शिमला: धामी में बरसे पत्थर, खून बहने तक नही रुका खेल
**30 वर्षीय शिवम संजू राजपूत को लगा पत्थर तब हुआ खेल खत्म
**9 मिनट तक जारी रही पत्थरों की बरसात,पत्थरबाजी का ये है अनोखा खेल
एक ऐसा खेल जिसमे लोग एक दूसरे पर बरसाते है पत्थर होती है जमकर पत्थरबाजी और ऐसी वैसी पत्थरबाजी नहीं ऐसी पत्थरबाजी कि जब तक किसी के सर से खून न बहने लगे तब तक नहीं खत्म होता ये खेल..जी हां ये सिर्फ कोई खेल ही नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही परम्परा भी है। ये एक अनोखी और सबको हैरान कर देने वाली परम्परा है शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के हलोग धामी की। जहां दीपावली के दूसरे दिन पत्थरों की बरसात होती है। यहां के लोग एक दूसरे पर ताबड़तोड़ पत्थर बरसाते हैं और यहां के स्थानीय लोग पूरे उत्साह के साथ इस खेल को खेलते हैं। इस खेल में कोई बाहर का व्यक्ति नही होता बल्कि स्थानीय लोग ही शामिल होते है और ये खेल यहाँ की सुख समृद्धि और शांति के लिए सदियों से खेला जाता है। इस खेल में पत्थर बरसाने का अनोखा खेल में दो पक्षों के बीच में होता है और तब तक खेल खत्म नहीं होता जब तक किसी एक व्यक्ति के सिर से खून न बहने लगे। है न हैरान कर देने वाली परम्परा...
दीपावली के अगले दिन यानी बीते कल धामी में इस पौराणिक परंपरा को निभाया गया। यह खेल माता सती का शारड़ा चबूतरे के दोनों ओर खड़ी टोलियों जठोती और जमोगी के बीच होता है। सिर से निकले खून से भद्रकाली के मंदिर में जाकर तिलक कर परंपरा को पूरा किया गया। उसके उपरांत पत्थर से घायल व्यक्ति का प्राथमिक उपचार किया जाता है। राजघराने से ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ इस पत्थर खेल में बड़ी संख्या में युवा शामिल हुए, वहीं हजारों की भीड़ ने खेल देखने का आनंद लिया। 9 मिनट तक चले इस खेल में जमोगी खुंद के 30 वर्षीय शिवम संजू राजपूत के सिर पर पत्थर लगने से इस खेल का समापन हुआ। खून निकलने के बाद सब लोग एकत्रित हुए और भद्रकाली के चरणों मे तिलक लगाया गया। धामी रियासत के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने कहा कि सैकड़ों वर्ष पूर्व रियासत और क्षेत्र की जनता की सुख-शांति के लिए क्षेत्र में नरबलि की प्रथा थी। इसके विकल्प के रूप में यहां की सती हुई रानी ने नरबलि की जगह इस खेल को करवाने की प्रथा शुरू की थी, जिससे किसी की जान भी न जाए, क्षेत्र में सुख-शांति रखने को भद्रकाली के मंदिर में मानव खून का तिलक कर परंपरा का निर्वहन भी हो जाए। उस समय से यह खेल यहां के खुंदों के बीच खेला जाता है। इस खेल में कोई बाहर का व्यक्ति नही होता। यह क्षेत्र की सुख सम्रद्धि के लिए खेला जाता है। प्राचीन समय से इसी अंदाज में इस पत्थर के खेल का आयोजन राज परिवार करवाता आ रहा है। हालांकि, अब समय के साथ पत्थर मेला मात्र औपचारिकता तक ही सीमित रह गया है। मेले में दुकानें भी सजती हैं और लोग खरीदारी करते हैं।