नगर निगम सोलन का हक़- भाग 1
- राजनैतिक इच्छाशक्ति नगर निगम की राह में आती रही है आड़े
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सोलन के साथ अन्याय कर धर्मशाला को दिया गया नगर निगम का दर्जा
आखिर सोलन को कब मिलेगा नगर निगम का दर्जा ! इसमें कोई संशय नहीं है कि सोलन प्रदेश के सबसे तेज विकसित हो रहे शहरों में शुमार है। शहर के विकास को नियोजित तरीके से रफ़्तार देने के लिए नगर परिषद् को नगर निगम में तब्दील किये जाना अत्यंत आवश्यक है। ये काम कई वर्ष पूर्व हो जाना चाहिए था लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति नगर निगम की राह में आड़े आती रही है। वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में सोलन के साथ अन्याय कर धर्मशाला को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। सोलन के तत्कालीन विधायक और मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल शायद सोलन के हक़ की बात जोरशोर से नहीं रख सकें, जबकि धर्मशाला के लिए तब मंत्री रहे सुधीर शर्मा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा तो यही आरोप लगाती रही है।
खेर इस बात को करीब चार वर्ष बीत चुके है और प्रदेश में भाजपा की सरकार बने भी डेढ़ वर्ष से अधिक का समय हो गया हैं, पर सोलन वासियों को अब तक नगर निगम नहीं मिला। नगर निगम सोलन का हक़ हैं, सोलन की जनता की इस सोच का हम सम्मान करते हैं और यही कारण हैं कि फर्स्ट वर्डिक्ट ने 'नगर निगम सोलन का हक़' नाम से ख़बरों की एक विशेष श्रंखला शुरू करने का निर्णय लिया हैं। मकसद हैं नगर निगम बनाने की दिशा में अब तक हुए कार्य से आपको अवगत करवाना और आपकी आवाज़ को हुकूमत तक पहुँचाना।
जाने क्या हैं नगर निगम के मापदंड....
नगर निगम बनाने हेतु दो मुख्य मापदंड है।
- पहला स्थानीय निकाय की वार्षिक आय का दो करोड़ से अधिक होनी चाहिए, जो सोलन नगर परिषद् आसानी से पूरा करती है।
- नगर निगम बनाने के लिए शहर की आबादी 50 हज़ार होनी चाहिए। नियम के अनुसार इसके लिए सेंसेस के आंकड़े लिए जाते हैं।
- 2011 सेन्सस के अनुसार सोलन की आबादी ( शहरी परिसीमन ) 39256 है। आसपास की 12 पंचायतों का विलय करके 11208 की आबादी और जुटाई जा सकती है। इनमें कुछ पंचायतें पूर्ण रूप से शामिल की जानी है, जबकि कुछ का आंशिक विलय किया जाना है। यदि ऐसा किया जाए तो आबादी का मापदंड आसानी से पूरा होता हैं।
- यदि धर्मशाला की बात करें तो वहां की आबादी सिर्फ 22 हज़ार के करीब थी, किन्तु समीपवर्ती क्षेत्रों को शहरी परिसीमन में मिलाकर 50 हज़ार आबादी का मापदंड पूरा किया गया था। सोलन की राह धर्मशाला के मुकाबले काफी आसान हैं, कमी हैं तो सिर्फ राजनैतिक इच्छाशक्ति की।
अब तक क्या हुआ :-
- जिन पंचायतों को शहर में मिलाया जाना हैं उन्हें कभी भी एक मंच पर लाकर चर्चा नहीं की गई।
- किसी भी पंचायत की ग्राम सभा में इस हेतु कभी कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ।
- जानकारी के अनुसार 2018 में नगर परिषद् ने ऐसी 8 पंचायतों को नोटिस जारी किये थे, किन्तु कुछ नहीं हुआ। नगर परिषद् अध्यक्ष देवेंद्र ठाकुर ने जानकारी दी कि हालहीं में लोकसभा चुनाव की आचार सहिंता लगने से पूर्व कुछ पंचायतों को नोटिस ज़ारी किये गए हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल किसी पंचायत से कोई जवाब नहीं मिला हैं।