कांग्रेस की हार के 'ग़म' पर भारी दिखा आप की हार का 'सुकून' !
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जां निसार अख्तर का एक शेर दिल्ली में कांग्रेस का हाल बखूबी बयां करता है
" दिल्ली कहाँ गई तिरे कूचों की रौनकें
गलियों से सर झुका के गुजरने लगा हूँ मैं "
दिल्ली में कांग्रेस के हिस्से एक और शर्मनाक हार आई है। देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी लगातार तीसरे चुनाव में अपना खाता नहीं खोल सकी। सियासी गलियों में कांग्रेस का सर फिर झुक गया, पर कांग्रेस की इस ऐतिहासिक हार के ग़म पर भारी दिखा है आम आदमी पार्टी की हार से मिला सुकून। दिल्ली की हार के बाद टीवी चैनलों पर दिखे कांग्रेस के अधिकांश नेता इस बात से उत्साहित दिखे कि आम आदमी पार्टी हार गई है। देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी के नेताओं की ये मनोदशा बताती है कि पार्टी ने किस संजीदगी से ये चुनाव लड़ा था। जाहिर है पार्टी को कोई उम्मीद ही नहीं थी। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि करीब 15 सीटों पर आम आदमी पार्टी का खेल बिगाड़ना भी अब कांग्रेस को उपलब्धि लगता है। दशकों सत्ता भोगने वाली कांग्रेस अब वोट कटवा बनकर भी तसस्ली में दिख रही है। दरअसल, ये ही कांग्रेस का असल मर्ज है।
हालांकि राजनैतिक नजरिये से देखे तो आम आदमी पार्टी की हार कांग्रेस के जरूरी थी, वरना इंडिया गठबंधन में भी कांग्रेस के पर कतर दिए जाते। दूसरा कांग्रेस के पतन से ही आप का उभार हुआ है। पर यदि आप से पुराना वोट छिटक कर वापस कांग्रेस के पास आता, तो बात कुछ और होती। आम आदमी पार्टी का वोट करीब दस फीसदी कम हुआ है, जबकि कांग्रेस के वोट में सिर्फ दो फीसदी का उछाल है। वहीँ, बीजेपी और आप के बीच का फासला सिर्फ दो फीसदी वोटों का है, हालांकि बीजेपी के माइक्रो मैनेजमेंट और कई सीटों पर बीजेपी विरोधी वोट बंटने से सीटों का अंतर 26 हो गया। बहरहाल, आप चुनाव हारी जरूर है लेकिन उसका सफाया नहीं हुआ है और न ही कांग्रेस का अधिकांश वोटर वापस उसके पास लौटा। यानी चर्चा चाहे आम आदमी पार्टी की हार की ज्यादा हो, लेकिन असल दुर्दशा फिर कांग्रेस की ही हुई है।
कांग्रेस के प्रदर्शन पर निगाह डाले तो 70 में 67 सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हुई है। तीन सीटों पर तो पार्टी चौथे स्थान पर रही है। सिर्फ कस्तूरबा नगर सीट पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही और वहां भी हार का अंतर 11 हजार से ज्यादा रहा। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष देवन्द्र यादव जिनके साथ राहुल गाँधी दिल्ली की गलियों की बदलाली के वीडियो दिखा रहे थे, वो खुद 20 हज़ार से ज्यादा के अंतर से चुनाव हारे है। संदीप दीक्षित, अलका लाम्बा और कृष्णा तीरथ जैसे नेताओं की जमानत तक नहीं बची।
वैसे आधे मन से लड़ रही कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद किसी को नहीं थी। पर इतना जरूर माना जा रहा था कि कांग्रेस का वोट शेयर डबल डिजिट के आसपास पहुंच सकता है। पर ऐसा हुआ नहीं। आम आदमी पार्टी से छिटका अधिकांश वोट बीजेपी के पास गया। एक दिलचस्प तथ्य और भी है, जिस मुस्लिम वोट के कांग्रेस को वापस लौटने की उम्मीद थी, उसने भी दूरी बनाये रखी। जिन दो सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने चुनाव लड़ा उन दोनों सीटों पर कांग्रेस चौथे नंबर पर रही। ले देकर कांग्रेस के हाथ खाली रहे। अलबत्ता कुछ माहिर मानते है कि आप की हार से कांग्रेस के लिए फिर पांव जमाना आसान होगा, अब कांग्रेस क्या और कितना कर पाती है, ये देखन रोचक होगा। इस बीच कांग्रेस समर्थकों के लिए एक खुशखबरी भी है। जयराम रमेश ने ऐलान किया है कि 2030 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार होगी।