हुए। निशावर सिंह ने तो बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान भी कर दिया था। टिकट आवंटन से नाराज़ कार्यकर्ताओं ने भवानी पठानिया को चुनावी रणक्षेत्र में चुनौती देने की बात भी कही थी परन्तु अब सब शांत है। अब भवानी कांग्रेस से अकेले ही मैदान में है और मात तौर पर कांग्रेस में जय भवानी का नारा बुलंद है। पर भवानी और विधानसभा के बीच अंतर्कलह की खाई होगी जिसे पाटना भवानी के सामने चुनौती है। अलबत्ता कोई बागी मैदान में नहीं है लेकिन सभी एकजुट होकर बहनी का साथ देंगे ऐसी स्थिति नहीं दिख रही।
7 बार विधायक स्व. पठानिया
भवानी पठानिया के पिता एवं पूर्व मंत्री स्व. सुजान सिंह पठानिया 1977 से लेकर 2017 तक सात बार विधायक रहे। वह 1977, 1990, 1993, 2003 में ज्वाली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर आए। उसके बाद 2009 के उप चुनाव में भी ज्वाली से जीते थे। बदले परिसीमन के बाद वर्ष 2012 और 2017 के चुनाव में वे फतेहपुर सीट से जीते। सुजान सिंह पठानिया वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी माने जाते थे। वीरभद्र सरकार में वह दो बार प्रदेश के मंत्री भी रहे हैं। 1977 में सुजान सिंह पठानिया ने जनता पार्टी में शामिल होने के लिए सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 1980 में सुजान सिंह पठानिया कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पिता की इस मजबूत राजनैतिक विरासत की बिसात पर भवानी एक मंजे हुए नेता की तरह नाप -तोल कर अपने राजनीति कदम आगे बढ़ाते दिख रहे है।