रोहड़ू भुंडा महायज्ञ: खाई पार करते ही सूरत के माथे पर बंधे पंचरत्न पाने के लिए लगी भीड़
स्पैल वैली के दलगांव में देव परंपरा के अनुसार बेड़ा को देवता की पालकी में बिठाकर आयोजन स्थल तक पहुंचाया गया। इससे पहले आरोहण के लिए पालकी से उतारकर जैसे ही उन्हें लकड़ी की काठी पर बिठाया गया, वाद्य यंत्रों में शोक की धुनें बजने लगीं। ऊपर वाले छोर पर बेड़ा सूरत राम थे और नीचे दूसरे छोर में उनका परिवार इंतजार में था। लंबी पूजा-अर्चना के बाद ठीक शाम 5:46 बजे सूरत राम को सकुशल रस्से के सहारे नीचे उतारा गया। नीचे पहुंचते ही उनके माथे पर बंधे पंचरत्न को लेने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ मच गई। लोगों ने बेड़ा को देवता की पालकी में बिठाकर नाचते-गाते मंदिर परिसर तक पहुंचाया। लोगों ने उन्हें भेंट के तौर पर नकद राशि दी। अनुष्ठान में रस्से को बांधने के लिए बजरेट कोटी के ठाकुर व वहां तक लाने की भूमिका देवता महेश्वर के साथ पहुंचे खूंदों ने निभाई।
बेड़ा आरोहण के लिए रस्सा टूटने के बाद दूरी को कम किया गया। ढलान कम होने के कारण रस्सा झुकने से काठी पर बैठे सूरत राम बीच में फंस गए। उसके बाद दूसरी रस्सी का सहारा देकर उन्हें दूसरे छोर तक पहुंचाया गया। बेड़ा के दूसरे छोर पर पहुंचते ही अनुष्ठान के तीसरे दिन की मुख्य रस्म पूरी की गई। दलगांव में विशेष घास से बने तीन इंच मोटे रस्से (बरूत) पर बेड़ा सूरत राम को खाई पार करते देखने का लोगों में भारी उत्साह रहा। चारों ओर देवताओं के जयकारे लग रहे थे। इस दौरान रस्से को कसते समय अचानक रस्सा टूटा तो नाले के आसपास सन्नाटा पसर गया। यह घटना शनिवार दोपहर करीब साढ़े बारह बजे घटी। उस समय तक आयोजन स्थल तक हजारों लोग पहुंच चुके थे। कोई कहने लगा ओह... यह क्या हो गया। किसी ने कहा-अपशगुन हो गया तो कोई कह रहा था कि यदि बेड़ा के उतरते समय रस्सा टूटा होता तो कुछ भी हो सकता था। इसके बाद तुरंत आयोजन कमेटी के वरिष्ठ लोगों ने फैसला लिया कि अब दूरी को कम करके बेड़ा आरोहण की परंपरा को पूरा करना होगा। उसके बाद पहले से लगाए गए खंभों को उखाड़कर उन्हें नाले के आरपार कम दूरी पर गाड़ना शुरू किया गया। उसके बाद बेड़ा आरोहण की रस्म पूरी हुई।