जब शांता कुमार ने कर्मचारियों से लिया 'पंगा'

कहते हैं, हिमाचल की सत्ता पर काबिज होने के लिए कर्मचारी वोट बेहद ज़रूरी हैं। आज भी सरकारें कर्मचारियों को खुश करने की कोशिश में रहती हैं। मगर क्या आप जानते हैं? हिमाचल के एक मुख्यमंत्री ऐसे भी थे, जिन्होंने बिना वोट बैंक की परवाह किए कर्मचारियों से सीधे पंगा ले लिया था और बाद में उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
हम बात कर रहे हैं हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की। 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने निजी क्षेत्र को प्रदेश में हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाने की अनुमति दी थी। तब किन्नौर में एक हाइड्रो प्लांट स्थापित हुआ, लेकिन यह सरकारी कर्मचारियों को रास नहीं आया। विरोध बढ़ा, चर्चाएं हुईं, मगर जब सरकार टस से मस नहीं हुई, तो कर्मचारियों ने हड़ताल का बिगुल बजा दिया। सरकारी दफ्तर सूने पड़ गए, फाइलें धूल खाने लगीं, और हड़ताल आग की तरह फैल गई।
लेकिन शांता कुमार भी अपने सिद्धांतों के पक्के थे। उन्होंने साफ ऐलान कर दिया—"नो वर्क, नो पे!" यानी जो काम नहीं करेगा, उसे वेतन नहीं मिलेगा। कर्मचारियों को लगा कि सरकार झुकेगी, मगर शांता अपने फैसले पर अडिग रहे। 29 दिन चली इस हड़ताल का वेतन कर्मचारियों को नहीं दिया गया। साथ ही, इस दौरान करीब 350 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया।
सरकार और कर्मचारियों की इस तनातनी का असर अगले चुनाव में दिखा। कर्मचारियों ने इसे अपनी हार-जीत की लड़ाई बना लिया। जब वोटिंग हुई, तो बूथों पर उनका गुस्सा साफ नजर आया। नतीजे आए, और स्पष्ट हो गया कि कर्मचारियों ने हिसाब चुकता कर दिया था—शांता कुमार को सत्ता से बाहर कर दिया गया। खुद शांता कुमार दो सीटों से चुनाव लड़े थे और दोनों ही हार गए।