शनि महिमा : शिंगणापुर, जहां किसी घर या दुकान में नहीं दरवाजा
** देश-दुनिया में काफी मशहूर है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का यह गांव
भारत वर्ष में अनेकों मंदिर है। हर मंदिर की अपनी विशेषता और महत्व है। ऐसा ही एक मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिला के शिंगणापुर गांव में भगवान शनि को समर्पित है। इस मंदिर को शनि शिंगणापुर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन इस गांव के किसी भी घर या दुकान में दरवाजा नहीं है। बीते कुछ समय में यह गांव अपनी इसी खासियत से देश-दुनिया में काफी मशहूर हुआ है। यहां जाने वाले आस्थावान लोग केसरी रंग के वस्त्र पहनकर ही जाते हैं। कहते हैं मंदिर में कथित तौर पर कोई पुजारी नहीं है, भक्त प्रवेश करके शनि देव जी के दर्शन करके सीधा मंदिर से बाहर निकल जाते हैं। रोजाना शनि देव की स्थापित मूर्ति पर सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। मंदिर में आने वाले भक्त अपनी इच्छानुसार यहां तेल का चढ़ावा भी देते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जो भी भक्त मंदिर के अंदर जाता है तो उसे केवल सामने की ओर देखते हुए ही जाना चाहिए। उसे पीछे से कोई भी आवाज लगाए तो मुड़कर नहीं देखना चाहिए। शनि देव को माथा टेककर सीधा बाहर आ जाना है, यदि पीछे मुड़कर देखा तो बुरा प्रभाव होता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार इस गांव में काफी बाढ़ आ गई थी, गांव में जलस्तर इतना बढ़ गया था कि सब कुछ डूबने लगा था। लोग मानते है कि उस भयंकर बाढ़ के दौरान कोई दैवीय ताकत पानी में बह रही थी। जब पानी का स्तर कुछ कम हुआ तो एक व्यक्ति ने पेड़ की झाड़ पर एक बड़ा सा पत्थर देखा। वह पथर बेहद अजीबोगरीब था, लालचवश उस व्यक्ति ने उस पत्थर को नीचे उतारा और उसे तोड़ने के लिए जैसे ही उसमें कोई नुकीली वस्तु मारी उस पत्थर में से खून बहने लगा। यह देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया और वहां से भाग गया। गांव वापिस लौटकर उसने सब लोगों को यह बात बताई। सभी दोबारा उस स्थान पर गांववासी पहुंचे, पर पत्थर को देखकर सभी भौचक्के रह गए। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिरकार इस चमत्कारी पत्थर का क्या करें। उसी रात गांव के एक शख्स के सपने में भगवान शनि आए और बोले 'मैं शनि देव हूं। जो पत्थर तुम्हें आज मिला उसे अपने गांव में लाओ और मुझे स्थापित करो।Ó अगली सुबह होते ही उस शख्स ने गांव वालों को सारी बात बताई, जिसके बाद सभी उस पत्थर को उठाने के लिए वापस उसी जगह लौटे। बहुत से लोगों ने पत्थर को उठाने का प्रयास किया, किंतु वह पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी न हिला। काफी देर तक कोशिश करने के बाद गांव वालों वापस गांव लौटकर आये और उन्होंने निर्णय किया कि अगली सुबह पत्थर को उठाने आएंगे। उस रात फिर से शनि देव उस शख्स के सपने में आए और उसे यह बताया कि वह पत्थर कैसे उठाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि उन्हें उस स्थान से केवल सगे मामा भांजा ही उठा सकते है। इसके बाद सगे मामा भांजे ने उस पत्थर को उठाकर एक बड़े से मैदान में सूर्य की रोशनी के तले स्थापित किया। तभी से यह मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाते है तो अधिक फायदा होता है।
गांव में नहीं होती चोरी
शनिदेव के इस मंदिर में अद्भुत चमत्कार होते है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते हैं और आज तक के इतिहास में यहां किसी ने चोरी नहीं की और नहीं किसी के घर में चोरी हुई है। ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि यहां किसी के भी घर से चोरी करने का प्रयास किया तो वह गांव की सीमा के पार नहीं जा पाता है, उसके गांव से निकलने से पूर्व ही शनि देव का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। उक्त चोर को अपनी चोरी कबूल भी करनी पड़ती है और शनि भगवान के समक्ष उसे माफी भी मांगनी पड़ती है।
छाया पुत्र को नहीं जरूरत छाया की
शनि शिंगणापुर की खास बात यह है कि यहां भगवान शनि मंदिर में विराजमान नहीं है। न ही उन ऊपर कोई छत्र है। यहां भगवान शनि देव मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक काले लंबे पत्थर के रूप में विराजमान हैं। शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊंची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहां शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आंधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। मूर्ति के आसपास वृक्ष है, लेकिन उनसे छाया नहीं आती। शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को यहां शनि भगवान की विशेष पूजा और अभिषेक होता है। प्रतिदिन प्रात: 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहां आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर लघु रुद्राभिषेक कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रात: 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महिलाओं को भीतरी गर्भगृह में जाने का दिया अधिकार
पहले महिलाओं को शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन 26 जनवरी 2016 को तिरुपति देसाई (सामाजिक कार्यकर्ता) के नेतृत्व में 500 से अधिक महिलाओं के एक समूह ने मंदिर तक मार्च किया। वे मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना चाहती थीं, लेकिन पुलिस ने रोक लिया, लेकिन 30 मार्च 2016 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को मंदिर के आंतरिक गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने का आदेश दे दिया।