जब सोफत की मेहनत बिंदल के काम आई
![when sofat fought the case but party gave ticket to bindal](https://firstverdict.com/resource/images/news/image39431.jpg)
एक नेता महज़ 26 वोट से चुनाव हार गया... हार नहीं मानी और इस नतीजे को हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली... वहां राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया... 2 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया और दोबारा चुनाव के आदेश दिए... मगर इस बार पार्टी ने उस नेता का ही टिकट काट दिया... इसे ही तो सियासत कहते हैं।
साल 2000 में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत के साथ जो हुआ, वह किसी भी नेता के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं। दरअसल, सोफत साल 1998 के विधानसभा चुनाव में सोलन विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी थे। वहीं, कांग्रेस ने कृष्णा मोहिनी को चुनावी रण में उतारा था। मुकाबला बेहद रोमांचक था। मतगणना के बाद पहले भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को महज़ एक वोट से विजयी घोषित कर दिया गया। लेकिन यह जीत चंद मिनटों की ही मेहमान निकली। कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने तुरंत आवेदन दिया और फिर रिकाउंटिंग हुई। इस बार नतीजा पलट गया—अब सोफत हार गए और कृष्णा मोहिनी महज़ 26 वोट से जीत गईं।
महेंद्र नाथ सोफत इस हार को स्वीकार नहीं कर पाए। उन्होंने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में अनियमितताओं को स्वीकार करते हुए फिर से चुनाव करवाने का आदेश दिया। सोफत ने इसे अपनी जीत समझा। लेकिन कहानी में एक और मोड़ था।
भाजपा ने 2000 में हुए सोलन उपचुनाव के लिए प्रत्याशी ही बदल दिया। दरअसल, जब तक सोफत यह मुकदमा जीते, तब तक प्रदेश की राजनीति में सब कुछ बदल चुका था। अब प्रदेश की सियासत में शांता कुमार नहीं बल्कि धूमल का दौर था। तो महेंद्र नाथ सोफत की जगह डॉ. राजीव बिंदल को टिकट दे दिया गया। कहा जाता है कि बिंदल को कभी खुद सोफत राजनीति में लेकर आए थे। यानी गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर हो गया...
इस तरह सोफत भाजपा में ठिकाने लगा दिए गए और हिमाचल की सियासत में बिंदल की एंट्री हुई... जो आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।