स्वयं चंद्रदेव ने किया था इस मंदिर का निर्माण
![Chandradev himself had built this temple](https://firstverdict.com/resource/images/news/image35087.jpg)
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग
भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में एक अत्यंत प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर है। यह मंदिर भारतीय इतिहास और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इसे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से किया गया है। इस मंदिर का नाम है 'सोमनाथ मंदिर'।
हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक
यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। मंदिर के वर्तमान भवन का पुनर्निर्माण भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और एक दिसंबर 1955 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इस मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया। लोक कथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने भी देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
ऐसे पड़ा सोमनाथ नाम
प्राचीन हिन्दू गं्रथों के अनुसार अनुसार सोम अर्थात चंद्र ने, दक्षप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से चंदर रोहिणी नामक अपनी पत्नी को अधिक प्यार व सम्मान दिया करते थे। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थी। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इस अन्याय को देख क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि अब से हर दिन उनका तेज क्षीण होता रहेगा। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चन्द्र का तेज घटने लगा। श्राप से विचलित और दुखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। अंतत: शिव प्रसन्न हुए और सोम के श्राप का निवारण किया। श्राप मुक्त होकर चंद्रदेव ने भगवान से प्रार्थना की कि वह माता पार्वती जी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहां निवास करें। भगवान शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ तभी से यहां रहने लगे। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव का स्थापन यहां करवाकर उनका नामकरण हुआ सोमनाथ।
कई बार तोड़ा और पुनर्निर्मित किया गया
सोमनाथ मंदिर का अस्तित्व सर्वप्रथम ईसा पूर्व में था, जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। उसके बाद गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतांत में इसका विवरण लिखा था, जिससे प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने सन 1024 में सोमनाथ मंदिर पर हमला कर दिया और मंदिर की संपत्ति लूट कर मंदिर को नष्ट कर दिया। उस वक्त मंदिर में काफी संख्या में लोग पूजा अर्चना कर रहे थे, महमूद गजनवी ने उन सभी का कत्ल कर दिया था।
महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमार पाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण में योगदान किया था। सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। पर सन 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया।
इसके उपरांत मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया, पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।
भारत की आजादी के बाद गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ।
हवा में स्थित था शिवलिंग
पुरानी मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कौतुहल का विषय था। जानकारों के अनुसार यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थित था। कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर हतप्रभ रह गया था।